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आरबीआई की सक्रियता उसके और बैंकों के लिए अच्छी

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तमाल बंद्योपाध्याय
Last Updated- March 15, 2023 | 9:08 PM IST

बैंक गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) छुपाने में माहिर रहे हैं। 2011 तक कोर बैंकिंग सिस्टम (सीबीएस) आने के बाद भी एनपीए की पहचान के लिए बैंक तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर रहे थे। शाखा से लेकर मुख्यालयों तक बैंकों ने तकनीक के बजाय मानव संपर्क का सहारा लिया। काफी कुछ ‘व्याख्या’ पर भी निर्भर था।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले कुछ वर्षों से बैंकों को एनपीए की स्वतः पहचान वाली तकनीक की तरफ बढ़ने के लिए दबाव डाला है। इससे एनपीए को लेकर बैंकों द्वारा दिखाए गए और आरबीआई की समीक्षा में आए आंकड़ों में अंतर कम हो गया। वित्तीय रिपोर्ट अब अधिक विश्वसनीय हो गई हैं।

अब बैंक कुछ विशेष मामलों में ही हस्तक्षेप कर सकते हैं और वह भी निदेशकमंडल की अंकेक्षण समिति के सामने। बैंकों को स्वचालित माध्यम से एनपीए की पहचान के लिए तैयार करना आसान नहीं था। आरबीआई को कुछ बैंकों पर करोड़ों रुपये के जुर्माने लगाने पड़े।

बैंक ‘आंतरिक खाते’ की रकम का इस्तेमाल कर ऋण को एनपीए में तब्दील नहीं होने देते थे। आरबीआई ने यहां भी हस्तक्षेप किया और यह सुनिश्चित किया कि केवल वाजिब उद्देश्यों के लिए ये खाते खोले जाएं। आरबीआई अंकेक्षकों पर भी अब नजर रख रहा है।

बैंकिंग नियामक वित्तीय दबाव का सामना कर रहे कर्जधारकों की पहचान के लिए कदम उठा रहा है और किसी ऋण के तथाकथित एनपीए में तब्दील होने की आशंका को संबंधित बैंक की वित्तीय सेहत से जोड़ कर देख रहा है। आरबीआई सेंट्रल रिपॉजिटरी ऑफ इन्फॉर्मेशन ऑन लार्ज क्रेडिट्स (सीआरआईएलसी) के पास उपलब्ध आंकड़ों का इस्तेमाल कर बैंकिंग प्रणाली के शीर्ष 200 कर्जधारकों से जुड़े आंकड़े समय-समय पर खंगालता रहता है। इस कदम का मकसद किसी तरह की जोखिम की आशंका को समय रहते समाप्त करना है।

आरबीआई का हस्तक्षेप यही खत्म नहीं होता है। यह बैंकों के वरिष्ठ प्रबंधन से लगातार बातचीत करता रहता है। अगर बैंक प्रबंधन अपने निदेशकमंडल को आरबीआई की चिंताओं के बारे में सूचित नहीं करता है तो आरबीआई का एक कार्यकारी निदेशक स्वयं ही उस बैंक के निदेशकमंडल की बैठक में पहुंच जाता है!

आरबीआई बैंकों की हालत का जायजा लेने के लिए सोशल मीडिया, समाचार सेवाओं एवं क्षेत्रीय मीडिया पर भी नजर रखता है। इसके साथ ही नियामक रेटिंग एजेंसियों से बात करने के साथ ही ब्रोकरेज कंपनियों की रिपोर्ट पर भी नजर डालता है।

तकनीक पर भी आरबीआई की नजर है। नियामक बैंकों को सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) ढांचा भी चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए कह रहा है ताकि ग्राहकों को सेवाएं देने में बाधा नहीं आए। साइबर हमले से किसी बैंक का आईटी ढांचा कितना सुरक्षित है यह परखने के लिए आरबीआई लगातार कदम उठाता रहता है।

फर्जीवाड़े का पता लगाने में भी तकनीक का काफी हद तक इस्तेमाल हो रहा है। बैंकिंग नियामक ने बैंकों को फर्जीवाड़े की चेतावनी देने वाली प्रणाली स्थापित करने और फर्जीवाड़े की स्थिति में बैंक अधिकारियों को बिना किसी देरी सतर्क करने के लिए कहा है।

एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आरबीआई स्वयं को भी बदल रहा है। वह आंकड़ों का इस्तेमाल करना सीख रहा है। हाल तक ऑफ-साइट निगरानी ढांचा केवल 20 प्रतिशत उपलब्ध आंकड़ों का इस्तेमाल कर रहा था मगर अब आरबीआई मामले की तह तक जा रहा है और सूचना भंडार तैयार कर रहा है।

आरबीआई प्रत्येक तिमाही बैंकों की समीक्षा करता है और जोखिमों की पहचान कर उनके जुड़े विभिन्न पहलुओं की जांच करता है। बैंकों पर नजर रखने के लिए आरबीआई आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग का भी इस्तेमाल कर रहा है। आरबीआई के इन कदमों में कुछ भी गलत नहीं दिख रहा है। कुछ बैंकर बैंकिंग नियामक के सूक्ष्म प्रबंधन पर अपनी नाखुशी क्यों जताते हैं?

आरबीआई बैंक के कारोबारी स्वरूप, उसकी रणनीति और जोखिम लेने की क्षमता पर नजदीक से नजर रख रहा है। बैंकिंग उद्योग की नाखुशी की यही वजह है। क्या नियामक बैंकों को यह बता सकता है कि उसे कैसे कारोबार करना चाहिए? बैंकर परोक्ष में कहते हैं कि कारोबार कैसे करें इस बारे में निर्देश देना नियामक का काम नहीं है।

आरबीआई के पास ऐसा करने की अपनी वजह है। अगर कोई बैंक निगमित ऋण से इतर खुदरा, कृषि और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों के लिए ऋण मुहैया करा रहा है तो क्या उसके पास ऐसे ऋण की निगरानी और ऋण जारी करने की क्षमता मौजूद है? एक बार एनपीए के बोझ से दबने के बाद इसके पास इस संकट से निपटने के लिए पर्याप्त पूंजी मौजूद है?

यही वजह है कि आरबीआई न केवल बैंकों पर कड़ी नजर रख रहा है बल्कि उनके कर्जदाताओं के वित्तीय स्वास्थ्य पर भी नजर रख रहा है। जोखिम प्रबंधन, जोखिम मूल्यांकन, ऑडिट एवं अनुपालन नियामक के निगरानी मानदंडों में शामिल हैं।

आरबीआई बैंकों में आश्वासन संबंधी कार्यों को भी गंभीरता से ले रहा है। वित्तीय संस्थानों एवं बैंकों की हैसियत बढ़ाने, लोगों में इन्हें लेकर भरोसा मजबूत करने, इनकी छवि सुधारने और इनके कारोबार की विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए आरबीआई ये कदम उठा रहा है। उदाहरण के तौर पर कई ऐसे कदम हैं जो आरबीआई ने हाल में उठाए हैं।

एक वाणिज्यिक बैंक अधिक जोखिम और प्रतिफल वाला कारोबारी स्वरूप का पालन कर रहा था। इसके तहत यह ऊंची ब्याज दरों पर असुरक्षित ऋण दे रहा था और अपने ऋण खातों के लिए थोक जमा का इस्तेमाल कर रहा था। नियामक ने बैंक को यह कारोबारी स्वरूप बदलने पर विवश कर दिया। एक दूसरा बैंक डिजिटल बैंकिंग एवं मोबाइल बैंकिंग में लगातार परेशानियों का सामना कर रहा था जिससे ग्राहकों को असुविधा हो रही थी। आरबीआई ने मामला दुरुस्त होने तक इसे नए ग्राहक जोड़ने से मना कर दिया था।

बैंकिंग उद्योग में सुरक्षा पंक्ति के तौर पर कारोबार, जोखिम एवं अनुपालन, आंतरिक ऑडिट और केंद्रीय/सांविधिक ऑडिट के बाद आरबीआई पांचवें स्थान पर है। मगर आरबीआई परिस्थितियां हाथ से निकल जाने तक इंतजार करने के मूड में नहीं दिख रहा है।

बैंकिंग नियामक कभी पहली सुरक्षा पंक्ति के रूप में काम नहीं करेगा मगर यह वित्तीय क्षेत्र का स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रहना चाहता है। अगर आरबीआई की यह मुहिम सफल रही तो निवेशक बैंक के बहीखाते पर अधिक भरोसा कर पाएंगे और नियामक और इसके अधीनस्थ इकाइयां चैन की नींद ले सकती हैं।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक में वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published : March 15, 2023 | 9:08 PM IST