राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते उत्तर प्रदेश में बुनियादी ढांचागत क्षेत्र का विकास बाधित हुआ है। मुख्यत: सड़क, बिजली और कानून व्यवस्था राज्य में विकास की गति में सबसे बड़ी बाधक रही।
पिछले 18 वर्षों से राज्य में राजनीति में बनी हुई अस्थिरता ने वहां के लोगों के कष्टों को और भी बढ़ा दिया। यह जानते हुए कि राज्य में बिजली की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, 14 वर्षों से उत्तर प्रदेश के किसी एक भी थर्मल या हाइड्रो संयंत्र की उत्पादन क्षमता में एक इकाई की भी बढ़ोतरी नहीं की गई।
बहुमत के साथ मायावती के सत्ता में आने के बाद बुनियादी ढांचा क्षेत्र में विकास की उम्मीद बनी है। अदालत और राज्य सरकार की ओर से ताज एक्सप्रेस-वे को मिली हरी झंडी और गंगा एक्सप्रेस परियोजना, दो मुख्य परियोजनाएं हैं, जो समय पर पूरी हो जाएं तो मायावती के राजनैतिक जीवन में चार चांद लग जाएंगे।
लिंक-वे के निर्माण के अलावा, मेट्रो रेल परियोजना और खुर्जा के जेवर में अंतरराष्ट्ररीय एयरपोर्ट का निर्माण भी कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण प्रयास हैं, जो पिछले साल मई में मायावती सरकार के सत्ता में आने के बाद किए गए। इस साल के अंत तक 6 विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) परियोजनाओं पर भी कार्य शुरू हो जाएगा। राज्य सरकार की ओर से इस विषय में सभी अनिवार्यताओं को पूरा कर लिया गया है।
सेज की स्थापना के लिए आए प्रस्तावों में अंसल प्रोपर्टीज ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर, आईवीआर प्राइम और मैक्स डीजी इन्फोटेक का नाम भी शामिल है। राज्य सरकार की ओर से सेज के लिए स्वीकृत प्रस्तावों में राज्य का पिछड़ा जिला चंदौली भी शामिल है, जहां प्रोटो डेवलपर्स ऐंड टेक्ोलॉजी ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है। अंसल लखनऊ में 10.5 हेक्टेयर जमीन पर सूचना प्रौद्योगिकी सेज स्थापित करेगा और दूसरा सेज लखनऊ में ही बायोटेक क्षेत्र में स्थापित करेगा।
आईवीआर प्राइम नोएडा के सेक्टर 144 में सूचना प्रौद्योगिकी सेज 10 हेक्टेयर भूमि पर स्थापित करेगा। गोल्डन टावर और मैक्स डीजी इन्फोटेक, दोनों नोएडा में ही 10 हेक्टेयर भूमि पर सूचना प्रौद्योगिकी सेज स्थापित करने की योजना बना रहे हैं, जबकि प्रोटो डेवलपर ने चंदौली में 11.60 हेक्टेयर भूमि की मांग की है।
राज्य सरकार ने गंगा एक्सप्रेस-वे परियोजना को चार चरणों में बांट दिया है, गाजियाबाद से फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद से रायबरेली, रायबरेली से ओरैया और ओरैया से बलिया। दूसरे चरण के लिए सबसे कम बोली जूम डेवलपर्स की थी, जबकि पूरी परियोजना के लिए जेपी समूह की बोली सबसे कम थी। पूरी परियोजना के लिए जेपी समूह ने जमीन अधिग्रहण के लिए 293 करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिया, जबकि दूसरी सबसे कम बोली का प्रस्ताव 365 करोड़ रुपये था।
मुख्य सचिव के निर्देशन में बनी कमिटी ने इस बोली का मूल्यांकन किया और मंत्रिमंडल को अपनी सिफारिशें भेंजी, जिन्हें मंत्रिमंडल ने गुरुवार को स्वीकृति भी दे दी।जेपी समूह को सरकार की ओर से दो महीने का समय अनुदान अनुबंध के लिए दिया गया है। इसके बाद 9 महीने का समय वित्तीय प्रस्ताव जमा करने और 11 महीने के भीतर ही इस परियोजना पर निर्माण कार्य भी शुरू किया जाएगा।
इस परियोजना को पूरा करने के लिए जेपी समूह को 4 वर्ष का समय दिया गया है। साथ ही सरकार ने इसमें जुर्माने का प्रावधान भी किया है, जिसके तहत एक्सप्रेस वे के शुरू होने में होने वाली देरी पर प्रतिदिन कुल लागत का 0.1 प्रतिशत बतौर जुर्माना देना होगा।
उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी सड़क परियोजना, गंगा एक्सप्रेस वे के लिए 5 बड़ी बुनियादी ढांचा मुहैया करवाने वाली कंपनियों ने अपनी बोलियां पेश की थी। रिलायंस एनर्जी, जेपी इंडस्ट्रीज, जूम डेवलपर्स, यूनिटैक और गैमन इंडिया ने 30 हजार करोड़ रुपये वाली गंगा एक्सप्रेस वे (1047 किलोमीटर लंबा) परियोजना के लिए पिछले रविवार बोलियां लगाई थीं।
राज्य सरकार ने बोली लगाने वालों के सामने कई शर्तें रखीं थीं, जिनमें परियोजना के दौरान बेघर हुए लोगों के पुनर्वास की शर्त भी शामिल थी। इसके लिए जिस कंपनी ने एक्सप्रेस वे के दोनों ओर कम भूमि की मांग की थी, उसे ही परियोजना के लिए प्राथमिकता दी गई थी।इसके अतिरिक्त राज्य सरकार ने राज्य में यात्रा को आरामदायक बनाने के लिए 74 पुलों और सबवे का निर्माण कार्य भी शुरू है।