दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने तीन वर्षों में यमुना की सफाई करने का वादा किया है। यह निश्चित रूप से बेहद महत्त्वाकांक्षी योजना है लेकिन इसके सफल होने की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि गंगा की सफाई अभियान का अनुभव बहुत उत्साहजनक नहीं था। राजीव गांधी की सरकार ने वर्ष 1985 में गंगा एक्शन प्लान (जीएपी) शुरू किया था। वर्ष 2009 में उच्चतम न्यायालय ने जीएपी के तहत इस्तेमाल किए गए फंड और तैयार की गई परिसंपत्तियों पर एक रिपोर्ट मांगी। योजना आयोग के सदस्य और जल मामलों के प्रभारी होने के कारण मुझे रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया था।
नदी के किनारे की जगहों पर तीन मापदंडों का इस्तेमाल कर जल की गुणवत्ता की जानकारी दी गई जिनमें जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी), घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) और कुल कॉलिफॉर्म गणना (टीसी) शामिल है। जिस जल में घुले हुए ऑक्सीजन की मात्रा 6 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा, बीओडी की मात्रा 2 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम और टीसी की सबसे संभावित संख्या (एमपीएन) 50 प्रति 100 मिलीलीटर से कम हो उसे पीने के योग्य माना जाता है। जबकि नहाने वाले पानी में डीओ 5 से अधिक होना चाहिए, बीओडी 3 से कम होना चाहिए और टीसी की संख्या 500 से कम होनी चाहिए।
वर्ष 1986 में वाराणसी को छोड़कर सभी जगहों के पानी में डीओ का स्तर उपयुक्त था जिसकी वजह से पानी पीने के लायक था। वर्ष 2008 में भी अधिकांश जगहों पर ऐसी ही स्थिति थी। वर्ष 1986 और 2008 के बीच बीओडी में कुछ सुधार हुआ था लेकिन कई जगहों पर यह पानी नहाने के योग्य नहीं था और निश्चित रूप से यह पीने के लायक भी नहीं था। लेकिन अभी सभी जगहों पर टीसी की स्थिति खराब है और ऋषिकेश को छोड़कर सभी जगहों पर पानी नहाने के लायक भी नहीं है। कई जगहों पर टीसी (कुल कॉलिफॉर्म) का स्तर उचित मात्रा से 10 गुना अधिक था और कई जगहों पर यह 100 गुना से अधिक बढ़ गया। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2008 में सभी जगहों पर अपशिष्ट कॉलिफॉर्म की गणना नहाने के लिए 2,500 (एमपीएन/100 मिलीलीटर) के उचित स्तर से अधिक थी।
जीएपी का पहला चरण वर्ष 1986 में शुरू किया गया था और इसके बाद 1993 में दूसरा चरण शुरू हुआ। सभी राज्यों में सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) की लक्षित क्षमता हासिल कर ली गई थी और जीएपी 1 में फंड का लगभग पूरी तरह से उपयोग किया गया था। जब मैंने शहरों का दौरा किया, तब जीएपी 2 पर काम जारी था। नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 में नमामि गंगे परियोजना शुरू की। लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद, मल और अपशिष्ट (सीवेज) उपचार संयंत्रों की क्षमता पर्याप्त नहीं है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, गंगा नदी के किनारे के शहरों में रोजाना लगभग 272.3 करोड़ लीटर सीवेज आता है जबकि नदी के किनारे बसे विभिन्न शहरों में रोजाना लगभग 120.8 करोड़ लीटर सीवेज का उपचार करने की क्षमता है। दूसरी तरफ, यमुना नदी के किनारे के दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के शहरों में रोजाना लगभग 488.1 करोड़ लीटर सीवेज बनता है लेकिन रोजाना 313.5 करोड़ लीटर की ही उपचार क्षमता है।
केवल एसटीपी क्षमता ही अपर्याप्त नहीं है। जब 2009 में मैंने गंगा नदी के किनारे वाले शहरों का दौरा किया तो पाया कि इनमें से ज्यादातर शहरों में ये संयंत्र केवल 70 फीसदी लोड फैक्टर के साथ काम कर रहे हैं। बिजली की उपलब्धता भी एक वजह थी। दूसरा कारण यह था कि इनके रखरखाव के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं दिए गए थे। कई शहरों में कई घर सीवेज लाइन से नहीं जुड़े थे और उनका कचरा एसटीपी तक नहीं पहुंचता था। नतीजतन सीवेज का अच्छा-खासा हिस्सा संयंत्र में बिना उपचार के नदियों में बह जाता था।
हाल के वर्षों में स्थिति में सुधार जरूर हुआ है लेकिन समस्याएं खत्म नहीं हुईं हैं। इसका अंदाजा हमें नदी जल प्रदूषण के ताजा आंकड़ों से लगता है। गंगा के किनारे अंतरराज्यीय स्थलों पर मल कॉलिफॉर्म के आंकड़ों से अंदाजा मिलता है कि जुलाई 2023 में 8 में से 5 जगहों पर और जनवरी 2023 में 8 में से 6 जगहों पर यह नहाने के उचित स्तर से काफी अधिक था।
सीपीसीबी की वेबसाइट पर महाकुंभ के दौरान 12 जनवरी से 22 फरवरी तक 18 दिनों के लिए गंगा और यमुना के संगम स्थल पर मल कॉलिफॉर्म के आंकड़े मौजूद है। पांच दिनों तक संगम में गंगा के पानी में मल कॉलिफॉर्म की संख्या 2,500 एमपीएन प्रति 100 मिलीलीटर से अधिक थी जो नहाने के उचित स्तर से कहीं अधिक है। संगम से ठीक पहले यमुना में मल कॉलिफॉर्म की गिनती छह दिनों तक इस स्तर से ऊपर थी। महाकुंभ के लिए पानी साफ रखने के लिए ताजा पानी की पंपिंग के विशेष प्रयास करने के बावजूद ऐसा हुआ।
यमुना दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक बन गई है। सितंबर 2024 में इसमें मल कॉलिफॉर्म की गिनती 49,00,000 एमपीएन प्रति 100 मिलीलीटर थी, जो नहाने की उचित सीमा से 1,959 गुना अधिक है। सीपीसीबी के अनुसार, यमुना के प्रति 100 मिलीलीटर पानी में 1.1 अरब कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया हैं जो नहाने के लिए उचित स्तर से 2.2 करोड़ गुना अधिक है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा अपलोड की गई नई जल गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, जून में यमुना में बीओडी (जैविक ऑक्सीजन मांग) का स्तर पल्ला में 2 मिलीग्राम प्रति लीटर था, जहां से यमुना नदी दिल्ली में प्रवेश करती है। वहीं, असगरपुर में यह बढ़कर 85 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया जहां यह नदी शहर से बाहर निकलती है। यह एक बेहद चिंताजनक स्थिति है।
सिग्नेचर ब्रिज से ओखला बैराज तक का 13 किलोमीटर का हिस्सा काफी प्रदूषित है, जिसमें लगभग 20 नाले सीधे नदी में गिरते हैं। भाजपा सरकार ने यमुना सफाई अभियान को प्राथमिकता दी है जो हाल के चुनावों के दौरान एक प्रमुख मुद्दा बना था।
नदी को साफ करने के लिए, सभी 20 नालों को सीवेज उपचार संयंत्रों से जोड़ने की आवश्यकता होगी और इन संयंत्रों की क्षमता बढ़ानी होगी। इसके अलावा, नए एसटीपी बनाने होंगे और उनका उचित तथा पूर्ण संचालन सुनिश्चित करना होगा। साथ ही संचालन और रखरखाव के लिए पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध कराने होंगे।
इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सभी घर नालियों से जुड़े हों और सभी औद्योगिक इकाइयों में पर्याप्त अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र हों। दिल्ली की नई सरकार ने तीन साल में इसे पूरा करने का वादा किया है जो एक चुनौतीपूर्ण काम है। हम इस काम के लिए उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।
(लेखक इंटीग्रेटेड रिसर्च ऐंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट के चेयरमैन हैं)