अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जब यह घोषणा की कि एच-1बी वीजा के ताजा आवेदन की फीस बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर कर दी गई है तब कई भारतीय विशेषज्ञों ने यह दावा किया कि देश को इस कदम से बड़ा फायदा मिलेगा। दरअसल ट्रंप ने यह कदम अमेरिका के स्थानीय लोगों के रोजगार को सुरक्षित करने के लिए उठाया जिन्हें नौकरी के लिहाज से भारत और अन्य देशों के सस्ते प्रतिभाशाली लोगों से खतरा है।
उक्त भारतीय विशेषज्ञों की धारणा थी कि वीजा शुल्क वृद्धि और विदेशी कामगारों के प्रवेश को रोकने के लिए अमेरिका द्वारा उठाए जा रहे अन्य उपायों के कारण, प्रौद्योगिकी से लेकर स्वास्थ्य सेवा तक के क्षेत्रों में, एच-1बी वीजा लेने वाले बड़ी संख्या में भारतीय लोग देश वापस लौटेंगे और यहां इन क्षेत्रों के विकास में मददगार होंगे।
हालांकि इसे महज कल्पना या आकांक्षा वाली सोच कहा जा सकता है। विभिन्न भारतीय नीति निर्माताओं और अन्य प्रबुद्ध हस्तियों ने कुछ उत्साहजनक और राष्ट्रवादी बयान देने के बाद, देश की प्रतिभाओं को वापस लौटने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से कोई ठोस योजना बनाने या किसी बड़े कदम की घोषणा करने की जहमत नहीं उठाई है।
अब इन बातों की तुलना हम उन अन्य देशों से करते हैं जिन्होंने एच-1बी वीजा शुल्क वृद्धि के कारण उपलब्ध होने वाले प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित करने के लिए विशेष घोषणाएं करने में तेजी दिखाई है। ब्रिटेन की वित्त मंत्री रेचल रीव्स ने घोषणा की कि वैश्विक प्रतिभाओं को देश में लाने की राह आसान की जाएगी जबकि अमेरिका पूरी सक्रियता से उन्हें हतोत्साहित कर रहा था। ब्रिटेन जिन कदमों पर विचार कर रहा है, उनमें उच्च-कुशल विदेशी कामगारों के लिए वीजा की संख्या दोगुना करना और अधिक निपुण वैश्विक प्रतिभाशाली लोगों के एक चुनिंदा समूह के लिए विशेष मुफ्त वीजा देने की बात शामिल है।
हालांकि इन कदमों के जरिये विशेष रूप से अमेरिका में एच-1बी वीजा पर काम कर रहे भारतीय प्रतिभाशाली लोगों को लक्षित नहीं किया गया है लेकिन यह अमेरिका में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (स्टेम) क्षेत्रों में काम करने वाले कुछ भारतीयों के लिए भी आकर्षक हो सकता है जो अब अन्य विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। वास्तव में जिन कदमों पर विचार किया जा रहा है, वे विशेष रूप से उन लोगों के लिए नहीं हैं जो पहले एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करने की योजना बना रहे थे। इसका उद्देश्य उन विदेशी शोधकर्ताओं और ऐसे अन्य लोगों को आकर्षित करना है जिन्हें ब्रिटेन अपने देश में प्रौद्योगिकी अनुसंधान के लिए बुलाना चाहता है।
इस बीच, कई अन्य यूरोपीय देश विशेष रूप से जर्मनी, पुर्तगाल और फ्रांस, दुनिया की शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए कदम उठा रहे हैं। कुछ नॉर्डिक देश भी वैश्विक प्रतिभाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। कई एशियाई देश भी कथित तौर पर वैश्विक प्रौद्योगिकी और अन्य प्रतिभाओं के लिए खुद को अधिक आकर्षक बनाने के उपायों पर काम कर रहे हैं।
चीन, अब आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई), क्वांटम कंप्यूटिंग और बायोटेक सहित विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन गया है। हालांकि इसने पहले ही अमेरिका से चीन की प्रतिभाओं को वापस अपने देश में लाने के लिए लक्षित कार्यक्रम शुरू किए थे और अब यह वैश्विक प्रतिभाओं को भी आकर्षित करने के लिए पूरी तरह से जुट गया है। चीन ने 1 अक्टूबर से ‘के वीजा’ शुरू करने की घोषणा की जिसे विशेष रूप से विदेशी तकनीकी क्षेत्र की प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए तैयार किया गया है। हालांकि तथ्य यह भी है कि चीन के पास पहले से ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में मजबूत घरेलू प्रतिभा पूल मौजूद है।
स्टेम क्षेत्र से जुड़े प्रतिभाशाली लोगों को हतोत्साहित करने के लिए अमेरिका द्वारा एच-1बी वीजा फीस वृद्धि के कारण यह संभावना बढ़ी है कि भारत और अन्य देशों के बड़ी संख्या में उच्च स्तर के कुशल कामगार अब दूसरी जगहों पर अवसर की तलाश करेंगे। हालांकि भारतीय नीति निर्माता इस तथ्य से बेखबर लगते हैं कि इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं स्वचालित तरीके से देश में वापस लौट आएंगी। सरकार इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ है कि भारत को वैश्विक तकनीक और अन्य प्रतिभाओं के लिए एक लोकप्रिय जगह बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
भारत सरकार यदि वास्तव में प्रतिभा पलायन की प्रक्रिया को उलटने को लेकर गंभीर है तो उसे अनुसंधान और नवाचार पर बहुत अधिक जोर देने की आवश्यकता है, खासतौर पर उन क्षेत्रों में जो भविष्य का निर्धारण करेंगे। देश में सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों में और इसके साथ ही बड़ी कंपनियों द्वारा अनुसंधान पर किया जाने वाला खर्च बेहद कम है। शोधकर्ता-उद्यमियों का सहयोग करने वाले अवसर और पारिस्थितिकी तंत्र व्यावहारिक रूप से अस्तित्व में ही नहीं हैं और इन्हें शून्य स्तर से तैयार करने की जरूरत है। विदेश से शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए मौद्रिक सहित विशेष प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए।
लंबे समय तक, अमेरिका प्रौद्योगिकी और नवाचार में अग्रणी देश बना रहा क्योंकि इसने वैश्विक तकनीकी प्रतिभाओं को फलने-फूलने के लिए एकदम सही माहौल बनाया। इसने अप्रवासियों के लिए देश में आने और विश्वस्तरीय तकनीकी कंपनियां बनाने के लिए परिस्थितियां तैयार कीं। अमेरिका जाकर चिप डिजाइन, एआई, बायोटेक और जीनोमिक अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में सफल होने वाले कुछ अहम नामों में भी अप्रवासी ही शामिल हैं। अब अमेरिका उन्हें हतोत्साहित करने पर तुला हुआ है ऐसे में नई प्रतिभाएं और मौजूदा प्रतिभाओं में से कुछ लोग अन्य जगहों पर अवसरों की तलाश कर सकते हैं। हालांकि इस लिहाज से हैरानी की बात यह है कि भारत इन प्रतिभाओं को लुभाने में बहुत सक्रियता नहीं दिखा रहा है।
एच-1बी वीजा पर अमेरिका जाने वाले भारतीयों की एक बड़ी संख्या वास्तव में शीर्ष स्तर की अनुसंधान प्रतिभाएं नहीं होंगी बल्कि उन्हें मध्यम स्तर के परियोजना कार्यान्यवन और अन्य परिचालन भूमिकाओं के लिए लिया जाता है। हालांकि, एच-1बी वीजा पर गए कई लोग, बाद में दिग्गज कंपनियों का नेतृत्व करने लगे जिनमें सत्य नडेला एक मिसाल हैं। साथ ही, अमेरिका में बहुत सारे प्रतिभाशाली भारतीय लोग पढ़ने के मकसद से गए (विज्ञान और प्रौद्योगिकी की पढ़ाई के लिए अन्य शीर्ष विश्वविद्यालयों में गए छात्र) लेकिन वे वहां रुक गए, सुंदर पिचाई भी उनमें से ही एक थे।
देश में सत्तासीन होने वाली सरकारों ने विदेश से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने या यह सुनिश्चित करने के लिए बेहद कम प्रयास किए कि सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाशाली लोग देश के विकास की दिशा में काम करें और यहीं रहें। यह तथ्य इसके बावजूद बरकरार है कि हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। अगर हम वास्तव में एक ताकतवर वैश्विक अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं, तो हम वैश्विक विज्ञान और तकनीकी प्रतिभा की दौड़ को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
(लेखक बिजनेस टुडे और बिजनेसवर्ल्ड के पूर्व संपादक और संपादकीय सलाहकार संस्था प्रोजेक व्यू के संस्थापक हैं)