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रिजर्व बैंक: नए साल में नई राह या पुरानी लीक?

वर्ष 2025 में भारतीय रिजर्व बैंक का रुख क्या रहेगा? क्या फरवरी में दरें घटाई जाएंगी? घटाई गईं तो यह सिलसिला कब तक चलेगा? जायजा ले रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- January 21, 2025 | 9:26 PM IST

चीन के कैलेंडर के मुताबिक यह सांप का वर्ष है। चीन का करीब 2,000 साल पुराना कैलेंडर 12 साल के चक्र में चलता है और इसमें हर साल एक अलग जानवर के लिए होता है, जो चीनी पौराणिक कथाओं से जुड़ा होता है। इस चक्र में छठा जानवर सांप है, जो 2025 में केंद्र में होगा। चीन के कैलेंडर का यह सांप सुप्तावस्था या लंबी नींद के बाद जगकर जमीन से निकलता सांप है।

चूंकि सांप अपना केंचुल छोड़ता है, इसलिए यह किसी छिपी चीज से पर्दा उठने या कुछ नया शुरू होने का प्रतीक है। सांप को परिवर्तन, नई शुरुआत और आध्यात्मिक विकास से भी जोड़ा जाता है और यही कारण है कि जापान में सांप को बहुत शुभ माना जाता है। इस सर्प वर्ष में भारतीय बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में क्या नया होने वाला है? क्या सांप की केंचुल बदलने की तरह हम इस क्षेत्र में कुछ नया या बदलता देखेंगे? या निरंतरता के साथ सब बदलता रहेगा?

मगर जब कुछ बिगड़ा ही नहीं है तो उसे सही करने की क्या जरूरत है? इसलिए निरंतरता की बात हो रही है। मगर बदलाव की गुंजाइश इसलिए है कि तीन प्रमुख वित्तीय नियामक बदल सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक में नए गवर्नर आ ही चुके हैं और अब यहां एक नए डिप्टी गवर्नर आएंगे, जो मौद्रिक नीति का बेहद अहम विभाग देखेंगे। पूंजी बाजार नियामक और बीमा नियामक का कार्यकाल भी अगले कुछ महीनों में खत्म होने वाला है। हमें नहीं पता कि किसका कार्यकाल बढ़ाया जाएगा और किसे पद छोड़ना पड़ेगा। लेकिन इसमें परेशान होने की कोई बात भी नहीं है।

फरवरी में केंद्रीय बजट आने के फौरन बाद रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की घोषणा बड़ा मौका होगा। यह हर दो महीने में होने वाली नीतिगत बैठक भर नहीं होगी। अनिश्चितता का जो माहौल गवर्नर की नियुक्ति से पहले था वह रोज होता भी तो नहीं है। वित्त मंत्रालय की दिसंबर की मासिक आर्थिक रिपोर्ट में एक खास बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि मौद्रिक नीति के रख, केंद्रीय बैंक के सतर्कता भरे व्यापक आर्थिक उपायों और व्यवस्थागत कारकों से मंदी आई होगी। इससे महंगाई और वृद्धि पर सरकार तथा केंद्रीय बैंक का जुदा रुख पता चलता है।

क्या फरवरी में ब्याज दरें घटेंगी? और रिजर्व बैंक इन्हें घटाता है तो कटौती का सिलसिला लंबा होगा या छोटा? साथ ही वह वित्तीय प्रणाली में नकदी किस तरह बढ़ाएगा?

एक बार दुनिया पर नजर डालते हैं। दिसंबर के तीसरे हफ्ते मे अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में चौथाई फीसदी कटौती की, जिससे ब्याज दर 4.25-4.5 फीसदी हो गई। लगातार तीन बार कटौती के बाद फेड की ब्याज दर पूरे 1 फीसदी घट चुकी है। दिसंबर में ब्याज दर कटौती से किसी को हैरानी नहीं हुई लेकिन बाजार ने यह सोचा तक नहीं था कि चौथाई फीसदी की कटौती चार के बजाय दो बार ही की जाएगी। अब तो लग रहा है कि शायद एक बार ही होगी। लगभग उसी समय बैंक ऑफ इंगलैंड ने अपनी नीतिगत ब्याज दर जस की तस रखी। इससे पहले नवंबर में उसने इसे घटाकर 4.75 फीसदी किया था।

यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) ने दिसंबर में चौथी बार दरें घटाईं और 2025 में भी ऐसा करने की गुंजाइश रखी है क्योंकि यूरो जोन की अर्थव्यवस्था को राजनीतिक अस्थिरता से चोट पहुंच रही है और अमेरिका के साथ नए व्यापार युद्ध का खतरा भी मंडरा रहा है। ईसीबी नीतिगत दरें उदारता के साथ घटाता रहा है क्योंकि महंगाई की चिंता लगभग खत्म हो गई है।

वास्तव में विश्लेषक सोच रहे हैं कि ईसीबी वृद्धि की रफ्तार बढ़ाने के लिए पर्याप्त तेजी से दरें घटा रहा है या नहीं क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था बराबर कद वाले देशों से पिछड़ रही है और मंदी का खटका भी लग रहा है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में वृद्धि और मुद्रास्फीति का रिश्ता अलग-अलग होता है। बैंक ऑफ इंगलैंड ने दिसंबर में ब्याज दरें जस की तस रखीं क्योंकि वह मुद्रास्फीति के दबाव से जूझ रही मंद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उपाय खोजने में जुटा था।

इसके विपरीत अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें घटाई हैं मगर समग्र (हेडलाइन) मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ा दिया है। वर्ष 2025 में मुद्रास्फीति 2.5 फीसदी रहने का फेडरल रिजर्व का अनुमान है और उसे लगता है कि 2027 से पहले यह घटकर 2 फीसदी पर नहीं आ सकेगी। फेडरल रिजर्व ने दुनिया की इस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थ के वृद्धि अनुमान में भी इजाफा किया है। अब उसे 2024 में 2.5 फीसदी और 2025 में 2.1 फीसदी वृद्धि होती दिख रही है।
चीन में जो हो रहा है, उस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। वहां 30 साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड पहली बार जापानी बॉन्ड की यील्ड से भी नीचे चली गई। कम अवधि के बॉन्ड में भी यही रुझान दिखने लगेगा। इससे क्या संकेत मिल रहा है? इस सदी में वैश्विक वृद्धि को रफ्तार देने वाले देश के सामने शायद जापानीकरण का जोखिम आ सकता है।

अब सवाल है कि रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच के संबंधों को कैसे देखेगा? चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटकर 5.4 फीसदी रह गई, जिसके बाद रिजर्व बैंक ने भी वित्त वर्ष 2025 के लिए अपना जीडीपी वृद्धि 7.2 फीसदी से नीचे लाकर 6.6 फीसदी कर दिया है। साथ ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति का अनुमान 4.5 फीसदी से बढ़ाकर 4.8 फीसदी कर दिया गया है। रिजर्व बैंक का सहज मुद्रास्फीति लक्ष्य 4 फीसदी है, जिससे 2 फीसदी कम और ज्यादा में उसे कोई एतराज नहीं होगा।

इस बीच हमने रुपये के प्रति रिजर्व बैंक का दृष्टिकोण भी बदलते देखा है। पिछले साल रुपये का मूल्य डॉलर के मुकाबले लगभग 3 फीसदी कम हो गया और गिरावट अब भी जारी है। सितंबर और दिसंबर के बीच भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में काफी कमी आई और यह 704.9 अरब डॉलर से घटकर 640.3 अरब डॉलर रह गया। रुपये में तेज गिरावट रोकने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर की बिक्री और मूल्यह्रास के कारण यह गिरावट आई है।

वृद्धि और महंगाई के संबंध तथा रुपये और डॉलर की विनिमय दर से आगे बढ़ें तो इस क्षेत्र में दूसरे नियामकीय मुद्दों पर भी बारीक नजर रखी जाएगी। इनमें से एक ‘अपेक्षित ऋण नुकसान’ नियमों को लागू करना है। किंतु क्या रिजर्व बैंक इसकी गणना का तरीका बदलेगा? पहले बैंक तभी नुकसान दिखाते थे, जब कोई कर्जदार पैसे नहीं लौटाता था। नए नियम के मुताबिक अब बैंकों को कर्जदार के मुकरने का इंतजार करने के बजाय पहले ही अनुमान लगाना होगा कि कौन से कर्ज वापस नहीं भरे जाएंगे यानी भविष्य में होने वाले नुकसान का अंदाजा उन्हें पहले ही लगाना होगा। बैंक इस नियम के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि इससे उनके मुनाफे पर चोट होगी। लेकिन रिजर्व बैंक को लगता है कि बैंकों की बैलेंसशीट मजबूत करने के लिए यह कदम उठाना जरूरी है।

यह भी देखना होगा कि बड़ी परियोजनाओं के लिए कर्ज देने के बारे में रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों का क्या होगा? इनका मसौदा मौजूदा नियामकीय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए है क्योंकि इनके तहत परियोजना के निर्माण के दौरान कम से कम 12 गुना ज्यादा रकम रखनी होगी। प्रोविजनिंग में इस इजाफे के साथ ही कर्ज देने वाली सभी संस्थाओं के लिए एक जैसे नियम भी लागू करने होंगे। यह मसौदा पिछले साल मई में जारी किया गया था।

बैंकिंग में दूसरी समस्याएं भी हैं। बैंकिंग क्षेत्र में परिसंपत्ति की गुणवत्ता तो अच्छी रही है मगर जमा और ऋण में वृद्धि काफी कम रही है। ऋण जमा अनुपात अधिक रहने और तरलता कवरेज अनुपात में प्रस्तावित बदलावों ने कर्ज में वृद्धि को प्रभावित किया है। इसके अलावा बैंक बिना कुछ रेहन रखे कर्ज यानी असुरक्षित ऋण देने तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को कर्ज देने के ज्यादा इच्छुक भी नहीं दिख रहे। क्या आगे भी यही जारी रहेगा?

माइक्रोफाइनैंस उद्योग की सेहत भी चिंता का विषय है। आम तौर पर ऐसी स्थिति कई साल में एकाध बार बनती है। लेकिन इस बार मामला अलग है क्योंकि यह समस्या खुद उद्योग ने पैदा की है। इन कंपनियों ने बैलेंसशीट बढ़ाने और कर्ज में फंसे लोगों को और भी कर्ज देकर मुनाफा कमाने में कुछ ज्यादा ही उत्साह दिखाया। इस चक्कर में कुछ कर्जदारों ने इतना उधार ले लिया कि अब वे उसे चुकाने की हालत में ही नहीं हैं। देखते हैं कि इस साल इसमें क्या होता है।

आखिर में वर्ष 2025 गणित की दुनिया में अनूठा है क्योंकि यह पूर्ण वर्ग है। जब 45 का वर्ग करते हैं यानी 45 को 45 से गुणा करते हैं तो 2025 प्राप्त होता है। पिछली बार 1936 पूर्ण वर्ग था और तब महामंदी चल रही थी तथा दूसरे विश्वयुद्ध का खतरा मंडरा रहा था। कोविड महामारी तो अब पीछे छूट गई है। उम्मीद करनी चाहिए कि आगे कोई खतरा नहीं आएगा।

First Published : January 21, 2025 | 9:26 PM IST