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राष्ट्र की बात: भारतीय मध्य वर्ग की क्या हैं विशेषताएं?

बजट और उससे निकलने वाले राजनीतिक संकेत में मोदी सरकार की गलती यह रही कि वह भारत के उभार, मजबूत होती वृद्धि और बाजार में तेजी जैसे उन संकेतों से दूर हो गई जो वह देती आई है

Last Updated- July 28, 2024 | 9:59 PM IST
भारतीय मध्य वर्ग की क्या हैं विशेषताएं?, What are the characteristics of the Indian middle class?

हालिया बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्य वर्ग को छेड़ कर बहुत मुश्किल हालात पैदा कर दिए। पूरे सप्ताह उन्हें तथा उनके मंत्रालय को सोशल मीडिया पर हमलों का सामना करना पड़ा। मुख्य धारा के मीडिया के लोगों ने जरूर संतुलित ढंग से आश्चर्य प्रकट किया।

पूंजीगत लाभ कर में परिवर्तन (अमीरों से अधिक कर लेने की कोशिश खासकर इसलिए कि वे संचित धन से धनार्जन करते हैं) के विरुद्ध तार्किक, समझदारी भरे, वैचारिक और यहां तक कि नैतिक दलीलें भी दी जा सकती हैं। परंतु इससे उस गुस्से को उचित नहीं ठहराया जा सकता है जो देखने को मिला है और सैकड़ों व्यक्तिगत कटाक्ष करते हुए मीम जिसका उदाहरण हैं।

क्या मोदी सरकार अपने सबसे मूल्यवान समर्थकों यानी मध्य वर्ग (खासकर हिंदू) के दिमाग को पढ़ने में नाकाम रही? या फिर उसने उन्हें कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया? इससे पहले 2019 में मैंने इसी स्तंभ में कहा था कि मध्य वर्ग मोदी की भाजपा के लिए मुस्लिमों के समान है। मैंने यह निष्कर्ष इस आधार पर निकाला था कि मोदी सरकार पेट्रोल और डीजल पर अधिक से अधिक कर वसूल करके गरीबों के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण की भारी भरकम योजना चला रही थी। यह एक तरह की रॉबिनहुड शैली की राजनीति थी: मध्य वर्ग से लो और गरीबों को दो।

इससे वे गरीब प्रसन्न हुए जो मतदाताओं में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं। अगर मध्य वर्ग नाखुश हो रहा है तो होने दो। वह तो हर हाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को वोट देगा। हमारी दलील थी कि भाजपा मध्य वर्ग के मतदाताओं को हल्के में ले सकती है, ठीक वैसे ही जैसे ‘धर्मनिरपेक्ष’ दल मुस्लिमों को लेते हैं।

क्या अब इसमें बदलाव आएगा? मुझे नहीं लगता। यह नाराजगी जल्दी ही दूर हो जाएगी जब हल्के फुल्के सुधार देखने को मिलेंगे और राष्ट्रवाद, धर्म, गांधी परिवार जैसे मुद्दों पर बात होने लगेगी जो करों से ज्यादा महत्त्व रखते हैं। अभी नाराज चल रहे लोगों में से अधिकांश भाजपा को वोट देना जारी रखेंगे। वे मोदी, उनकी पार्टी या उसकी विचारधारा से अधिक नाराज नहीं हैं। वे अभी भी तीनों को पसंद करते हैं, बस थोड़ा नाखुश हैं। मोदी सरकार इस बजट में और इससे निकले आर्थिक संकेत में अपने पुराने रवैये से थोड़ा दूर हट गई जिसके तहत इस बात का दम भरा जाता था कि भारत का उभार हो रहा है, वृद्धि में मजबूती आएगी और बाजारों में और तेजी देखने को मिलेगी। बजट से निकला गंभीर संकेत समझदारों के लिए निराशाजनक है।

मध्य वर्ग को अच्छी खबरों की लत लगी हुई है। उसका मानना है कि हर बजट से उसे और अधिक पैसे कमाने में मदद मिलनी चाहिए। उसे यह सुनना पसंद नहीं है कि ‘सुनो, तुमने बहुत कमा लिया, खासकर तेजी वाले दशक में। अब समय आ गया है कि तुम कुछ ज्यादा चुकाओ।’ हो सकता है अपनी संचित निधि से अधिक पैसे कमाना उचित न हो।

अमीरों को ज्यादा परवाह नहीं है। मध्य वर्ग खासकर सामाजिक-आर्थिक धड़े के निचले हिस्से में मौजूद मध्य वर्ग जिसने बड़ी ईएमआई ले रखी हैं, निवेश के लिए दूसरा मकान खरीद रखा है, अपनी बचत को रिजर्व बैंक की गारंटी वाले सावधि जमा से निकालकर शेयर बाजार, म्युचुअल फंड और डेट बॉन्ड में लगाया हो, वही सबसे अधिक नाराज नजर आ रहा है।

वे नरेंद्र मोदी और उनकी राजनीति को इतना प्यार तो करते ही हैं कि इसकी कुछ कीमत चुकाने की मंशा रखते हों। आखिर उनकी एक पुकार पर एक करोड़ से अधिक लोगों ने अपनी एलपीजी सब्सिडी छोड़ ही दी थी। परंतु जिस बात ने उन्हें चकित किया है वह है संदेश देने के तरीके में बदलाव। वे शायद इसे इस प्रकार देखते हैं मानो उनसे कहा जा रहा हो कि उन्होंने कुछ अनैतिक किया है, बहुत अधिक धन कमाया है और सरकार वापस उन पर लगाम लगा रही है।

सन 1991 की गर्मियों में सुधारों की शुरुआत होने के बाद लगातार सरकारों और वित्त मंत्रियों का ध्यान एक बात पर केंद्रित रहा है: जिन लोगों के पास अधिक धन है उन्हें बाजारों की ओर प्रेरित किया जाए। यही वजह है कि पूंजीगत लाभ कर में रियायतें दी गईं और बीते दशकों के दौरान उनका विस्तार भी किया गया। बाजार ने भी धन्यवाद किया और उसमें तेजी देखने को मिली। उस दौर की सरकारें इससे लाभान्वित हुईं।

बीते 33 वर्ष में सभी सरकारों, खासकर वर्तमान सरकार ने म्युचुअल फंड के बढ़ते कारोबार, डीमैट खातों में इजाफे और शेयर सूचकांकों में तेजी का जश्न मनाया है। हाल में उठाए गए कुछ कदमों मसलन 2023 के बजट में डेट बॉन्ड को लेकर उठाए गए कदमों आदि का मकसद यही नजर आता है कि अधिशेष उत्पन्न कर रहे वर्ग को वापस बैंक जमा की दिशा में लाया जाए। वे इसके लिए तैयार नहीं थे।

भारत का मध्य वर्ग है क्या? क्या मध्य वर्ग आय कर दाताओं से बनता है? आय कर चुकाने वालों की संख्या, आय कर रिटर्न दाखिल करने वालों की तुलना में एक तिहाई से भी कम है। 7.4 करोड़ आय कर रिटर्न भरने वालों में से केवल 2.2 करोड़ कर चुकाते हैं। यह संख्या तो दुनिया के सबसे बड़े बनते मध्य वर्ग के वास्तविक आकार का एक मामूली हिस्सा भी नहीं है।

यह सोचना अधिक सुरक्षित होगा कि मध्य वर्ग क्या चाहता है। यह निश्चित रूप से ये चाहता है और अपेक्षा करता है कि भारत दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था हो। वह अर्थव्यवस्था से लेकर विज्ञान, खेल से लेकर सेना और विनिर्माण से लेकर सॉफ्टवेयर तक दुनिया का नेतृत्व करे और इस दौरान दुनिया को उपदेश देने का ऐतिहासिक अधिकार भी अपने पास रखे। हो सकता है वे इसे अभिव्यक्त न करें लेकिन वे विश्व गुरु बनने की आकांक्षा को लेकर किसी तरह का भ्रम नहीं रखते। उन्हें यह यकीन करना अच्छा लगता है कि पश्चिम का पराभव हो रहा है और यह भारत के उदय का समय है।

अगर मैं एक ऐसा वीडियो रिकॉर्ड करूं जिसमें कहा जाए कि डॉलर अंतिम सांसें गिन रहा है, अमेरिका की शक्ति का पतन हो रहा है और यूरोप पूरी तरह खत्म हो चुका है तो वह यकीनन वायरल हो जाएगा। भले ही तथ्य कुछ भी हों। मध्य वर्ग के मिजाज को सबसे अच्छे से परिभाषित करने वाला दृश्य है हर शाम वाघा बॉर्डर पर होने वाला कार्यक्रम।

वे इसी उम्मीद में मोदी और भाजपा को वोट देना जारी रखते हैं। वे अपनी संपत्ति में वृद्धि, बाजार में तेजी, भारत में बढ़ते विदेशी निवेश आदि को इसी पैकेज का हिस्सा मानते हैं। यकीनन वे बिना कर चुकाए यह सब हासिल करना चाहते हैं। या फिर कम से कम सिंगापुर के दर्जे का टैक्स चाहते हैं। उन्हें सिंगापुर शैली के लोकतंत्र से भी दिक्कत नहीं होगी। अब उनसे कहा जा रहा है कि वे वापस बैंकों की सावधि जमा योजनाओं का रुख करें।

मैं बस यही कहना चाहूंगा कि हम अभी तक नहीं जानते हैं कि मध्य वर्ग क्या है और वह क्या चाहता है। आइए इस बात पर केंद्रित रहते हैं कि भारतीय मध्य वर्ग क्या नहीं है। एक बात तो यह है कि वह आभार नहीं मानता। मोदी सरकार इस समय जिस तपिश का सामना कर रही है वह जल्दी ही ठंडी पड़ जाएगी।

परंतु क्या आप बीती तीन पीढि़यों के एक ऐसे व्यक्ति का नाम ले सकते हैं जिसने नए मध्य वर्ग के निर्माण, विस्तार और उसे समृद्ध बनाने में इतनी मेहनत की हो। विनियमन, लाइसेंस-कोटा राज का अंत, आयात के लिए खुलापन, करों और शुल्कों में कटौती तथा मध्य वर्ग को बाजार और उदार कर प्रोत्साहन देने का काम किया।

अब एक सवाल करते हैं: वह नेता कौन है जिससे मध्य वर्ग ने 2011 के बाद से सबसे अधिक खारिज और नापसंद किया? आपका अंदाजा सही है वह हैं मनमोहन सिंह। सन 1999 में उन्होंने और उनकी पार्टी ने मध्य वर्ग के बीच लोकप्रियता को आंकने के लिए उन्हें दक्षिणी दिल्ली लोक सभा सीट से उम्मीदवार बनाया था। शायद उन्हें लगा था कि जनता उन्हें वोट देकर धन्यवाद ज्ञापन करेगी। बदले में उन्हें अवमानना मिली। यह मध्य वर्ग पात्रताओं की चाह रखता है, इसमें आभार प्रदर्शन की भावना नहीं।

First Published - July 28, 2024 | 9:59 PM IST

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