लगभग एक दशक पहले लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) के करीब एक दर्जन संस्थापक और प्रवर्तकों ने इस तरह के बैंक स्थापित करने के वास्ते लाइसेंस के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास आवेदन दिया था। ऐसे दो बैंकों को छोड़कर (एक का विलय सबसे बड़े लघु वित्त बैंक के साथ और दूसरे का वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनी (फिनटेक) के साथ किया जा रहा है) बाकी सभी शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो गए हैं। शायद अधिकांश का यही कहना होगा कि वे लघु बैंक वाली पहचान से मुक्ति और सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) बैंक बनना चाहते हैं। आरबीआई द्वारा लघु वित्त बैंकों को बड़े सार्वभौमिक बैंकों में तब्दील करने पर विचार करने से जुड़े फैसले पर इस उद्योग के सभी लोगों को राहत मिली है।
बैंक सेवाओं से वंचित उधारकर्ताओं तक पहुंचने के लिए आरबीआई ने एसएफबी मॉडल का प्रयोग करने का फैसला किया था। ज्यादातर एसएफबी सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनैंस) संस्थान थे और उन्होंने इन वंचित उधारकर्ताओं को सेवाएं देने के लिए अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन जहां तक जमा राशि संग्रह करने की बात की जाए तो उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा है क्योंकि उन्हें जमा के लिए सार्वभौमिक बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती रही है।
एसएफबी के सार्वभौमिक बैंक बनने के लिए पात्रता मानदंड क्या हैं?
सभी एसएफबी में से केवल एक एयू स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड ही इन सभी शर्तों को पूरा करता है जो सबसे बड़ा लघु वित्त बैंक है। बाकी में उज्जीवन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड को छोड़कर कोई भी एनपीए मानदंड को पूरा नहीं करता है। लेकिन उज्जीवन एसएफबी के पास विविधता वाला ऋण पोर्टफोलियो नहीं है जो कि इक्विटास स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड, जन लघु वित्त बैंक लिमिटेड और शायद एक और लघु वित्त बैंक के पास है। आरबीआई ने उन एसएफबी की शेयरधारिता को लेकर अपने कदम को स्पष्ट किया है जो सार्वभौमिक बैंक का दर्जा पाना चाहते हैं।
पात्र लघु वित्त बैंक को इस तरह के बदलाव के लिए बाकायदा विस्तृत तर्क देने होंगे। आरबीआई सार्वभौमिक बैंकों के लिए लाइसेंसिंग मानदंडों के माध्यम से इसके आवेदन की जांच करेगा।
इस बदलाव के लिए तर्क स्पष्ट है: सभी एसएफबी एक ही संस्थान के भीतर दो बैंक की तरह काम कर रहे हैं जिसमें परिसंपत्ति के लिए एक एसएफबी और देनदारियों के लिए एक सार्वभौमिक बैंक है। वे लोगों और उद्यमों को ऋण दे रहे हैं जो आमतौर पर सार्वभौमिक बैंकों की सेवाएं नहीं लेते हैं। लेकिन जहां तक जमा का सवाल है, उसके लिए उन्हें महानगरों वाले बाजार में सार्वभौमिक बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। जमा के लिए उनके पास एकमात्र तरीका यह है कि वे ग्राहकों को जमा पर उच्च दरों की पेशकश करें।
इनके नाम में ‘लघु’ जुड़ने का बड़ा नुकसान होता है। कई भावी जमाकर्ता इस तरह के बैंकों में अपना पैसा रखने से पहले दो बार सोचते हैं क्योंकि उन्हें हमेशा इस बात को लेकर हैरानी होती रहती है कि आखिर इन्हें लघु बैंक क्यों कहा जाता है। भले ही इन सभी को अनुसूचित बैंक का दर्जा हासिल है लेकिन इसके बावजूद अनेक जमाकर्ताओं को ऐसा लगता है कि लघु बैंक पैसे रखने के लिए सुरक्षित हैं या नहीं। अगर सामान्य तरीके से देखा जाए तो एसएफबी के सामने सबसे बड़ी चुनौती जमा हासिल करने की है। दरअसल इन लघु वित्त बैंकों को ऊंची दरों पर भुगतान करना पड़ता है, इसलिए सार्वभौमिक बैंकों की तुलना में इनकी पूंजी लागत अधिक होती है। वे अब भी प्रबंधन करने की स्थिति में हैं और मुनाफे के साथ अपना कारोबार कर सकते हैं क्योंकि वे आमतौर पर छोटे उधारकर्ताओं से उच्च दर वसूलते हैं।
जिस वक्त इनके नाम से ‘लघु’ हट जाएगा इनकी पूंजी की लागत घट जाएगी। इन्वेस्टेक बैंक पीएलसी ने हाल में कहा है कि लघु वित्त बैंकों के सार्वभौमिक बैंक में बदलने के बाद, फंड की लागत 20 आधार अंकों तक कम हो सकती है, जिससे इक्विटी पर रिटर्न में 60 आधार अंकों की वृद्धि होगी।
इसके अलावा इसके कुछ अन्य लाभ भी हैं। एक एसएफबी को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को सेवाएं देनी होती है और यह कुल ऋण में से करीब 75 प्रतिशत तक होना चाहिए। वहीं सार्वभौमिक बैंक के लिए प्राथमिकता वाले ऋण की आवश्यकता बेहद कम करीब 40 प्रतिशत तक है। प्राथमिकता वाले क्षेत्र में कम ऋण के चलते एसएफबी से सार्वभौमिक बैंक बने संस्थान को लाभदायक तरीके से ऋण परिसंपत्ति का प्रबंधन बेहतर तरीके से करने में मदद मिलेगी।
एक एसएफबी के लिए 15 फीसदी पूंजी पर्याप्तता अनुपात की आवश्यकता होगी। यानी प्रत्येक 100 रुपये के ऋण पर 15 रुपये की पूंजी चाहिए होगी। (यह मानते हुए कि शत-प्रतिशत पूंजी की आवश्यकता है।
व्यक्तिगत ऋण जैसे ऋणों के लिए, पूंजी की आवश्यकता करीब 125 प्रतिशत तक है।) सार्वभौमिक बैंक के लिए इस तरह की आवश्यकता बहुत कम है और यह केवल 11.5 प्रतिशत (9 प्रतिशत के साथ 2.5 प्रतिशत पूंजी संरक्षण भंडार के रूप में) तक है। कम पूंजी आवश्यकता के ज्यादा लाभ हैं। पहले उन्हें 100 रुपये का ऋण देने के लिए 15 रुपये की आवश्यकता थी। एक बार जब वे एक सार्वभौमिक बैंक बन जाएंगे तब उन्हें 100 रुपये के ऋण पर केवल 11.5 रुपये देने होंगे।
कुल मिलाकर, वे इक्विटी पर उच्च रिटर्न के साथ अधिक लाभदायक हो जाएंगे। भारतीय बैंकिंग तंत्र में सार्वभौमिक बैंक का दबदबा है और यहां एसएफबी के अलावा कई तरह के बैंक हैं जैसे कि सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, स्थानीय क्षेत्र बैंक और पेमेंट बैंक। एसएफबी और पेमेंट बैंक बैंकिंग क्षेत्र में अपेक्षाकृत नए बैंक हैं और पिछले दशक की दूसरी छमाही में इनकी उपस्थिति दर्ज की गई है।
अब यह सर्वविदित है कि पेमेंट बैंक एक श्रेणी के तौर पर विफल है। आखिरकार एक पेमेंट बैंक ऐसा क्या कर सकते हैं जो एक सार्वभौमिक बैंक नहीं कर सकते हैं? केवल भुगतान के क्षेत्र में काम करने वाले किसी बैंक का कारोबारी मॉडल क्या है?
इसके उलट एसएफबी एक अलग ही कहानी है। आमतौर पर इनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। नोटबंदी और कोविड महामारी जैसी घटनाओं ने उन्हें यह सबक दिया है कि वे अपने ऋण पोर्टफोलियो में विविधता लाएं क्योंकि लघु असुरक्षित ऋण पर बाहरी घटनाक्रम का हमेशा तेजी से प्रभाव पड़ता है।
जमा हासिल करने की चुनौती के अलावा एसएफबी को अनुपालन लागत से जुड़ी दिक्कतें भी महसूस हुई हैं। निजी बातचीत में कुछ प्रवर्तक यह स्वीकार करते हैं कि अगर उन्हें पहले जानकारी होती तब वे किसी बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन ही नहीं करते और उनके मुताबिक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के दौर वाले दिन बेहतर थे। अगर वे सार्वभौमिक बैंक बन जाते हैं तब भी हालात में बहुत बदलाव नहीं दिखेगा क्योंकि आरबीआई ने अपनी निगरानी के तरीके में बदलाव किया है।
ज्यादातर एसएफबी का एक लघु बैंक होना उनके सफर का हिस्सा है और यह गंतव्य नहीं है। हालांकि इनमें से कई की दिलचस्पी मुख्यधारा का बैंक बनने की होगी और जब वे पात्र होंगे तब मुझे इस बात को लेकर संदेह है कि आरबीआई नई इकाई का स्वागत एसएफबी की तरह करेगा जैसा कि सब तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाने के काम पर अमल करने के लिए एसएफबी का किया गया था।