आर्थिक वृद्धि ऊंचे स्तरों पर पहुंचने के साथ मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहना सभी केंद्रीय बैंकों के लिए सैद्धांतिक रूप में एक खुशनुमा स्थिति होती है। हालांकि, किसी न किसी कारण से लगातार व्याप्त अनिश्चितता आधुनिक समय में केंद्रीय बैंकों के लिए परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण बना देती हैं। अनिश्चित आर्थिक हालात और हालिया नीतिगत उपायों पर विचार करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने बुधवार को नीतिगत रीपो दर 5.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रख कर उचित निर्णय लिया।
कुछ लोग रीपो दर में 25 आधार अंक की कटौती की उम्मीद कर रहे थे। हालांकि, एमपीसी ने नीतिगत दरों पर अब कोई कदम उठाने से पहले हाल में किए गए नीतिगत उपायों के प्रभाव को देखे जाने तक इंतजार करने का फैसला किया। उदाहरण के लिए बॉन्ड बाजार में ब्याज दरों में कटौती का असर कमजोर रहा है। दिलचस्प बात यह है कि एमपीसी ने अपने बयान में कहा कि मौजूदा व्यापक आर्थिक हालात और परिदृश्य ने आर्थिक वृद्धि को सहारा देने के लिए गुंजाइश बना दी है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति दर हाल के महीनों में आरबीआई के अनुमानों से कम रही है। इसे देखते हुए एमपीसी ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति अनुमान संशोधित कर 2.6 फीसदी कर दिया है, जो जून हुई बैठक में 3.7 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था। चूंकि, मौद्रिक नीति भविष्य को ध्यान में रखकर तय की जाती है, इसलिए यह विचार करना महत्त्वपूर्ण है कि आने वाली तिमाहियों में मुद्रास्फीति किन स्तरों पर रह सकती है।
बुधवार को जारी मौद्रिक नीति रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2026-27 में मुद्रास्फीति दर औसतन 4.5 फीसदी रहने का अनुमान है, जिसमें तीसरी तिमाही का आंकड़ा 5 फीसदी से ऊपर होगा। रीपो दर 5.5 फीसदी और अगले वित्त वर्ष के लिए अनुमानित मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी रहने की स्थिति में नीतिगत गुंजाइश तभी बन सकती है जब आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति के अनुमान काफी कम हो जाएं या फिर एमपीसी वास्तविक नीतिगत दर 1 फीसदी से नीचे आने में सहज महसूस करे। वास्तविक नीतिगत दर 1 फीसदी से नीचे आने के लिए एक ठोस स्पष्टीकरण की आवश्यकता होगी।
एमपीसी को उम्मीद है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वित्त वर्ष 2026-27 में 6.6 फीसदी की दर से बढ़ेगा, जो चालू वर्ष के लिए अनुमानित 6.8 फीसदी से थोड़ा कम है। पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर उम्मीद से अधिक रहने के कारण एमपीसी ने बुधवार को चालू वर्ष लिए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 6.5 फीसदी से संशोधित कर 6.8 फीसदी कर दिया। दूसरी छमाही में वृद्धि दर धीमी रहने का अनुमान है। कुल मिलाकर, नीतिगत दर में कटौती की गुंजाइश के संबंध में आए बयान को आने वाले समय में ब्याज दरों में कटौती का निश्चित संकेत नहीं माना जाना चाहिए। काफी कुछ इस बात पर निर्भर रहेगा कि आने वाले समय में हालात कैसे रहते हैं।
मौद्रिक नीति के अलावा आरबीआई ने कई अन्य नीतिगत उपायों की घोषणा की जिनका बैंकिंग क्षेत्र पर महत्त्वपूर्ण असर होगा। आरबीआई संभावित ऋण नुकसान ढांचा अपनाने के लिए एक सुनियोजित तरीका अपनाएगा जिससे बैंकों को नई व्यवस्था के अनुरूप ढलने में मदद मिलेगी। बैंकिंग नियामक ने 1 अप्रैल 2027 से प्रभावी संशोधित बेसल-3 पूंजी पर्याप्तता मानदंड लागू करने का भी प्रस्ताव रखा।
इसके अलावा, आरबीआई ने जोखिम-आधारित जमा बीमा प्रीमियम शुरू करने का प्रस्ताव दिया है। इससे बैंक अपनी जोखिम प्रबंधन प्रणालियों में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। नियामक बैंकों और उनके समूह संस्थाओं के मिलते-जुलते कारोबारों पर प्रतिबंध भी हटा रहा है।
प्रतिभूतियों के एवज में उधार और आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के लिए रकम की सीमा भी काफी हद तक बढ़ा दी गई है, जो कई वर्षों से स्थिर थी। एक अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णय के तहत आरबीआई ने भारतीय कंपनियों को अधिग्रहणों के लिए बैंकों द्वारा रकम मुहैया करने के लिए एक सक्षम ढांचे का प्रस्ताव रखा है। बैंक पिछले कुछ समय से इसकी मांग कर रहे थे। इससे भारतीय बैंकों के लिए कारोबार के अवसर बढ़ेंगे। इस कमी का फायदा विदेशी संस्थाएं उठा रही थीं। कुल मिलाकर, प्रस्तावित नियामकीय हस्तक्षेप बैंकिंग एवं वित्तीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए बैंकों के लिए कारोबार संचालन आसान कर देंगे।