क्या आपके पास भी टाटा इंडिकॉम का फोन है? और क्या आपके पास भी कंपनी के एग्जीक्यूटिव नए स्कीम्स के बारे में बताते हैं?
अगर हां, तो हो सकता है कि आपको अक्सर फोन करने वाला वह शख्स दुनिया को देख पाने में नाकाम हो। टाटा इंडिकॉम के प्रमोटर, टाटा टेलिसर्विसेज लिमिटेड ने ‘दृष्टि’ प्रोजेक्ट के तहत अपने मुंबई के कॉलसेंटर में करीब 20 दृष्टिहीन स्त्री-पुरुषों को नौकरी दी है।
कंपनी ने मुंबई के वर्ली इलाके स्थित नैशनल एसोसिएशन ऑफ द ब्लाइंड (नैब) के परिसर में इन लोगों के लिए एक कॉल सेंटर बनाया है। इस कॉल सेंटर की शुरुआत की गई थी केवल 10 लोगों के साथ। आज केवल साल भर के भीतर में यहां काम करने वालों की तादाद दोगुनी हो चुकी है। इसने इसी महीने की 15 तारीख को अपनी पहली सालगिरह मनाई है। टाटा टेलिसर्विसेज लिमिटेड के चीफ इन्फॉर्मेशन ऑफिसर नवीन चड्डा ने ही इस सोच को अमली जामा पहनाया था।
उन्होंने इस परियोजना की शुरुआत के बारे में बताया कि, ‘तकरीबन डेढ साल पहले बेंगलुरु स्थित हमारे सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट सेंटर ने इंटरएक्टिव वॉयइस रिस्पॉन्स नाम का एक सॉफ्टवेयर बनाया था। इसे टेस्ट करने के लिए हमने एक प्रयोग किया था। जब वह प्रयोग कामयाब रहा तो हमने नैब से संपर्क साधने का फैसला किया। वह भी इस बात के लिए कई दिनों से हमसे कह रहे थे कि हम आंखों की रौशनी से मरहूम कुछ युवाओं को नौकरी पर रखें।
इन लोगों को नैब ने खुद टे्रनिंग दी थी। इसी तरह पूरी कहानी की शुरुआत हुई थी।’ लोगों को चुनने के बाद चङ्ढा साहब की पत्नी और कम्युनिकेशन प्रोफेशनल रीना चङ्ढा ने इन नौजवानों को इस नौकरी के लिए जरूरी बातें बताईं। रीना ‘दृष्टि’ में बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर काम भी कर रही हैं। उनका कहना है कि, ‘मुझे तो इन दृष्टिहीन लोगों को पढ़ाने में कोई तकलीफ नहीं हुई। इन सबों में तो विनम्रता जैसे जन्म से ही थी।
यह एक कॉल सेंटर एग्जीक्यूटिव के तौर पर उनके लिए काफी अच्छी बात है। इसलिए मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई। मुझे बस इन लोगों के क्षमताओं को बस पॉलिस भर करना था।’ नवीन चङ्ढा ने बताया कि,’इस प्रोजेक्ट की मुंबई में सफलता से उत्साहित हमारी कंपनी ने अपनी ‘दृष्टि’ प्रोजेक्ट को अहमदाबाद और दिल्ली, जैसे शहरों में भी फैलाने का इरादा किया है।’
टाटा टेलिसर्विसेज लिमिटेड अपने कस्टमर डाटा को अपने कॉल सेंटर तक एक माइक्रोसॉफ्ट एक्सल फाइल में भेजती है। इस फाइल में उनका नाम, पता और फोन नंबर दर्ज होता है। इसे फिर बाद में वॉयस बेस्ड डाटा में बदल दिया जाता है। इसके बाद कंपनी द्वारा मुहैया करवाए गए दो वॉयरलेस उपकरण की मदद से ये कॉल सेंटर एग्जीक्यूटिव उस डाटा तक पहुंचते हैं और फिर लोगों को कॉल करते हैं।
एक सेंट्रल सर्वर केवल इसी बात को ट्रैक करता है कि एग्जीक्यूटिव्स ने कितने कॉल किए और उनमें से कितने कॉल की परिणति कंपनी की सेवाओं बिक्री के तौर पर हुई। लोगों की बातचीत रिकॉड करने के साथ-साथ एजेंट्स की गलतियों के बारे में भी बिलकुल ठीक-ठीक बताता है। इससे सुपरवाइजर लेवल पर तैनात लोगों को काफी सुविधा होती है। वह इनके सहारे अपने एग्जीक्यूटिव्स को यह बता सकता है, उनसे कहां गलती हुई और वे अपनी उस गलती को सुधार सकते हैं।
इन एग्जीक्यूटिव्स के हर दिन 100 कॉल करने का लक्ष्य रखा गया है। हर आदमी से बात करने के लिए इन लोगों को कंपनी तीन रुपये देती है। इस तरह वे प्रति माह नौ हजार रुपये कमा सकते हैं। चङ्ढा बताते हैं कि, ‘आज की तारीख में दूसरे भारतीय कॉल सेंटरों में लोग-बाग प्रति माह केवल 5000 रुपये तक ही कमा पाते हैं।’ इस कॉल सेंटर के स्टार कर्मचारी हैं मंगेश इंदुल्कर।
इस जहीन कर्मचारी को टीसीएस ने अपने बीपीओ ऑपरेशंस के लिए चुना है। उनका कहना है कि, ‘मुझे लगता है कि हम आंखों की रौशनी से महरूम लोग कॉल सेंटरों के कामों को अच्छी तरह से कर सकते हैं। हम लोगों के बोलने की तरीके में आए हल्के से बदलाव को भी भांप लेते हैं और उसी के मुताबिक लोगों को लुभाने के लिए अपनी रणनीति भी बदल लेते हैं।
लेकिन हमें अपनी काबलियत साबित करने के लिए केवल एक मौका चाहिए। टाटा ने हमें यह मौका दिया। मैं दूसरी कंपनियों से भी यह अपील करना चाहता हूं कि वे भी हमें अपनी काबलियत साबित करने के लिए एक मौका तो जरूर दें।’
इस कॉल सेंटर की तेज-तर्रार कर्मचारी दीप्ति गांधी का कहना है कि, ‘दूसरे लोगों के वास्ते यह एक आम नौकरी हो सकती है, लेकिन मेरे लिए तो यह मेरे सपनों की नौकरी है। इसलिए मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि हम लोग अपना काम पूरी ईमानदारी और सच्ची लगन के साथ करते हैं। इसलिए तो हम अच्छा परफॉर्म करते हैं। बस अब जरूरत है, कंपनियों को अपनी सोच बदलने की।’
इस बारे में नैब में रोजगार विभाग की उप प्रमुख पल्लवी कदम का कहना है कि, ‘टाटा टेलिसर्विसेज के इस प्रयोग की जबरदस्त सफलता के बाद कई दूसरी कंपनियों से भी संपर्क साधा है। वैसे, कई कॉल सेंटर कंपनियों ने इन दृष्टिहीन लोगों को नौकरी देने में रुचि दिखाई है। मुझे भरोसा है कि इससे इन लोगों को जरूर नौकरी मिल जाएगी। हम इन लोगों को मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन के काम में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।’