अमेरिका के फेडरल रिजर्व तथा चीन और ब्रिटेन के केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत दरें अपरिवर्तित रखने का ऐलान किया है। हालांकि, उन केंद्रीय बैंकों ने दरों में गिरावट की गुंजाइश बरकरार रखी है। इस सप्ताह भारत में भी मौद्रिक नीति की समीक्षा होनी है। अब सवाल यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का रुख क्या रहेगा?
इस सवाल का जवाब खोजने के पहले इस बात की पड़ताल कर लेते हैं कि फरवरी में नीतिगत दरों में कटौती के बाद क्या कुछ बदला है। मार्च के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आंकड़े मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के बाद जारी होंगे। फरवरी में सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति जनवरी के 4.31 प्रतिशत से कम होकर 3.61 प्रतिशत रह गई थी। मई 2023 के बाद खाद्य मुद्रास्फीति सबसे निचले स्तर पर थी जबकि प्रमुख मुद्रास्फीति (खाद्य एवं तेल शामिल नहीं) में थोड़ी तेजी आई थी।
अक्टूबर में सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति 6.21 प्रतिशत (आरबीआई द्वारा निर्धारित मुद्रास्फीति के सहज स्तर 4 प्रतिशत से अधिक) तक पहुंच गई थी मगर तब से इसमें गिरावट दिख रही है। नवंबर में यह कम होकर 5.48 प्रतिशत के स्तर पर आ गई और फिर दिसंबर में थोड़ी और कम होकर 5.22 प्रतिशत रह गई।
विश्लेषकों को लगता है कि सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति मार्च में और कम होकर लगभग 3.5 प्रतिशत स्तर के इर्द-गिर्द रह जाएगी। कुल मिलाकर, वित्त वर्ष 2025 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति आरबीआई के अनुमान 4.4 प्रतिशत तुलना में 4 प्रतिशत से नीच रहे सकती है। पूरे वर्ष के लिए यह लगभग 4.6 प्रतिशत रह सकती है जो आरबीआई के अनुमान 4.8 प्रतिशत से कम होगी।
हालात सामान्य रहे यानी मॉनसून सामान्य रहा और रुपये में स्थिरता बरकरार रही और कच्चे तेल के दाम कम रहे तो तो मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2026 के लिए आरबीआई के अनुमान 4.2 प्रतिशत से नीचे रह सकती है। 7 फरवरी को मौद्रिक नीति की घोषणा के दिन डॉलर 87.59 रुपये के स्तर पर कारोबार कर रहा था। मगर तब से रुपया लगातार मजबूत हुआ है। पिछले शुक्रवार को यह कारोबार के दौरान 84.95 का स्तर छूने के बाद डॉलर की तुलना में 85.23 के स्तर पर बंद हुआ। इससे पहले 18 दिसंबर, 2024 को डॉलर 85 रुपये के स्तर से नीचे कारोबार कर रहा था।
बॉन्ड पर यील्ड (प्रतिफल) में भी कमी दिख रही है। 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले बॉन्ड पर यील्ड 7 फरवरी को 6.7 प्रतिशत रही थी। पिछले शुक्रवार को यह 6.47 प्रतिशत थी जो जनवरी 2022 में दर्ज 6.5 प्रतिशत से नीचे थी। दूसरी तरफ, 364 दिनों की अवधि के ट्रेजरी बॉन्ड पर यील्ड इसी दौरान 6.54 प्रतिशत से कम होकर 6.3 प्रतिशत रह गई।
सबसे अधिक बदलाव नकदी के स्तर में देखा गया है। मध्य दिसंबर 2024 से वित्तीय तंत्र नकदी की किल्लत का सामना कर रहा था और यह कमी एक समय 3.3 लाख करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंच गई थी। मगर चार महीने से अधिक समय बीतने के बाद अप्रैल में नकदी अधिशेष स्थिति में आ गई। पिछले गुरुवार को अधिशेष नकदी 2.19 लाख रुपये तक पहुंच गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि आरबीआई उस दिन 14 दिवसीय परिवर्तनीय दर रीपो नीलामी से दूर रहा। इन बातों के मद्देनजर इस सप्ताह नीतिगत दर में एक और कटौती की जा सकती है।
फरवरी में आरबीआई ने रीपो रेट 25 आधार अंक कम कर 6.25 प्रतिशत कर दी थी। मई 2020 के बाद रीपो रेट में यह पहली कटौती थी जब आरबीआई ने कोविड महामारी के दौरान इसमें 40 आधार अंक कमी कर दी थी। फरवरी 2023 के बाद केंद्रीय बैंक ने इस साल फरवरी में पहली बार रीपो रेट में किसी तरह का बदलाव किया था।
हालांकि, फरवरी में मौद्रिक नीति के रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ था और इसे तटस्थ रखा गया था। नए आरबीआई गवर्नर संजीव मल्होत्रा के नेतृत्व में हुई पहली नीतिगत बैठक में भविष्य को लेकर कोई अनुमान नहीं दिया गया था मगर उन्होंने पर्याप्त नकदी उपलब्ध कराने की बात जरूर कही थी। मल्होत्रा ने कहा कि आरबीआई तेजी से बदलती नकदी एवं वित्तीय स्थितियों पर नजर रखेगा और व्यवस्थागत नकदी सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय कदम उठाएगा।
मल्होत्रा ने जो कहा है वह कर रहे हैं। आरबीआई डॉलर-रुपया खरीद-बिक्री लेन-देन (स्वैप), विभिन्न अवधियों की रोजाना परिवर्तनीय रीपो दर (वीवीआर) नीलामी और खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) के जरिये नकदी उपलब्ध करा रहा है।
सबसे पहले आरबीआई आरबीआई 42, 49 और 56 दिनों की दीर्घ अवधि की वीआरआर नीलामी लेकर आया और बाजार में 1.83 लाख करोड़ रुपये नकदी उपलब्ध कराई। जनवरी से केंद्रीय बैंक ने 2.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य के ओएमओ का संचालन किया है। 80,000 करोड़ रुपये मूल्य के एक अन्य ओएमओ की घोषणा की गई है जो 29 अप्रैल तक विभिन्न चरणों में पूरा होगा।
आरबीआई तीन वर्षों के डॉलर खरीद-बिक्री स्वैप के माध्यम से भी वित्तीय तंत्र में नकदी की कमी दूर कर रहा है। 25 अरब डॉलर मूल्य की विदेशी मुद्रा के लेन-देन के जरिये 2.15 लाख करोड़ रुपये नकदी डाल चुका है। ब्याज दरों में कटौती का लाभ पहुंचाने के लिए आरबीआई विभिन्न तरीके अपनाता रहेगा। नीतिगत रुख में बिना किसी बदलाव के ब्याद दर में कटौती के बाद आरबीआई दरों पर यथास्थिति रखने या जून में एक और कटौती के लिए गुंजाइश बरकरार रखेगा।
व्यापार युद्ध छिड़ने के बीच फिलहाल रुख में बदलाव बुद्धिमानी वाला कदम नहीं होगा। व्यापार युद्ध का भारत पर कितना असर होगा इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है मगर मुद्रास्फीति में कमी और फिलहाल रुपये के लिए बुरा दौर थमना सकारात्मक संकेत माने जा सकते हैं।
वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता बढ़ने के बावजूद आरबीआई के लिए गुंजाइश मौजूद है। केंद्रीय बैंक दरों में कमी कर सकता है, रुख तटस्थ रख सकता है और सरकार द्वारा व्यय बढ़ाने तक नकदी उपलब्ध कराना जारी रख सकता है।
फरवरी में आरबीआई ने वित्त वर्ष 2026 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। वित्त वर्ष 2025 के लिए उसने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के पहले अग्रिम अनुमान 6.4 प्रतिशत का हवाला दिया था। फिलहाल इन अनुमानों में बदलाव होते नहीं दिख रहे हैं।
समग्र मुद्रास्फीति आरबीआई के लक्ष्य के करीब रहने और आर्थिक वृद्धि दर सुस्त रहने के बीच आरबीआई भी दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह नीतिगत दरों में कमी कर सकता है। क्या आरबीआई वाकई ऐसा करेगा? यह तो अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ही बेहतर बता पाएंगे।