यह कंपनियों के तिमाही नतीजे आने का दौर है और कंपनियों के मुनाफे या घाटे के आंकड़ों के साथ ही शेयर बाजार के जानकार, कारोबारी खबरें देने वाला मीडिया तथा कंपनियों के मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) बताने लगते हैं कि उपभोक्ता मांग कैसी है और लोग कितनी खरीदारी कर रहे हैं। अक्सर ये अनुमान विश्लेषकों के पसंदीदा क्षेत्रों जैसे एफएमसीजी, कार या स्मार्टफोन में बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों का प्रदर्शन देखकर लगाए जाते हैं। लेकिन अच्छा तब होता, जब ये सारी बातें यह समझने के बाद कही जातीं कि परिवारों में रोजगार की स्थिति क्या है, आय कितनी है, क्या धारणाएं हैं और किन चीजों पर खर्च किया जा रहा है।
कंपनियों के नतीजों को समझने के लिए हमें देखना चाहिए कि उपभोक्ताओं की मांग पर कौन से कारक असर डाल रहे हैं। इससे हमें सही जानकारी मिल जाएगी। ऐसा नहीं करने पर अलग-अलग दिशाओं की ओर संकेत कर रहे आंकड़े भ्रम को और बढ़ा देते है। कंपनियां की बिक्री पर इस बात का असर भी पड़ता है कि वे क्या चुनती हैं मसलन किस क्षेत्र में दांव लगाया जाएगा, होड़ किस तरह की जाएगी और योजनाओं को किस तरह अमल में लाया जाएगा।
इसलिए कंपनियों की बिक्री को केवल उपभोक्ताओं की मांग का आईना नहीं माना जा सकता। पिछली कुछ तिमाहियों में प्रमुख रुझान यह था कि उपभोक्ता प्रीमियम उत्पादों की ज्यादा मांग कर रहे हैं। इस तिमाही में ग्रामीण मांग का पटरी पर लौटना और शहरी मांग में नरमी रहना नया रुझान है।
प्रीमियम होने के मायने
प्रीमियम होना यानी महंगे और बेहतर उत्पादों की बिक्री बढ़ना कई तरह से होता है इससे हमें खरीदारी के मामले में उपभोक्ताओं की पसंद के बारे में काफी अंदाजा मिल जाता है। कई बार कंपनियां अधिक आय वाले ग्राहकों पर ध्यान देने की नीति बनाती हैं। ये ग्राहक ज्यादा महंगा और उम्दा सामान खरीदते हैं क्योंकि अब अमीर लोग और भी अमीर होते जा रहे हैं, जिसकी वजहें सभी को मालूम हैं।
अगर कंपनियों की रणनीति काम नहीं करती तो इसका मतलब यह नहीं है कि अमीर उपभोक्ता दिक्कतों में पड़े हैं या उनकी आय पहले की तरह नहीं बढ़ रही। मुमकिन है कि कंपनियों की प्रीमियम उत्पादों की रणनीति कारगर नहीं हो रही हो क्योंकि हर क्षेत्र में होड़ बढ़ती जा रही है। अक्सर किसी श्रेणी में प्रीमियम उत्पाद साफ तौर पर दूसरे उत्पादों के मुकाबले बहुत तेजी से बिक रहे होते हैं। इसका मतलब यह नहीं लगाना चाहिए कि अमीर उपभोक्ताओं की आमदनी फिर बढ़ने लगी है। हो सकता है कि अमीर लोग दूसरों से ज्यादा खरीदारी कर रहे हों या यह भी हो सकता है कि उपभोक्ताओं की नजर में वह श्रेणी वाकई प्रीमियम बन रही हो।
हालांकि यह जरूरी नहीं है कि इसकी वजह से प्रीमियम श्रेणी की अगुआ कंपनी की बिक्री भी बढ़े। हाल ही में एक खबर थी कि त्योहारी दिनों की शुरुआत में नए स्मार्टफोन की मांग 3-4 प्रतिशत कम हो गई। मगर उपभोक्ताओं का तेजी से बढ़ता एक वर्ग अपने मौजूदा फोन को छोड़कर महंगा और बेहतर फोन खरीद रहा है। यह बात अलग है कि नया फोन खरीदने के बजाय वह रीफर्बिश्ड (ग्राहक द्वारा लौटाया गया नया फोन या मामूली खामी सही होने के बाद आया फोन) या सेकंड हैंड फोन ले रहा है। उपभोक्ताओं में यह चलन बना हुआ है।
अब वे ऑनलाइन पढ़ाई करने, काम करने या मनोरंजन के लिए बेहतर डिवाइस तलाश रहे हैं। इनके जरिये वे अपना समय भी बचाना चाहते हैं ताकि उसका इस्तेमाल कमाई बढ़ाने या परिवार के साथ अधिक समय बिताने में किया जा सके। इसी तरह बाजार में गारंटी के साथ अच्छी गुणवत्ता वाली सेकंड हैंड कार मिलने लगें तो नई और महंगी कारों की बिक्री कम हो सकती है।
ग्रामीण क्षेत्र में सुधार
पिछली कुछ तिमाहियों के बरअक्स इस तिमाही में कहा जा रहा है कि गांवों में बिक्री तेजी से बढ़ी है जबकि शहरों में एफएमसीजी की बिक्री में थोड़ी कमी आई है। लेकिन इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि अच्छी बारिश, बुनियादी सुविधाओं में बढ़त और सरकारी खर्च के कारण अब गांवों में मांग बढ़ती रहेगी। बड़ी एफएमसीजी कंपनियां थोक विक्रेताओं को लांघते हुए छोटे गांवों में अपना माल सीधे पहुंचाकर कारोबार बढ़ाने की संभावनाएं तलाशती रही हैं।
पहले छोटे गांवों में सीधे माल पहुंचाना मुनाफे का सौदा नहीं था मगर अब गांवों में लोग कम रहते हैं, अच्छी सड़कें और लॉजिस्टिक्स सेवा कम हैं डिजिटलीकरण की प्रक्रिया से लागत कम हो रही है।
इसलिए कारोबार के नजरिये से यह सही लगता है। ग्रामीण क्षेत्रों की आमदनी शायद उतनी नहीं बढ़ी है लेकिन गांवों में बिक्री बढ़ सकती है क्योंकि लोग सामान खरीदने लगेंगे और बड़ी कंपनियां छोटी और क्षेत्रीय कंपनियों के बाजार में सेंध लगा देंगी।
क्या इस बात के ठोस सबूत हैं कि गांवों में लोगों की आमदनी बढ़ी है? कुछ आंकड़ों के मुताबिक खेती में काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है लेकिन खेती से होने वाली आमदनी नहीं बढ़ रही है जिससे यह पता चलता है कि गांवों में लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। दूसरे आंकड़े बताते हैं कि मिश्रित खेती के कारण लोगों की आमदनी बढ़ रही है।
सीएमआईई के आंकड़ों से आमदनी में कमी का रुझान पता चलता है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले निर्माण क्षेत्र में नौकरियां कम हो रही हैं। नाबार्ड का सितंबर 2024 का ग्रामीण आर्थिक स्थिति एवं धारणा सर्वेक्षण बताता है कि पिछले एक साल में 80 प्रतिशत घरों में खर्च बढ़ा है लेकिन सिर्फ 37.6 फीसदी घरों की आमदनी बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक यह कर्ज में इजाफे और घरेलू बचत में कमी का नतीजा हो सकता है। इस पर अभी चर्चा जारी है और कोई निष्कर्ष नहीं निकला है।
शहरी मांग का जायजा
शहरी इलाकों में मध्यम स्तर की बाजार श्रेणी में उत्पादों की बिक्री घटने के पीछे उपभोक्ताओं से जुड़े कई कारण हैं। भारतीय रिजर्व बैंक का उपभोक्ता आत्मविश्वास सर्वेक्षण मूलतः शहरी आबादी का सर्वेक्षण होता है। उसमें बताया गया है कि पिछले साल की तुलना में लगभग हर मोर्चे पर उपभोक्ताओं की धारणा और विश्वास में कमी देखी गई है।
आमदनी के हिसाब से तीसरे और चौथे समूह के सबसे ज्यादा कमाने वाले परिवारों के पास भी अतिरिक्त धन बहुत कम है। जब महंगाई बढ़ती है तब पैसा भी ज्यादा खत्म होता है, इसलिए वे कम खरीदारी करते हैं। कुछ कंपनियों के यह बुरी खबर है लेकिन कुछ के लिए यह अच्छी खबर है क्योंकि लोग इसकी वजह से सस्ता सामान खरीदने लगते हैं।
इन कंपनियों पर शायद शेयर बाजार के जानकार ध्यान नहीं देते हैं। भारतीय उपभोक्ता बाजार अब पहले से ज्यादा जटिल हो गया है। पुराने तरीके और सोच अब कारगर साबित नहीं होंगे। हमें बाजार को गहराई से समझने की जरूरत है और कारण तथा प्रभाव के बीच के संबंध को भी समझना होगा।