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Editorial: टिकाऊ निर्माण- ढांचों का रखरखाव उतना ही महत्वपूर्ण जितना उनका निर्माण

गुजरात पुल त्रासदी कोई अपवाद नहीं है। पिछले पांच वर्षों में 42 बड़े और छोटे पुल ढह चुके हैं, और 2021 से 2024 के बीच राष्ट्रीय राजमार्गों पर 21 पुल गिरे है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- July 11, 2025 | 11:03 PM IST

गुजरात में गंभीरा पुल ढहने से होने वाली मौतें भारीभरकम बुनियादी ढांचा बनाने की भारत की योजना के लिए चेतावनी है। इसने दिखाया है कि कैसे देश में बुनियादी ढांचा हड़बड़ी में बनाया जाता है और गुणवत्ता पर नहीं के बराबर ध्यान दिया जाता है। बाद में उसका रखरखाव भी इतने घटिया तरीके से होता है कि वह सुरक्षा के लिए खतरा बन जाता है। यह पुल केवल 43 साल पहले बना था मगर 2022 में ही यह एकदम खस्ता हो गया था और वाहनों की आवाजाही के समय इसके खंभे हिलने लगते थे।

पंचायत और जिला अधिकारियों ने पुल की हालत की जानकारी तीन साल पहले ही स्थानीय सड़क एवं पुल विभाग को दे दी थी। उसी साल सड़क-पुल विभाग की जांच रिपोर्ट में कहा भी गया कि पुल सुरक्षित नहीं है। मगर उस रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। उसके बजाय थोड़ी-बहुत मरम्मत के बाद पुल दोबारा खोल दिया गया।

परंतु यह त्रासदी अपवाद नहीं है। पिछले साल सरकार ने स्वीकार किया था कि उससे पहले के पांच साल में 42 छोटे और बड़े पुल ढहे हैं। सड़क और राजमार्ग मंत्रालय ने बताया कि 2021 से 2024 के बीच राष्ट्रीय राजमार्गों पर 21 पुल ढहे, जिनमें से 15 पूरे हो चुके थे। यहां सबक मिलता है कि तेजी से बुनियादी ढांचा बनाना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है पहले से मौजूद ढांचे का अच्छी तरह रखरखाव करना। ध्यान रहे कि पुल सही ढंग से बनाए जाएं और उनका रखरखाव ठीक से किया जाए तो वे 50 से 100 साल तक बने रहते हैं। 1937 में पूरा हुआ सैन फ्रैंसिस्को गोल्डन गेट ब्रिज और 19वीं सदी के अंत में बना लंदन का टावर ब्रिज इसके उदाहरण हैं।

दोनों में बाद में सुधार किए गए हैं और दोनों पर ही रोज गंभीरा पुल से ज्यादा यातायात गुजरता है। पिछले कुछ साल में केंद्र और राज्य सरकारों ने आर्थिक वृद्धि के प्रमुख वाहक के रूप में बड़े पैमाने पर जो सार्वजनिक निर्माण कराया है, खराब तरीके से बनाए और संभाले जा रहे पुल उसका केवल एक पहलू हैं। केंद्र सरकार की 2025-26 में सड़क एवं राजमार्ग, बंदरगाह, हवाई अड्डे, रेल और आवास समेत बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर लगभग 11.2 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3 फीसदी से ज्यादा है।

इस खर्च में निजी ठेकेदार और इंजीनियरिंग कंपनियां बडे पैमाने पर शामिल हैं क्योंकि निर्माण वे ही करती हैं। इसलिए उनके काम की गहन निगरानी करना और उनकी समुचित जवाबदेही तय करना जरूरी है। दिल्ली के प्रगति मैदान अंडरपास को ही देखिए, जो 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन के लिए बनाया गया था। 700 करोड़ रुपये से भी ज्यादा खर्च कर बनाए गए इस पुल को कुछ महीनों में ही भारी बारिश के बाद पानी भरने के कारण बंद कर दिया गया।

डिजाइन और इंजीनियरिंग की खामियों के कारण उसके बाद से ही इसे खतरनाक घोषित कर दिया गया है। बड़ा जोखिम यह है कि सार्वजनिक परियोजनाओं में लापरवाही भरी निगरानी और घटिया रखरखाव का चलन निजी क्षेत्र में भी पहुंच जाता है, जिसके पास सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाएं बढ़ती जा रही हैं। बेंगलूरु हवाईअड्डे के टर्मिनल 2 की छत निर्माण के डेढ़ साल के भीतर ही टपकना शुरू कर देती है, जबकि उसमें 74 फीसदी हिस्सेदारी निजी क्षेत्र की है।

पिछले साल निजी क्षेत्र की कंपनी द्वारा चलाए जा रहे दिल्ली हवाईअड्डे के टर्मिनल की छतरी भारी बारिश के कारण गिर गई और एक व्यक्ति की मौत हो गई। बाद में हुई जांच में छतरी या कैनॉपी के डिजाइन, निर्माण और रखरखाव में गंभीर खामियां पाई गईं। अगर हम लोगों की मौत, चोटें और निवेश के बाद ही सबक सीख रहे हैं तो ये सबक बहुत महंगे हैं।

First Published : July 11, 2025 | 11:03 PM IST