वित्त वर्ष 2025 की जुलाई-सितंबर तिमाही अब खत्म होने वाली है और इस बात को लेकर गंभीर चर्चा चल रही है कि भारत के बैंकिंग उद्योग के लिए सबसे अच्छा समय गुजर चुका है या नहीं। यह समझने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण आंकड़ों पर करीब से नजर डालते हैं। उद्योग का सालाना परिचालन लाभ या चालू वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2025) की सितंबर तिमाही का परिचालन लाभ पिछले वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2024) की सितंबर तिमाही की तुलना में 20.27 प्रतिशत बढ़कर 1.27 लाख करोड़ रुपये से 1.52 लाख करोड़ रुपये हो गया है। वाणिज्यिक बैंक और निवेश बैंकों की तरह सभी तरह की सेवाएं देने वाले बैंकों (यूनिवर्सल) के अलावा, इसमें नौ लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) की कमाई भी शामिल है।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) अपने परिचालन लाभ में 51 प्रतिशत की वृद्धि के साथ आगे है और यह 19,417 करोड़ रुपये से बढ़कर 29,294 करोड़ रुपये हो गया है। अन्य बैंकों में आईडीबीआई बैंक लिमिटेड ने परिचालन लाभ में 45.12 फीसदी और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने 41.46 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है। केवल दो यूनिवर्सल बैंकों, इंडसइंड बैंक और कर्णाटका बैंक ने सालाना आधार पर परिचालन लाभ में कमी दर्ज की है। वहीं तिमाही आधार पर या वित्त वर्ष 2025 की जून की तिमाही की तुलना में सितंबर तिमाही में, इन दोनों बैंकों के अलावा कम से कम पांच अन्य बैंकों ने भी गिरावट दर्ज की है।
प्रावधान के बाद, बैंकिंग उद्योग के शुद्ध लाभ में 18.61 प्रतिशत (91,792 करोड़ रुपये) की बढ़ोतरी हुई है। एसबीआई ने 18,331 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ के साथ शीर्ष स्थान पर अपनी जगह बनाई है और इसके बाद एचडीएफसी बैंक (16,821 करोड़ रुपये) है। एसबीआई का शुद्ध लाभ 27.92 प्रतिशत और एचडीएफसी बैंक का 5.29 प्रतिशत बढ़ गया है।
तीन निजी बैंकों, इंडसइंड बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और आरबीएल बैंक ने अपने शुद्ध लाभ में गिरावट दर्ज की है। कुल मिलाकर, उनके प्रोविजन 26.68 प्रतिशत बढ़ गए हैं लेकिन आठ निजी बैंकों और सात सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अपने प्रावधानों में कटौती की है। बैंक के मुनाफे का प्रमुख कारक, शुद्ध ब्याज आमदनी (एनआईआई) है। इसमें सालाना आधार पर 8.99 प्रतिशत लेकिन तिमाही आधार पर महज 1.05 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। दो बैंकों ने सालाना आधार पर अपने एनआईआई में गिरावट दर्ज की है जबकि सात बैंकों ने तिमाही आधार पर इसमें गिरावट दर्ज की है।
31 सूचीबद्ध यूनिवर्सल बैंकों में से केवल दो ने एनआईआई में सालाना आधार पर गिरावट दर्ज की। हालांकि तिमाही आधार पर सात बैंकों ने गिरावट दर्ज की। एक और दिलचस्प बात यह है कि 13 बैंकों ने सालाना आधार पर एनआईआई में दो अंकों की वृद्धि दर्ज की है लेकिन तिमाही आधार पर यह संख्या दो तक सिमट गई है।
ऋण की बढ़ती लागत के चलते बैंकों के मुनाफे पर असर पड़ रहा है लेकिन अब इसमें गिरावट देखी गई है। उद्योग की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में सालाना आधार पर करीब 12 फीसदी (4.30 लाख करोड़ रुपये) की कमी आई और शुद्ध एनपीए 14.86 फीसदी (94,187 करोड़ रुपये) तक घट गया। कई बैंकों ने सालाना आधार पर और तिमाही आधार पर सकल और शुद्ध एनपीए में गिरावट दर्ज की है। सितंबर की तिमाही में प्रतिशत के आधार पर अधिकांश बैंकों के सकल और शुद्ध एनपीए में गिरावट आई।
बंधन बैंक का सबसे अधिक सकल एनपीए (4.68 फीसदी) था और इसके बाद सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (4.59 फीसदी), पंजाब नैशनल बैंक (4.48 फीसदी) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (4.36 प्रतिशत) का स्थान है। सरकारी बैंकों में एसबीआई का सबसे कम सकल एनपीए (2.13 फीसदी) है। केवल दो अन्य सरकारी बैंकों का 3 प्रतिशत से कम सकल एनपीए है। ये दो बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और इंडियन ओवरसीज बैंक हैं।
अच्छी बात यह है कि 31 सूचीबद्ध यूनिवर्सल बैंकों में से केवल 24 बैंकों का शुद्ध एनपीए 1 प्रतिशत से कम है। सरकारी बैंकों में, पंजाब ऐंड सिंध बैंक ही एकमात्र ऐसा बैंक है जिसका शुद्ध एनपीए 1 प्रतिशत से अधिक है और शेष छह निजी बैंक हैं। बैंक ऑफ महाराष्ट्र और आईडीबीआई बैंक का शुद्ध एनपीए सबसे कम महज 0.2 प्रतिशत है। अपेक्षाकृत बड़े बैंकों, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक , ऐक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक, इंडियन बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक का शुद्ध एनपीए 0.5 प्रतिशत से कम था।
एसबीआई का शुद्ध एनपीए 0.53 फीसदी है। वैसे परिसंपत्तियों की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं दिख रहा है इसलिए हम जमा की लागत और शुद्ध ब्याज मार्जिन की बात करते हैं जो बैंक द्वारा ऋण से मिलने वाले ब्याज और जमा के लिए भुगतान किए जाने वाले ब्याज के बीच का अंतर है। जब ऋण की लागत कम होती है तब बैंकों के प्रदर्शन के लिए अहम बात यह होती है कि पूंजी की लागत कितनी है और ब्याज के रूप में बैंक कितनी कमाई करते हैं।
सितंबर की तिमाही में तिमाही आधार पर और सालाना आधार पर कुछ बैंकों को छोड़कर अधिकांश बैंकों का एनआईएम घट गया। केवल चुनिंदा बैंकों ने इस अवधि के दौरान एनआईएम में सुधार किया है। इनमें से एक आईडीबीआई बैंक है। इसका एनआईएम जून तिमाही के 4.18 फीसदी से बढ़कर सितंबर तिमाही में 4.87 प्रतिशत हो गया। वित्त वर्ष 2024 की जून तिमाही में इसका एनआईएम 4.33 प्रतिशत था।
अधिकांश बड़े बैंकों ने पिछले एक साल में लगातार एनआईएम में गिरावट दर्ज की है। उदाहरण के तौर पर एसबीआई का एनआईएम सितंबर 2023 में 3.29 प्रतिशत था जो जून की तिमाही में घटकर 3.22 प्रतिशत हो गया और फिर सितंबर 2024 में और घटकर 3.14 प्रतिशत के स्तर पर आ गया। बड़े निजी बैंकों में भी यह समान रुझान देखा जा रहा है। गिरावट दर्ज करने के बावजूद सभी यूनिवर्सल बैंकों के बीच, बंधन बैंक ने सबसे ज्यादा एनआईएम (7.4 प्रतिशत) दर्ज किया। इसके बाद आईडीएफसी फर्स्ट बैंक (6.2 प्रतिशत) और आरबीएल (5.4 प्रतिशत) का स्थान है।
इसके बाद अब बारी है बैंकों के फंड की लागत की। चालू और बचत बैंक खाता (कासा) का प्रतिशत अधिक होने के साथ ही बैंकों के कुल फंड की लागत कम होती है। अधिकांश बैंकों के कासा अनुपात में कमी आ रही है। कुछ बैंकों में यह स्थिर है। सितंबर की तिमाही में केवल नौ बैंकों, चार निजी बैंकों और पांच सरकारी बैंकों का कासा 40 प्रतिशत से अधिक है।
बैंकिंग क्षेत्र ने फंसे ऋण से बचने के लिए अपनी जोखिम प्रबंधन क्षमता और बट्टा खाते में डालने के कौशल में सुधार किया है लेकिन इसे जमा बढ़ाने और पूंजी की लागत करने के नए तरीके पर काम करना होगा। इसमें निश्चित रूप से ग्राहकों की केंद्रीय भूमिका होगी।