फरवरी 2022 में उपभोक्ताओं की धारणा मजबूत होती दिख रही है। इस महीने अब तक गुजरे तीन हफ्तों में प्रत्येक में उपभोक्ता धारणा सूचकांक (आईसीएस) मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह के बाद किसी भी सप्ताह की तुलना में अधिक रहा। मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह में कोविड-19 महामारी के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने कड़ी पाबंदी लगा दी थी। शुरुआती रुझानों के अनुसार लॉकडाउन के बाद से फरवरी में उपभोक्ता धारणा सूचकांक शीर्ष स्तर पर पहुंचता दिख रहा है।
यह प्रगति बहुत महत्त्व रखती है क्योंकि यह इस बात का संकेत है कि जुलाई 2021 से उपभोक्ताओं की धारणा में सुधार का शुरू हुआ सिलसिला जारी है। पिछले आठ महीनों के दौरान सूचकांक का निरंतर आगे बढऩा सुधार की गति जोर पकडऩे का संकेत है। इससे यह भी पता चलता है कि देश में परिवारों की धारणा में धीरे-धीरे लगातार सुधार हो रहा है।
इससे पहले दिसंबर में उपभोक्ता धारणा सूचकांक में कमी आई थी और जनवरी में केवल कुछ हद तक ही भरपाई हो पाई थी। अब आंशिक आंकड़े संकेत दे रहे हैं कि सुधार का सिलसिला जारी है और ऐसा लगता है कि फरवरी में सूचकांक अपनी पूर्ण रफ्तार की तरफ लौट सकता है। उपभोक्ता धारणा सूचकांक में सुधार का सिलसिला फिर शुरू होना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आर्थिक सुधार का सारा दारोमदार काफी हद तक इस पर टिका है। उपभोक्ता धारणा देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सबसे बड़े हिस्से निजी उपभोग में शामिल तथ्यों को परिलक्षित करती है।
यह सूचकांक इस बात का संकेत देता है कि लोग अपनी आर्थिक स्थिति और निकट भविष्य में अपनी आय की संभावनाओं को लेकर क्या सोचते हैं। यह आर्थिक हालात को लेकर लोगों की राय और गैर-आवश्यक वस्तुओं पर खर्च करने की उनकी क्षमता से जुड़ी अवधारणा का परिचय देता है। अगर अपनी आर्थिक स्थिति और भविष्य को लेकर सकारात्मक रुख रखने वाले परिवारों की तादाद बढ़ती है तो अर्थव्यवस्था में सुधार की गति तेज होने की संभावना बढ़ जाती है।
लॉकडाउन के बाद देश की आर्थिक स्थिति में हुए सुधार के बाद एक आर्थिक संकेतक के तौर पर उपभोक्ता धारणा मोटे रूप में सबसे अधिक सुस्त रही है। नियमित अंतराल पर तेजी से आने वाले संकेतकों ने लॉकडाउन की वजह से हुए आर्थिक नुकसान से तेजी से उबरने के संकेत दिए मगर उपभोक्ता धारणा ने ऐसी कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। उपभोक्ताओं की धारणा पर कोविड-19 महामारी की तीनों लहर का असर हुआ था। दूसरी और तीसरी लहरों से उपभोक्ताओं की धारणा तो सुधर गई मगर इन रुकावटों से एक सुस्त गति से सुधार में भी खलल पड़ गई।
उपभोक्ता धारणा सूचकांक अब भी पहली लहर की चोट से नहीं उबर पाया है। उम्मीद की जा रही है कि फरवरी 2022 में उपभोक्ता धारणा सूचकांक 62 के स्तर से ऊपर रह सकता है। सितंबर-दिसंबर 2015 में सूचकांक का आधार 100 था। सितंबर 2019 में यह 110 के स्तर पर पहुंच गया था और फरवरी 2020 में यह 105 के स्तर पर था। उसके बाद देश में लॉकडाउन लग गया। पहले लॉकडाउन के झटके के दो वर्षों बाद सूचकांक अब भी कोविड महामारी के पूर्व की स्तर की तुलना में 41 प्रतिशत नीचे है। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि उपभोक्ताओं के लिए तेजी से नियमित अंतराल पर आने वाले आर्थिक आंकड़ों पर विश्वास करना कितना कठिन रहा है। अब उपभोक्ताओं का आत्मविश्वास अब बढ़ रहा है।
फरवरी के पहले सप्ताह में 11.8 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनकी वर्तमान आय एक वर्ष पहले की तुलना में अधिक है। एक वर्ष पहले यह अनुपात केवल 5.1 प्रतिशत था। अप्रैल 2020 से लेकर दिसंबर 2021 तक यह एक अंक में था। जनवरी 2022 में यह दो अंकों में आ गया और 11.4 के स्तर पर पहुंच गया। अब फरवरी में 11.8 प्रतिशत का आंकड़ा थोड़ी मजबूती का परिचायक है। 20 फरवरी, 2022 को समाप्त हुए सप्ताह में यह 12.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया था। संभवत: अपनी आय को लेकर परिवारों का आत्मविश्वास थोड़ा बढ़ा है। हालांकि उपभोक्ताओं का आत्मविश्वास कोविड महामारी से पहले के स्तर तक पहुंचने में अभी लंबा समय लगेगा। उपभोक्ता का आत्मविश्वास फरवरी में 30.6 प्रतिशत था। ज्यादातर परिवार भविष्य में अपनी आय को लेकर आशावादी हैं। फरवरी के पहले तीन सप्ताहों में करीब 11.5 प्रतिशत परिवारों को लगा कि अगले एक वर्ष की अवधि में उनकी आय अधिक हो जाएगी। अप्रैल 2020 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब इतने बड़े अनुपात में परिवार भविष्य में अपनी आय को लेकर आशावादी हैं। कोविड महामारी के दौरान यह उत्साह कम दिखा था। मगर महामारी से पहले यह अनुपात करीब 30 प्रतिशत के साथ ऊंचे स्तर पर था। इस लिहाज से काफी नुकसान की भरपाई करनी है। जो भी हो, हाल के महीनों में हुई भरपाई का असर दिख रहा है क्योंकि परिवार गैर-जरूरी वस्तुओं पर अब खर्च करने में अधिक दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
अधिक आय और भविष्य में इसमें इजाफा होने की उम्मीद रखने वाले परिवारों की अधिक संख्या का असर उन परिवारों के अनुपात पर भी दिखा जिन्हें लग रहा है कि वर्तमान समय गैर-जरूरी वस्तुएं खरीदने के लिए उपयुक्त है। फरवरी 2022 के पहले तीन हफ्तों में नौ प्रतिशत परिवारों को लगा कि एक वर्ष पहले की तुलना में उपभोक्ता वस्तुएं (कंज्यूमर ड्यूरेबल्स) खरीदने का यह माकूल समय है। अप्रैल 2020 में केवल केवल 2 प्रतिशत और मई 2020 में केवल 1.5 प्रतिशत परिवारों को लगा था कि उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए तत्कालीन समय उपयुक्त था। यह भी सच है कि कोविड महामारी से पूर्व की तुलना में मौजूदा समय अनुकूल नहीं है। कोविड महामारी से पहले करीब 27 प्रतिशत परिवार कंज्यूमर ड्यूरेबल्स पर खर्च करने के लिए तैयार थे। हाल के महीनों में उपभोक्ता वस्तुएं और गैर-जरूरी वस्तुएं खरीदने के प्रति लोगों का बढ़ता उत्साह आर्थिक सुधार का एक बेहतरीन संकेत है। हालांकि पूर्ण सुधार होने में अब भी समय लगेगा।
