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आर्थिक वृद्धि में असंतुलन और भ्रष्टाचार का संबंध

भ्रष्टाचार खत्म करना नैतिक विषय ही नहीं है बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है। ऐसा करना खासकर, तब और जरूरी हो जाता है जब हम एक आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे हैं। बता रहे हैं देवाशिष बसु

Last Updated- May 09, 2023 | 7:46 PM IST
Relation between imbalance in economic growth and corruption
BS

पिछले सप्ताह मैं रसोई का सामान बनाने वाली एक कंपनी के निदेशक से बातचीत कर रहा था। उन्होंने बताया कि इन दिनों रसोई में उपयोग होने वाले बर्तनों एवं अन्य उपकरणों की बिक्री अधिक नहीं हो रही है। रसोई का सामान बनाने वाली दूसरी कंपनियों की कमजोर बिक्री के आंकड़े भी कुछ ऐसा ही कहते हैं। दूसरी तरफ, भारत में महंगी घड़ियां बेचने वाली सबसे बड़ी रिटेलर कंपनी ईथोस की बिक्री और शुद्ध मुनाफे में मार्च तिमाही के दौरान क्रमशः 44 प्रतिशत और 262 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। ईथोस ओमेगा, बाम ऐंड मर्सियर, टिसॉ, रेमंड वाइल जैसी महंगी घड़ियां बेचती है। इनमें प्रत्येक घड़ी की कीमतें लाखों रुपये मे होती हैं।

इसी तरह, अंडरवियर की बिक्री कम हुई है और दोपहिया वाहनों की बिक्री गिरकर 2012 के स्तर तक पहुंच चुकी है। वहीं, BMW की महंगी कारों की बिक्री 2012 में 37 प्रतिशत तक उछल गई है। इस तरह की असंतुलित वृद्धि को ‘K’-आकृति वाली वृद्धि दर कहते हैं। इसका अभिप्राय है कि अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में तो मजबूत वृद्धि दिखती है मगर कुछ क्षेत्र लगातार फिसलते जाते हैं।

कुल मिलाकर यह वृद्धि अंग्रेजी के ‘K’ अक्षर की तरह होती है जिसमें एक हिस्सा ऊपर जाता है जबकि दूसरा नीचे जाता है। ‘K’ आकृति वाली वृद्धि का सबसे दुखद पहलू यह है कुछ लोगों की आर्थिक प्रगति तेज रफ्तार से होती है मगर आबादी का एक बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से फिसलता जाता है।

सरकार ने इस असंतुलित वृद्धि पर अपनी प्रतिक्रिया के रूप में धनाढ्य लोगों पर थोड़ा और कर लगाकर आय में असमानता दूर करने का प्रयास किया है। जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं, यह एक बचकाना प्रयास होगा और इसका आर्थिक महत्त्व कम और राजनीतिक उद्देश्य अधिक होगा। जब तक सरकार इस आय असमानता या दूसरे शब्दों में कहें तो व्यय में असमानता के स्रोत तक पहुंचने का रास्ता नहीं तलाशती तब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आएगा।

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यह स्थिति हमें इस प्रश्न की ओर ले जा रही है कि भारत क्यों ‘K’ आकृति वाली वृद्धि से गुजर रहा है? केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिये देश के ग्रामीण क्षेत्रों में दोनों हाथों से पैसा डाल रही है। सरकार यह भी दावा करती आ रही है कि ‘जनधन’, ‘आधार’ और ‘मोबाइल’ के जरिये रकम सीधे लाभार्थियों तक पहुंच रही है और किसी भी तरह की लूट नहीं हो रही है।

यह संभव है कि वास्तविक महंगाई दर सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक रही हो जिससे मध्यम वर्ग और गरीब लोगों की व्यय क्षमता पर प्रतिकूल असर हुआ हो। मगर मैं कुछ हद तक यह अनुमान लगा सकता हूं कि क्यों कुछ धनाढ्य लोगों की आर्थिक स्थिति रोज नई बुलंदियां छू रही हैं। इसका संक्षिप्त उत्तर बड़े स्तर पर फैला भ्रष्टाचार है।

पिछले साल अप्रैल में भारत में कुछ असामान्य घटित हुआ। जो घटित हुआ उससे भारत ‘ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल’ के ‘भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक’ में विकासशील देशों में भी काफी निचले स्तर पर आ गया। कर्नाटक में सरकारी परियोजनाओं की देखरेख करने वाले ठेकेदारों ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कुछ मंत्री एवं विधायक परियोजनाओं का ठेका देने और बिल का भुगतान करने के लिए 40 प्रतिशत तक कमीशन मांग रहे हैं।

यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि भाजपा के कई नेताओं ने अपने परिवार के लोगों एवं सगे-संबंधियों को ठेकेदार बना दिया है। अगस्त में भी ऐसे ही आरोप लगाए गए और अब राज्य सरकार को ‘40 प्रतिशत कमीशन सरकार’ तक कहा जाने लगा है।

भाजपा सरकार में कथित रूप से कमीशन लेने की इस मारामारी में राज्य में कल्याणकारी योजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। राज्य सरकार की सरकारी विद्यालय परियोजनाएं तैयार करने वाले ठेकेदारों ने तो मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर धमकी दी कि अगर उनके बिल का भुगतान तत्काल नहीं किया गया तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे।

देश के सभी राज्यों, निगमों और पंचायतों में भ्रष्टाचार है मगर कर्नाटक में यह सभी सीमाएं पार कर गया है। हरेक सप्ताह अखबारों में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और उनके घरों से करोड़ों रुपये के नोट और आभूषण मिलने की खबरें छपती रहती हैं।

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फरवरी 2022 में ‘आउटलुक’ पत्रिका में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वी एन खरे का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ था। इस साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, ‘निचली अदालतों में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर है।‘ हरेक जगह भ्रष्टाचार से भारत की आर्थिक प्रगति बाधित हो रही है क्योंकि यह उद्यम, उत्पादकता और धन सृजन के चक्र को रोक देता है। हर जगह फैले भ्रष्टाचार से एक गलत संदेश यह भी जाता है कि ताकतवर लोगों (नेता एवं अधिकारियों) के लिए गलत तरीके से धन अर्जित करना और अनुचित व्यय करना लज्जा का विषय नहीं रह गया है।

एक दशक पहले भाजपा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सफल अभियान चलाया था और इससे उसे राजनीतिक लाभ भी मिला था। वह केंद्र के साथ एक के बाद एक कई राज्यों में भी सत्ता में आ गई। भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए कुछ उपाय भी किए जिनमें बेनामी जायदाद लेनदेन अधिनियम, 2016 भी शामिल था।

इस अधिनियम में बेनामी जायदाद जब्त करने का प्रावधान था। सितंबर 2021 तक भारत सरकार केवल 7,000 करोड़ रुपये मूल्य की संप​त्ति ही जब्त कर पाई। दूसरा कदम नोटबंदी था। इस कदम से काले धन पर लगाम तो नहीं लगा मगर आम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

2018 में कुछ विचित्र कारणों से सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 2018 में संशोधन कर दिया जिससे भ्रष्ट अधिकारियों की जांच एवं उनके खिलाफ मुकदमा चलाना कठिन हो गया। इस संशोधन से पहले आए कुछ अनुमानों के अनुसार भ्रष्टाचार निरोधक कानून में किसी के दोषी साबित होने की दर 20 प्रतिशत से भी कम थी। क्या सरकार भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने को लेकर वाकई गंभीर है। करण थापर के साथ साक्षात्कार में जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार से कोई वास्तविक परेशानी नहीं है।

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मैंने अपने पिछले स्तंभ में कहा था कि किसी गरीब देश को आर्थिक संपन्न होने और आय में असमानता कम करने के लिए कई वर्षों तक निरंतर ऊंची वृद्धि दर दर्ज करनी होगी। ऐसा होने पर ही करोड़ों लोग घनघोर गरीबी से बाहर निकल पाएंगे। ऐसा तभी संभव हो पाएगा जब महंगाई कम (2-3 प्रतिशत) रहेगी और ब्याज दर निचले स्तर पर और मुद्रा स्थिर रहेंगी।

मगर भारत में वास्तविक महंगाई दर ऊंचे स्तर पर है और रुपया भी कमजोर हुआ है जो आंतरिक आर्थिक कमजोरी का लक्षण है। यह ठीक उसी तरह है जब तेज बुखार शरीर में किसी संक्रमण का संकेत देता है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मामले में यह संक्रमण भ्रष्टाचार है जो लागत बढ़ाता है, निवेश घटाता है और उद्यमों को प्रभावित करने के साथ ही उत्पादकता पर असर डालता है।

इसका नतीजा ऊंची महंगाई, ऊंची ब्याज दरें और कमजोर रुपये के रूप में दिखता है। चारों तरफ से स्थितियां प्रतिकूल होने से लोगों के बीच उपभोग भी कम हो जाता है। भ्रष्टाचार खत्म करना ना केवल एक नैतिक विषय है बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है। ऐसा करना, खासकर, तब और जरूरी हो जाता है जब हम एक आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे हैं।

(लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक हैं)

First Published - May 9, 2023 | 7:46 PM IST

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