केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को जो निर्णय लिए वे संकट से जूझ रहे भारतीय दूरसंचार क्षेत्र को पुनर्जीवित करने तथा उसकी प्रतिस्पर्धी प्रकृति को बरकरार रखने की दृष्टि से अत्यंत अहम हैं। हालांकि निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाली दूरसंचार क्रांति ने देश की विकास गाथा को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है लेकिन बीते दशक में उठाए गए कई नीतिगत और न्यायिक कदमों ने इसे भारी दबाव में ला दिया है। इनमें से कुछ को सुधारने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने निर्णय लिए हैं और इस संदर्भ में सरकार के इरादे और निर्णय क्षमता की सराहना की जानी चाहिए।
केंद्रीय संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि मंत्रिमंडल ने ‘नौ ढांचागत बदलाव और पांच प्रक्रियागत’ सुधार किए हैं। इनमें एक बड़ा सुधार ऐसा है जिसकी चाह दूरसंचार कंपनियों को लंबे समय से थी। वह है ‘समायोजित सकल राजस्व’ अथवा एजीआर की परिभाषा को तर्कसंगत बनाना। एजीआर ही सरकार के प्रति कंपनियों के बकाये का आधार है। पहले एजीआर को हर प्रकार के राजस्व का आधार माना जाता था, बजाय कि कंपनी के मूलभूत दूरसंचार कारोबार से संबद्ध राजस्व के। सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि इस परिभाषा में समस्या है और इससे भविष्य में कंपनियों पर से वित्तीय बोझ कम करने में मदद मिलेगी। जैसा कि हालिया न्यायिक निर्णयों में कहा गया चूंकि यह अग्रगामी कदम है इसलिए कंपनियों पर कर्ज का भारी बोझ बना है।
लेकिन अब वे नकदी प्रवाह का अपेक्षाकृत बेहतर प्रबंधन कर सकेंगी क्योंकि मंत्रिमंडल ने इस क्षेत्र की बकाया राशि पर चार वर्ष के ऋण स्थगन की इजाजत दी है, बशर्ते कि इस अवधि का तयशुदा ब्याज चुकाया जाए। मंत्रिमंडल ने स्पेक्ट्रम और लाइसेंस शुल्क से जुर्माने की व्यवस्था को हटाने की योजना को भी मंजूरी दी है। उसने भविष्य की दूरसंचार लीज को दीर्घावधि वाला और अधिक लचीला बनाने की योजना भी बनाई है। आखिर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 100 फीसदी तक बढ़ाकर वैश्विक पूंजी के दूरसंचार कंपनियों में आने की राह को और अधिक आसान बनाया गया है।
शेयर बाजार ने भी इस खबर को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है क्योंकि इससे दूरसंचार क्षेत्र की तीन में से दो कंपनियों को अधिक अनुकूल माहौल मिलेगा। इस बात का स्पष्ट आभास है कि सरकार ने इस अहम क्षेत्र को उबारने में अपनी भूमिका निभा दी है।
इस क्षेत्र पर सरकारी कंपनियों का जो बकाया है उसे लेकर जताई जा रही चिंताओं ने भी इस निर्णय में अहम भूमिका निभाई होगी। अगला कदम खुद कंपनियों को उठाना चाहिए। उन्हें अभी भी कर्ज के बोझ से निपटना है और उनकी नीति यही होनी चाहिए कि कर्ज चुकाते हुए एक स्थायित्व भरा कारोबारी मॉडल कैसे बनाया जाए।
बिना प्रति उपभोक्ता औसत राजस्व बढ़ाए ऐसा करना संभव नहीं है। कंपनियों को ज्यादा नकदी जुटानी होगी ताकि वे निवेश बढ़ा सकें और अपने कर्ज का प्रबंधन कर सकें। नियामक को चाहिए कि वह उद्योग जगत को प्रीपेड 4जी टैरिफ समेत ऐसे टैरिफ की ओर बढऩे के लिए प्रोत्साहित करे जो दीर्घावधि में स्थायित्व भरा साबित हो।
वोडाफोन आइडिया को अतिरिक्त काम करना होगा क्योंकि उसके ऊपर काफी देनदारियां हैं। अब जबकि नीतिगत माहौल स्पष्ट है तो दीर्घावधि के निवेशकों से पूंजी जुटाना आसान होगा। आशा की जानी चाहिए कि सरकार के प्रयासों का नतीजा निकलेगा और यह क्षेत्र दो कंपनियों के वर्चस्व से उबर सकेगा। यह भी अहम है कि इस क्षेत्र में जरूरी पूंजी आए ताकि देश को डिजिटल भविष्य के लिए तैयार किया जा सके।