कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा दिया है। सभी देशों के एकजुट होकर इस त्रासदी से लडऩे के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है। यह विडंबना ही है कि देशों के एक साथ आने की जरूरत जितनी अधिक हो गई है, उनके बीच बिखराव भी उतनी ही तेजी से हो रहा है। वैश्विक संस्थानों के चरमराने से लेकर स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपसी सहयोग करने के सभी प्रयास देशों के आपसी मतभेद, विभाजनकारी रणनीति और हानिकारक राजनीति के शिकंजे में दम तोड़ रहे हैं।
दुनिया के सामने वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, कोरोनावायरस, टिड्डियों के हमले जैसी गंभीर चुनौतियां हैं। पूरी दुनिया के सामने ये ऐसे संकट हैं, जिन्हें कोई सरहद नहीं रोक सकती है। कोविड-19 चीन से निकलकर पूरी मानव जाति को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। पूरी दुनिया में यह वायरस इतनी जल्दी फैला कि छह महीने के भीतर ही एक करोड़ लोग इसके संक्रमण का शिकार हो गए और नए मामले रोज बढ़ते जा रहे हैं।
वायरस का संक्रमण रोकने के लिए विभिन्न देशों ने कई कदम उठाए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्राएं थम गई हैं। एक खास व्यवस्था के तहत कुछ देशों ने अपने बीच उड़ान सेवाएं शुरू करने की पहल जरूर की है, लेकिन वायरस के लिहाज से सुरक्षित देशों से इतर दूसरे देशों से आने वाले लोगों पर पाबंदी की पहल अधिक दिनों तक जारी नहीं रह पाएगी। अमेरिका में यह बात साफ हो चुकी है। वहां न्यूयॉर्क जैसे कई राज्यों में वायरस पर नियंत्रण पाने में मदद जरूर मिली थी, लेकिन यह सफलता अधिक दिनों तक कायम नहीं सकी और संक्रमण के मामले बढ़ते गए। एक देश से दूसरे देश के बीच लोगों का आवागमन रोकने या इसके लिए विशेष प्रावधान करने जैसे उपाय केवल तात्कालिक समाधान ही साबित होंगे। वायरस के खात्मे या कम से कम इस पर नियंत्रण के लिए दीर्घ अवधि में दुनिया के देशों को एकजुट होना ही पड़ेगा।
भारत में टिड्डी दलों का हमला जलवायु परिवर्तन का सीधा नतीजा है। देश में चक्रवाती तूफान आने की आवृत्ति अचानक बढ़ गई है, वर्षा के वितरण में खासी असमानता देखी जा रही है। जलवायु परिवर्तन के तमाम दुष्परिणाम तेजी से सामने आ रहे हैं। भारत अकेले इन समस्याओं से नहीं निपट सकता है। पूर्वी अफ्रीका का एक हिस्सा टिड्डी के पनपने एक अहम केंद्र बन गया है और वहां की सरकारें धन और उपकरणों के अभाव में इन पर काबू पाने में नाकाम रही हैं। हवा के बदलने रुख के साथ ही दुनिया के तमाम देशों में टिड्डी दल तांडव मचाते रहेंगे। इस समस्या से निपटने के लिए हमें पूर्वी अफ्रीका के देशों, अरब, ईरान, पाकिस्तान और भारत के बीच आपसी सहयोग बढ़ाना होगा। इस काम में हमें वैश्विक संस्थानों की मदद की भी जरूरत होगी। इन संस्थानों के माध्यम से देशों को एक साथ लाने और आवश्यक वित्त पोषण और तकनीकी सहायता पहुंचाने में मदद मिलेगी।
जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौती इतनी भयावह हो गई है कि अब इस पर कुछ और कहने की गुंजाइश नहीं बची है और बस तत्काल समाधान की जरूरत है। माहौल कुल मिलाकर ऐसा बन चुका है कि ग्रीनहाउस गैस के प्रतिकूल प्रभाव किसी एक देश की सीमा तक सिमट कर नहीं रह सकते। मैं दुनिया के देशों के सहयोग और उनके बीच विश्वास बहाली पर जोर देना चाहती हूं। इस मुद्दे पर एक साथ सहयोग करना उस समझौते पर निर्भर करेगा, जो दुनिया के सभी देशों के साझा हित में होगा। यह तभी होगा जब समझौता सभी के हितों में और पूरी तरह उचित होगा।
दुनिया इतनी बदल चुकी है कि इसके बारे में कुछ कहना भी आसान नहीं है। वैश्विक स्तर पर देशों के बीच विश्वास बहाली तभी दिखेगी जब प्रयासों के सार्थक एवं प्रभावी परिणाम सामने आएंगे। इसके लिए लोगों को अपनी सरकारों और संस्थानों पर भरोसा करना होगा और उसके बाद ही कोविड-19 जैसे संकट से निपटने के लिए ठोस योजना सामने आ पाएगी। अन्यथा प्रयास विफल हो जाएंगे। इस समय हम विश्व इतिहास के एक अहम पड़ाव पर हैं।
संयुक्त राष्ट्र एक प्रमुख वैश्विक संस्थान है, जो द्वितीय महायुद्ध के बाद अस्तित्व में आया था। इस वैश्विक संस्था के प्रादुर्भाव के बाद कई नई एजेंसियां सामने आईं और कई अहम समझौते भी हुए। हालांकि पिछले कई वर्षों में इस संस्थान से कई गलतियां भी हुई हैं। कई ऐसे मौके आए हैं जब संयुक्त राष्ट्र दुनिया के ताकतवर देशों के समझ निष्प्रभावी साबित हुआ है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कैसे यूएन फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज ने उस महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा टाल दी, जो 2021 के अंत तक दुनिया के लिए एक भीषण चुनौती बन सकता है। अपनी जिम्मेदारियों से पीछे भागने का इससे खराब उदाहरण शायद दूसरा कोई नहीं हो सकता।
इस समय देशों में अपना वर्चस्व साबित करने की लड़ाई भी तेज हो गई है। चीन और शेष दुनिया के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं। यह लड़ाई केवल व्यापार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया एक बड़े बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। चीन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी पैठ गहरी कर ली है और दुनिया के धनी और गरीब दोनों देश चीन पर किसी न किसी रूप में निर्भर हो गए हैं। चीन अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूक रहा है। कोविड-19 महामारी के साथ यह विचार भी तेजी से फैल रहा है कि वायरस पर प्रभावी नियंत्रण बल प्रयोग से पाया जा सकता है, न कि लोकतांत्रिक व्यवस्था से अंकुश लगाया जा सकता है।
मैं आशा करती हूं कि इसका उत्तर इस बात में छुपा है कि लोकतंत्र की कमजोरी दूर करने से लोकतांत्रिक मूल्यों में कमी नहीं आएगी, बल्कि इसमें और इजाफा होगा। इसका आशय स्थानीय और वैश्विक समुदाय स्तर पर निवेश करने से है। इससे न केवल दुनिया को सुरक्षित बनाने में मदद मिलेगी, बल्कि लोकतंत्र एवं मानव जाति के अधिकार और पर्यावरण से जुड़े विषय केंद्र में रहेंगे। इससे कम कुछ भी स्वीकार नहीं होगा- न आज और न कल।
