पिछले कुछ हफ्तों से पूरे मुल्क का ध्यान विभिन्न राजनीतिक व आर्थिक हलचलों पर है।
इनमें महंगाई, राजनीतिक उठापटक, आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव, रियल स्टेट और इक्विटी बाजार की बुरी हालत और इंडियन प्रीमियर लीग जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। इन तमाम घटनाओं की आंधी में मीडिया, राजनेता और गड़े मुर्दे उखाड़ने वाले विभिन्न लोगों ने एक अद्भुत परिघटना को नजरअंदाज कर दिया।
पिछले कुछ महीने में भारतीय रिटेल सेक्टर में अद्भुत बदलाव देखने को मिल रहा है, लेकिन किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं गया। गौरतलब है कि 2006-07 में रिलायंस रिटेल द्वारा मिड लेवल मैनेजरों की नियुक्ति की अफवाह भी खबरों की सुर्खियां बन जाती थीं। उस वक्त लेफ्ट समेत अन्य दलों के प्रवक्ता संगठित संगठित रिटेल के खिलाफ अक्सर जहर उगलने से बाज नहीं आते थे।
इसके अलावा आधुनिक रिटेल के प्रभाव पर आईसीआरआईईआर की रिपोर्ट का इतंजार इतनी शिद्दत के साथ किया जा रहा था, जितनी शायद हैरी पॉटर सीरीज की लेखिका जे. के. रोलिंग की किताब का भी नहीं किया गया होगा। भारती रिटेल (या वॉल मार्ट का?) द्वारा हाल में लुधियाना में ईजीडे सुपरमार्केट खोले जाने पर देश की चुप्पी हैरान करने वाली है।
साथ ही कुछ हफ्ते पहले आदित्य बिड़ला रिटेल ने अपना पहला हाइपरमार्केट खोला है, लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। हाल में एक अंतरराष्ट्रीय रिटेल फोरम में शॉपर्स स्टॉप को प्रतिष्ठित ‘इमर्जिंग मार्केट रिटेलर ऑफ द ईयर’ पुरस्कार से नवाजा गया है और इस कंपनी के एमडी बी. एस. नागेश को रिटेल की दुनिया के नामीगिरामी लोगों की फेहरिस्त में शामिल किया गया है।
इस फेहरिस्त में दुनिया की प्रमुख रिटेल कंपनियों की जानी-मानी हस्तियां शामिल हैं। इसके बावजूद मीडिया ने भारत को रिटेल सेक्टर में मिलने वाली इस अंतरराष्ट्रीय मान्यता को नजरअंदाज कर दिया। याद रहे कि शॉपर्स स्टॉप संगठित रिटेल सेक्टर की ऐसी कंपनी है, जो पूरी तरह से देश में विकसित हुई है।
हालांकि, इस बात पर हमें सुखद आश्चर्य भी हो रहा है कि रिलायंस की अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त रिटेल कंपनी मार्क्स एंड स्पेन्सर्स के साथ संयुक्त उपक्रम संबंधी करार का आधुनिक और अंतरराष्ट्रीय रिटेल के धुर विरोधियों ने भी स्वागत किया है।
बहरहाल यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि आधुनिक रिटेल के मामले में भारत परिपक्व हो चुका है। लेकिन यह बात जरूर है कि पारंपरिक रिटेल का आधुनिक रिटेल के साथ सामंजस्य स्थापित हो रहा है। कई आधुनिक रिटेल कंपनियों का कारोबार इस वित्तीय वर्ष के अंत या अगले वित्त वर्ष तक 1 अरब डॉलर या इसे ज्यादा होने जाने की उम्मीद है।
इसके अलावा इनके राजस्व में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इस बढ़ोतरी के बावजूद सामाजिक-आर्थिक उथलपुथल की स्थिति नजर नहीं आ रही है, जैसी कि आशंका जताई जा रही थी।ऊंची महंगाई दर ने संगठित राष्ट्रीय और क्षेत्रीय रिटले चेनों के महत्व को और रेखांकित किया है। खासकर वैसे व्यवसायों के लिए, जिसमें कीमतों में रोज कमी-बढ़ोतरी होती है या छूट की गुंजाइश ज्यादा होती है।
इसके अलावा यह बात भी सुकून देता है कि हमारा मीडिया प्रमुख ग्लोबल रिटेल कंपनियों के भारत में प्रवेश या भारतीय कंपनियों से साझीदारी के मामले में ब्रेकिंग न्यूज की बीमारी से मुक्त हो रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मीडिया अब भारत में पहले काम कर रहीं बड़ी रिटेल कंपनियों के वास्तविक प्रदर्शन पर फोकस करना शुरू करेगा। साथ ही इस सेक्टर में युक्तिसंगत सरकारी नीति और नियामक के अभाव में मीडिया को इसका विकल्प बनने की भी कोशिश करनी चाहिए।
अगले 2 साल में भारतीय रिटेल सेक्टर में काफी अहम गतिविधियां देखने को मिलेंगी। बार्सिलोना में हाल में वर्ल्ड रिटेल कांग्रेस की बैठक संपन्न हुई है। इस सम्मलेन का आधिकारिक विषय तो ‘निरंतरता’ था, लेकिन असल में विषय था विकसित देशों में मंदी की सूरत होने की वजह से विकाशील देशों के बाजारों पर फोकस।
इसके मद्देनजर बैठक में भारत आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा और यहां मौजूद दुनियाभर की रिटेल कंपनियों में एकतिहाई कंपनियों के सीईओ ने भारत में अपनी गहरी दिलचस्पी जताई। इस सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी मिले या नहीं, आधुनिक रिटेल कारोबार (भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय कपनियां) के विकास की रफ्तार जारी रहेगी।
आधुनिक रिटेल सेक्टर का राजस्व सन 2013 या 2014 तक 100 अरब डॉलर (4 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच जाने की उम्मीद है। संभावना है कि साल 2018 या 2019 तक यह राजस्व 200 अरब डॉलर (8 लाख करोड़ रुपये) तक भी पहुंच सकता है। बहरहाल यह बात जरूर है कि इतने बड़े आंकड़े के बावजूद भारत में रिटेल खपत का यह महज 25 फीसदी हिस्सा होगा और इसके मद्देनजर पारंपरिक रिटेल के वर्तमान स्तर को देखते हुए 2008 में इसे 50 फीसदी की दर से विकास करना होगा।
ऐसे में सरकार को नजरें चुराने के बजाय इस हकीकत को स्वीकार करना चाहिए कि भारत को यहां के पारंपरिक रिटेल सिस्टम को सहारा देने के लिए दक्ष संगठित रिटेल की जरूरत है और दोनों एक-दूसरे के पूरक साबित हो सकते हैं। खासकर खाद्य सामग्रियों और अन्य बुनियादी जरूरतों के मामले में इस बात को बिल्कुल नहीं खारिज किया जा सकता।
इसके मद्देनजर सरकार को ऐसी नीति तैयार करनी चाहिए, जिसके जरिये पारंपरिक और संगठित रिटेल का सहअस्तित्व मुमकिन हो सके। पूंजी का निर्बाध प्रवाह भारतीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की रिटेल कंपनियों की ग्रोथ के लिए काफी आवश्यक है। इसे पहलू को ध्यान में रखते हुए पूंजी जुटाने में किसी तरह की नीतिगत बाधा भारत के लिए काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है। खासकर भारतीय रिटेलरों के लिए, जिन्हें ग्लोबल कंपनियों से मुकाबला करने के लिए काफी ज्यादा पूंजी की जरूरत पड़ेगी।