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बेंगलुरु पर बर्बादी का मंडराता खतरा

Last Updated- December 05, 2022 | 5:30 PM IST

बेंगलुरु की नगरनिकाय संस्था ब्रूहत बेंगलुरु महानगर पालिके (बीबीएमपी) का हालिया अनुभव दूसरे शहरी निकायों के लिए बहुत बड़ा सबक है।


यह अनुभव हमें बताता है कि ऐसे समय में जब हमारा देश शहरीकरण की अभूतपूर्व आंधी के दौर से गुजर रहा हो, हमें शहरों को बीबीएमपी की तरह नहीं चलाना चाहिए। यह अनुभव काफी दुखद है, क्योंकि इस वजह से देश की आईटी राजधानी को बहुत कुछ गंवाना पड़ा। हालांकि इस शहर में न तो जागरूक नगारिकों की कमी है और न ही संसाधन जुटाने की, जिसके जरिये यह शहर अपनी हैसियत दिखा सके।


इसके बावजूद यह शहर नगरनिकाय की गड़बड़ियों में उलझकर रह गया है और इसके लिए यहां के नेता पूरी तरह जिम्मेदार हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों के किसी भी शहर में ऐसी अव्यवस्था आपको कहीं देखने को नहीं मिलेगी।इस शहर की हालत बीबीएमपी की वित्तीय हालत में झलकती है। पिछले हफ्ते इस नगरनिकाय ने अपना बजट पेश किया। इसके नतीजे बीबीएमपी की इसकी बुरी हालत की कलई खोलने के लिए काफी हैं।


पिछले साल बजट में तय किए गए राजस्व के लक्ष्य के मुकाबले राजस्व वसूली 62.5 फीसदी कम रही। हालांकि इससे बीबीएमपी काफी परेशान नजर नहीं आई मानो यह एक आम बात हो। यहां तक कि बजट दस्तावेज में इस बात की पुष्टि होती है। दस्तावेज के मुताबिक, बीबीएमपी में यह ट्रेंड पिछले 10 साल से चल रहा है और कुछ वर्षों में अनुमानित राजस्व और प्राप्त राजस्व के बीच अंतर 40 फीसदी तक रहा है।


दुभार्ग्य की बात यह है कि पिछले अनुभवों से भी टाउन हॉल की नई टीम की नींद नहीं टूटी। 2008-09 के लिए बेंगलुरु नगरनिकाय ने राजस्व में 49.5 फीसदी की बढ़ोतरी का लक्ष्य तय किया है। 2007-08 में राजस्व के प्रमुख स्रोत प्रॉपर्टी टैक्स में अनुमानित लक्ष्य से 180 करोड़ रुपये की कमी दर्ज की गई। इस कमी के बावजूद 2008-09 में इसमें 175 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी का लक्ष्य तय किया गया है।


यह भविष्यवाणी राज्य सरकार की उस अधिसूचना के आधार पर की गई है, जिसके तहत संक्रम स्कीम के तहत जुर्माने का भुगतान कर अवैध कॉलोनियों को नियमित करने की बात कही गई है। हालांकि इस पर जल्द से जल्द कदम उठाने की जरूरत है, क्योंकि मई में होने वाले चुनावों के मद्देनजर राज्य पर आचार संहिता लागू होने की तलवार लटक रही है।


अगर आचार संहिता लागू होने से पहले इस मसले से नहीं निपटा जाता है, तो आखिरकार इस मसले को नई सरकार ही हल कर पाएगी। इसके मद्देनजर राजस्व के प्रमुख स्त्रोत का भविष्य काफी अनिश्चित है।कुल मिलाकर प्रॉपर्टी टैक्स से राजस्व की उम्मीदें लगाई जा सकती हैं, क्योंकि बेंगलुरु में आईटी और बीपीओ सेक्टर के विस्तार ने यहां के रीयल एस्टेट उद्योग को नई ऊंचाई पर ला दिया है। हालांकि इस उद्योग का विकास भी एक अलग कहानी बयां करता है।


लगभग 1 दशक बाद साल 2000 में यहां प्रॉपर्टी टैक्स की दरों में बदलाव किया गया और इस बाबत अदाकर्ता द्वारा खुद इसका निर्धारण किए जाने का सिस्टम लागू किया गया। उच्च दर और बिना उलझन वाले सिस्टम की वजह से प्रॉपर्टी टैक्स संबंधी राजस्व में जबर्दस्त इजाफा देखने को मिला। लेकिन बाद में बढ़ोतरी की दर में कमी होने लगी।


दरअसल नगरनिकाय के कर्मचारी टैक्स अदाकर्ताओं को इस बात को समझाने में लगे हैं कि कैसे वह अपने टैक्स का निर्धारण कम से कम करें। साथ ही इसमें फेरबदल भी नहीं के बराबर होता है।इसके अलावा नियमन संबंधी एक अहम बदलाव ने भी बीबीएमपी को राजस्व से वंचित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसा शहर के वैसे नए इलाकों में देखने को मिला है, जहां खेती योग्य जमीन को कृषि से इतर मकसदों के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है।


खेती योग्य जमीन को रिहायशी कैटिगरी में बदले बगैर इस पर निर्माण कार्य पर रोक लगाने के लिए सरकार ने कुछ साल पहले ऐसी जमीन की नामदर्जगी पर रोक लगा दी। यानी अगर ऐसी जमीन पर बनी इमारत को नियमित नहीं किया गया है, तो न तो आपको प्रॉपर्टी टैक्स देने का हक होगा और न ही कानूनी रूप से आपको इसका स्वामित्व प्राप्त हो सकेगा। इसके मद्देनजर कई सारे प्रॉपर्टी मालिक बिल्कुल भी टैक्स अदा नहीं कर रहे हैं।


हाल में बीबीएमपी ने इस खामी को दूर किया है और ऐसी प्रॉपर्टी को भी टैक्स के नए दायरे में लाया है।बेंगलुरु के नगरनिकाय में अव्यवस्था के इस आलम की प्रमुख वजह प्रभावकारी राजनीतिक नेतृत्व की कमी भी है। पिछले 1 साल से ज्यादा से शहर में स्थानीय निकाय में राजनीतिक शून्यता का आलम है।


दरअसल जब शहर की पुरानी नगरनिकाय संस्था बीएमपी के साथ शहर से जुड़े 5 अन्य नगरनिकायों को जोड़कर बीबीएमपी का निर्माण किया गया था, उस वक्त कहा गया था कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को इस निकाय की जिम्मेदारी सौंपे जाने में 1 साल लग जाएगा। लेकिन परिसीमन और शहर की सीमाओं के पुनर्निधारण की प्रक्रिया शुरू हो जाने की वजह से इसमें देर होती चली गई। बाद में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।


एक आर्दश शहर की सुविधाएं मसलन साइकल सवारों और पैदल मुसाफिरों के लिए लेन, बस की बेहतर सुविधा और अन्य सुविधा अब तक पूरी तरह बेंगलुरु में नहीं पहुंची है। नगरनिकाय के इस साल के बजट में अंडरपास और ओवरपास के निर्माण, ऊंचे हाईवे और सड़कों पर मौजूद नालों पर कवर लगाने की बात कही गई है।


बेंगलुरु एक ऐसा शहर बन गया है, जो कई मामलों में (मसलन आईटी सर्विसेज) में दुनिया के किसी भी शहर की बराबरी कर सकता है, जबकि  कुछ मामलों में इसकी हालत बहुत ही बुरी है। विश्व के नक्शे में अपनी जगह बना चुके इस शहर को नेताओं और नौकरशाहों द्वारा बर्बादी की ओर धकेला जा रहा है। देवगौड़ा की राजनीति और बेगलुरु एजेंडा टास्क फोर्स जैसी पब्लिक-प्राइवेट साझीदारी वाली पहल की आलोचना कर इसके बंद होने के लिए जिम्मेदार नौकरशाह बेंगलुरु के असली दुश्मन हैं।

First Published - April 2, 2008 | 12:19 AM IST

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