आईसीआईसीआई बैंक के मानव संसाधन (एचआर) विभाग के ग्रुप हेड के. राम कुमार का मानना है कि देश का बैंकिंग उद्योग पिछले कुछ वर्षों से सालाना 12 से 15 फीसदी की तनख्वाह बढ़ोतरी का गवाह रहा है। पर वह कहते हैं – ‘यह बढ़ोतरी टिकाऊ नहीं है।
तजुर्बे बताते हैं कि दुनिया की कोई भी अर्थव्यवस्था, जिसे तनख्वाह बढ़ोतरी के मामले में सालाना 6-7 फीसदी की चक्रवृध्दि विकास दर बरकरार रखनी है, उसे 15 से 20 साल के भीतर मंदी के दौर से भी गुजरना पड़ता है।’किसी भी सूरत में, मंदी के दौर में तनख्वाह में की जाने वाली बढ़ोतरी से उत्पादकता पर बुरा असर पड़ता है।
पर जहां तक भारतीय उद्योग जगत की बात है, ऐसी कोई चीज फिलहाल इस पर लागू नहीं हो रही और आकलन के मुताबिक आगामी 5 वर्षों में यहां तनख्वाह बढ़ोतरी की विकास दर 2 अंकों (डबल डिजिट) में होगी।
ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म वॉटसन वॉट के आकलन के मुताबिक 2008 में भारत में वेतन बढ़ोतरी में पिछले साल के मुकाबले 15 से 25 फीसदी ज्यादा इजाफा दर्ज किया जाएगा।
इस मामले में चीन दूसरे पायदान पर होगा, जहां वेतन बढ़ोतरी में 8.5 फीसदी का इजाफा होगा। 8.3 फीसदी वृध्दि दर के साथ फिलिपीन तीसरे नंबर पर होगा।राम कुमार मानते हैं कि वेतन के मामले में भारत दुनिया के बाकी हिस्से के काफी करीब पहुंच चुका है।
उदाहरण के तौर पर, भारत में 1 लाख डॉलर (करीब 40 लाख रुपये) की तनख्वाह पश्चिमी देशों के मुकाबले काफी कम है। पर यदि हम क्रय शक्ति क्षमता के आधार पर बात करें, तो भारत में 1 लाख डॉलर तनख्वाह पश्चिमी देशों में ढाई लाख डॉलर तनख्वाह के बराबर होगी। राम कुमार का कहना सही है।
हेविट का सर्वे भी इस बात की तस्दीक करता है। सर्वे में कहा गया है कि भारत में मौजूदा घरेलू कंपनियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तनख्वाह बढ़ोतरी का अंतर तेजी से कम हो रहा है।
सर्वे में कहा गया है कि 2008 में भारतीय कंपनियां अपने कर्मचारियों की तनख्वाह में 15.5 फीसदी का इजाफा करेंगी, जबकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किया गया इजाफा 14.9 फीसदी होगा।देश में प्राइवेट सेक्टर के सबसे बड़े बैंक के एचआर प्रमुख का आरोप है कि ज्यादातर कंपनियों में कर्मचारियों की तनख्वाह में असमानता की वजह कंपनियों का खराब शासन तंत्र है।
राम कुमार का कहना है कि देश में नई पीढ़ी के बैंकों ने परजीवियों की तरह काम किया है और ये बैंक ‘प्रतिभा की कमी’ के नाम पर दूसरे बैंकों के कर्मचारियों का ‘शिकार’ कर रहे हैं।
राम कुमार मानते हैं कि एचआर विभाग तनख्वाह की दोहरी प्रणाली अपनाने से बच सकते हैं, यदि वे सप्लाई चेन मैनेजरों की तरह काम करें और कंपनी के टॉप मैनेजमेंट को सालाना सैलरी बिल से संबंधित मशविरा देने से पहले वे खर्च-आमदनी अनुपात का विश्लेषण करें।
परंपरागत कारोबारी समझ भी यह बात कहती है कि किसी भी प्रॉडक्ट के कच्चे माल की कीमत उस प्रॉडक्ट के निर्माण पर आने वाली कुल लागत के बराबर नहीं होती।आईसीआईसीआई बैंक ने पिछले वित्त वर्ष में अपने कर्मचारियों के वेतन में 10 फीसदी का औसत इजाफा किया।
राम कुमार वैसे बाहरी सलाहकारों द्वारा किए गए सर्वे को भी कोई तवज्जो नहीं देते, जो सर्वे में दोहरी सैलरी की अवधारणा की सिफारिश करते हैं।
कुछ साल पहले आईसीआईसीआई बैंक ने बैंकिंग इंडस्ट्री में सैलरी की स्थिति की समीक्षा के लिए एक सलाहकार की नियुक्ति की। सलाहकार को काफी ऊंचे ओहदे पर रखा गया। सलाहकार ने अपनी सिफारिश पेश की।
जब उनकी सिफारिश की जांच की गई, तो पाया गया कि उन्होंने महज कुछ ऐसे गैर-सूचीबध्द बैंकों की सैलरी की समीक्षा की थी, जो अपने कर्मचारियों को काफी मोटी तनख्वाह देते थे। सिफारिश में उन बैंकों का जिक्र कहीं भी नहीं था, जो उस वक्त आईसीआईसीआई बैंक द्वारा अपने कर्मचारियों को दी जा रहीं तनख्वाहों से कम तनख्वाह देते थे। जब सलाहकार से इस बारे में पूछा गया, तो उनके पास कोई जवाब नहीं था।
आखिरकार उनकी सिफारिशें रद्दी की टोकड़ी में डाल दी गईं।एक समस्या बैंकों में मैनेजमेंट ग्रैजुएट्स की काफी ऊंची तनख्वाह पर की जाने वाली भर्ती से भी संबंधित है, जिसकी वजह से नियुक्तियों पर आने वाली बैंकों की लागत काफी बढ़ जाती है।
दरअसल, ऐसी नियुक्तियां करते वक्त बैंक इस बात को भूल जाते हैं कि वे इन ग्रैजुएट्स द्वारा कंपनी के लिए दिए जाने वाले योगदान के मुकाबले कहीं ज्यादा पैसे उन्हें ऑफर कर रहे हैं।
आखिरकार सालाना करीब 15 हजार कर्मचारियों की भर्ती करने वाला आईसीआईसीआई बैंक इस गैर-दिमागी सैलरी गेम से खुद को इतर रखने के लिए क्या करता है? मनमाने तरीके से सैलरी बढ़ाने के बजाय बैंक अलग तरीका अपनाता है, जिसका किसी खास वित्त वर्ष से बहुत लेनादेना नहीं होता।
इसके तहत कर्मचारियों को वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग दी जाती है, उनकी पोस्टिंग देश या विदेश के विभिन्न हिस्सों में की जाती है या फिर कर्मचारियों के व्यक्तिगत विकास पर ध्यान दिया जाता है। बैंक कुछ नए प्रयोग भी कर रहा है।
मिसाल के तौर पर, बैंक में इंजीनियरों की भर्ती की जाती है। बैंक का इरादा आने वाले दिनों में अपने हर ब्रांच में एक इंजीनियर नियुक्त करने का है। गौरतलब है कि बैंकिंग इंडस्ट्री में इंजीनियरों की भर्ती का बहुत चलन अब तक नहीं रहा है।
खासकर हर ब्रांच में एक इंजीनियर रखे जाने की बात तो इस इंडस्ट्री के लिए अभी दूर की कौड़ी है। पर आईसीआईसीआई बैंक द्वारा इंजीनियर रखे जाने के पीछे बैंक का अपना तर्क है। दरअसल, इन इंजीनियरों को ब्रांचों में प्रोसेस से संबंधित कार्यकुशलता बढ़ाने के काम में लगाया जाता है।
ये इंजीनियर ब्रांच के ले-आउट को नए सिरे से डिजाइन करते हैं, या फिर ग्राहकों से बातचीत में लगने वाले वक्त को कम करने की दिशा में काम करते हैं। इस अनोखी कोशिश से देश भर में सालाना बड़े पैमाने पर फ्रेश इंजीनियरिंग ग्रैजुएट्स को नौकरी मिलती है।
इतना ही नहीं, बैंक ने ‘सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाले कर्मचारियों’ की भर्ती किए जाने के अपने दर्शन को भी तिलांजलि दे दी है, क्योंकि बैंक का मानना है कि कर्मचारियों को भाषा और सामाजिक दक्षता सिखाई जा सकती है, पर उन्हें बुध्दि ज्ञान नहीं दिया जा सकता।
तो क्या आप सोचते हैं कि तनख्वाह बढ़ाना ही संस्थान में टैलंट खींचे जाने या उसे कायम रखने की एकमात्र कसौटी है?