साल खत्म होने को है और इस वक्त पीछे मुड़कर देखना स्वाभाविक ही है। गुजरता साल कई चुनावों में हार-जीत का गवाह बना और भूराजनीतिक उथलपुथल के भी दूरगामी असर रहे। मगर भारत में तेज होड़ और समान अवसरों के वादे के बीच बहुत कुछ और भी हुआ, जिसकी बात नीचे की जा रही है।
कारोबार के चलन की बात करें तो क्विक कॉमर्स बिला शक 2024 का बादशाह रहा। बीसेक उत्साही उद्यमियों और फूड डिलिवरी दिग्गज स्विगी तथा जोमैटो से आए लोगों द्वारा शुरू किए गए जेप्टो जैसे छोटे से स्टार्टअप ने क्विक कॉमर्स का जो मॉडल खड़ा किया, उसे एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी भारी-भरकम कंपनियों को भी आजमाना पड़ रहा है। वक्त ऐसा बदला कि कभी बड़ी कंपनियों की तर्ज पर चलने वाली छोटी कंपनियां अब उन्हें ही अपना कारोबारी मॉडल बदलने और तेज-तर्रार बनने पर मजबूर कर रही हैं।
इसके बाद उपग्रह संचार (सैटकॉम) के लिए स्पेक्ट्रम पूरे साल विवाद का मसला रहा और उसे पक्ष तथा विपक्ष में खेमे बन गए। स्पेक्ट्रम की नीलामी (अंतरराष्ट्रीय अनुभवों और प्रयोगों के मुताबिक बहुत चुनौती भरी) की वकालत करने वाले खेमे का तर्क है कि सैटकॉम में भी नीलामी होने से मोबाइल टेलीफोनी के साथ होड़ करने के समान अवसर मिलेंगे। भारतीय दूरसंचार क्षेत्र से जुड़े अधिकारियों को किसी भी खेमे के प्रभाव में आने के बजाय सैटकॉम को जल्द से जल्द शुरू कर देना चाहिए। दूरसंचार मंत्री ने हाल ही में संसद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि सैटकॉम कंपनियों को प्रशासनिक व्यवस्था के जरिये यानी नीलामी के बगैर ही स्पेक्ट्रम देकर भी बराबरी का मैदान सुनिश्चित किया जाएगा।
विवाद का असली कारण उच्चतम न्यायालय का फरवरी 2012 में आया फैसला है, जिसमें दूरसंचार स्पेक्ट्रम जैसे दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन के लिए नीलामी को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी। हालांकि अदालत ने इस फैसले पर अभी तक पुनर्विचार नहीं किया है मगर सरकार मानती है कि दूरसंचार विधेयक में सैटकॉम के लिए बने कानून तरंगों को बिना नीलामी आवंटित करने की इजाजत देते हैं। बराबरी सुनिश्चित करने की बहस के बीच उम्मीद है कि सैटकॉम सुदूर इलाकों में कनेक्टिविटी का एक और स्तर तैयार कर देंगे।
आजकल कारोबार में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और जेनएआई के बिना सब कुछ अधूरा है। सेंटा क्लारा की कंपनी एनविडिया के मुख्य कार्य अधिकारी जेनसेन ह्वांग की भारत यात्रा और एआई की संभावनाओं के भविष्य पर रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी के साथ उनकी बातचीत ने इस क्षेत्र में साझेदारी की कई चर्चाओं को हवा दी। फिर भी भारत में एआई की स्थिति अभी तक अस्पष्ट है। लगता है कि कंपनियों के निदेशक मंडलों में एआई पर गंभीर चर्चा बहुत कम हो रही है। इस क्षेत्र में काम कर रहे एक सलाहकर का कहना है कि भारतीय कंपनियां एआई में बड़ी रकम निवेश करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहीं। फिर भी बड़ी कंपनियां धीरे-धीरे ही सही एआई की दिशा में बढ़ रही हैं। कुछ कंपनियों ने अपने हरेक अधिकारी के लिए एआई का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य कर दिया है। इनमें कुछ सबसे बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं।
ऐपल और भारत से उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में इसकी बढ़ती हिस्सेदारी भी इस साल चर्चा का विषय रही। वर्ष 2022-23 में ऐपल ने फॉक्सकॉन और दूसरी कंपनियों द्वारा बनाए गए 5 अरब डॉलर के आईफोन निर्यात किए थे और अगले साल यानी 2023-24 में निर्यात का आंकड़ा दोगुना होकर 10 अरब डॉलर पर पहुंच गया। अब इस बात पर नजर रहेगी कि ऐपल के पूरी दुनिया में होने वाले उत्पादन की तुलना में भारत में उत्पादन कैसा रहेगा और कहां तक बढ़ेगा।
इस साल आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की संख्या ने भी सुर्खियां बटोरीं। 2024 खत्म होने जा रहा है, इसलिए आंकड़ा शायद 100 तक नहीं पहुंच पाएगा। वैसे तो आंकड़ा बहुत बड़ा नहीं है मगर दक्षिण कोरियाई वाहन कंपनी ह्युंडै के आईपीओ ने तहलका मचा दिया। भारत के कारोबारी इतिहास का यह सबसे बड़ा आईपीओ रहा। इसके बाद दक्षिण कोरिया में मची राजनीतिक खलबली के बीच ही वहां की कंपनी एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स ने भी आईपीओ के लिए दस्तावेज जमा करा दिया। तो क्या अब सैमसंग भी इन दोनों के नक्शेकदम पर चलकर आईपीओ लाएगी? नए साल में रिलायंस जियो और फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कंपनियां भी आईपीओ की तैयारी में जुट सकती हैं।
ऐसा इत्तफाक आम तौर पर होता नहीं है, जब किसी देश के बड़े कारोबारी घराने अलग-अलग वजहों से एक साथ चर्चा में रहें। 2024 में देश के तीन सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा, रिलायंस इंडस्ट्रीज और अदाणी सुर्खियों में रहे। नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बना रहे टाटा समूह ने सेमीकंडक्टर और सैन्य विमान विनिर्माण के नए कारोबारों में कदम रखा। मगर उससे भी ज्यादा चर्चा रतन टाटा के निधन और टाटा ट्रस्ट्स की कमान उनकी जगह उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को दिए जाने की हुई। रिलायंस इंडस्ट्रीज गुजरात के जामनगर में आकाश अंबानी के भव्य ब्याह के लिए चर्चा में रही। अदाणी को सुर्खियां तब मिलीं, जब अमेरिकी पूंजी बाजार नियामक और न्यूयॉर्क के ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट के अटॉर्नी कार्यालय से सौर ऊर्जा कारोबार के सिलसिले में उन पर हमले बोले गए। ये हमले राजनीतिक हलकों में भी गूंजते रहे।
गुजरते साल में चार बड़ी घटनाएं और हुई हैं, जिन्हें इस फेहरिस्त में ऊपर के दस नामों में डाला जाना चाहिए। उदाहरण के लिए विस्तारा का एयर इंडिया में विलय बड़ी घटना थी मगर अभी तक वह विस्तारा ही बनी हुई है। कोविड 19 के दौर में शुरू हुए वर्क फ्रॉम होम से पीछा छुड़ाने की तमाम कोशिशें की गईं मगर 2024 में भी इसने कंपनियों का पीछा नहीं छोड़ा। लक्जरी मकानों की कीमतें तो उतनी हो गईं, जितनी बड़ी कंपनियों के आला अफसरों का वेतन होता है। आईआईटी से निकले एक स्नातक को करियर की शुरुआत में ही लगभग 4 करोड़ रुपये सालाना का वेतन ऑफर किया गया, जो पहली नौकरी के लिहाज से अब तक का सबसे अधिक वेतन है। आखिर में इस साल के बजट में घोषित आम आदमी के काम की दो बड़ी योजनाएं इंटर्नशिप योजना और 70 साल से अधिक उम्र वालों के लिए आयुष्मान भारत योजना शुरू कर दी गईं मगर दोनों ही कोई धमाका नहीं कर सकीं। अब सरकार दोनों योजनाओं को दुरुस्त करने में जुटी है ताकि इनका ज्यादा असर हो सके। तब तक इस फेहरिस्त की पहली दस घटनाएं अपनी छाप छोड़ती रहेंगी।