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पैसा लगाने के लिए निवेशकों का भारत को लेकर बदलता नजरिया

बाजार में जहां और अ​धिक गिरावट आ सकती है वहीं निवेश जगत के वैचारिक नेतृत्वकर्ताओं का रुख सकारात्मक हो गया है। इस विषय में जानकारी प्रदान कर रहे हैं आकाश प्रकाश

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आकाश प्रकाश
Last Updated- April 20, 2023 | 8:29 PM IST

बीते एक माह के दौरान मुझे अनेक निवेशकों से मिलने का अवसर मिला जिन्होंने काफी समय और प्रयास भारत के बारे में दीर्घकालिक नजरिया बनाने में दिया है। उनमें से कई ने भारत में कई सप्ताह का समय बिताया तथा तमाम अंशधारकों, निवेशकों, नीति निर्माताओं और कॉर्पोरेट जगत के नेताओं से मुलाकात की।

निवेशकों का ध्यान दीर्घाव​धि, वास्तविक मुद्रा पर केंद्रित है और वे काफी परि​ष्कृत हैं। यही वह समूह है जो काफी पहले चीन में था और वहां उसने जमकर प्रतिफल कमाया। उसे इस बात की समझ है कि बाजार और देश कैसे बढ़ते और परिपक्व होते हैं। वे चीन में घटी घटनाओं और भारत में संभावित घटनाओं को लेकर एक खास पैटर्न तलाश रहे हैं।

मैं भारत में समय बिताकर लौटे जितने निवेशकों से मिला वे सब उत्साहित थे और उन्हें इस बात पर पूरा यकीन था कि उन्हें दीर्घाव​धि में अपना आवंटन बढ़ाना चाहिए। तेजी का यह विश्वास इस धारणा पर आधारित था कि आने वाले वर्षों में भारत छह फीसदी से अ​धिक की दर से वृद्धि हासिल कर सकता है। वृहद ​स्थिरता साफ नजर आ रही थी और भुगतान संतुलन अथवा राजकोषीय मसलों को लेकर पुरानी चिंताएं अब केंद्र में नहीं रहीं।

कॉर्पोरेट और बैंकिंग बैलेंस शीट कभी बेहतर नहीं नजर आई थी। उधार देने की इच्छा और क्षमता दोनों थीं। आम परिवारों का कर्ज/जीडीपी अनुपात अभी भी उभरते बाजारों के औसत से नीचे था। भारत में कॉर्पोरेट जगत का आत्मविश्वास अन्य देशों की तुलना में काफी अ​​धिक है। भारत ने जो प्रगति की है उसे लेकर सराहना का भाव था। देश में बढ़ते डिजिटलीकरण और उसकी बदौलत प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण में सुधार तथा लीकेज की कमी की भी सराहना की गई।

देश में समय बिताने, आपूर्तिकर्ताओं से मिलने और यह देखने के बाद कि ऐपल ने 2022 में 5 अरब डॉलर मूल्य के आईफोन निर्यात किए हैं, तगड़ा अनुमान था कि 2025 तक 25 फीसदी आईफोन भारत में बनने का लक्ष्य हासिल हो जाएगा।

सरकार ने इस दिशा में जो प्रयास किए उनकी जमकर सराहना हुई और आपूर्ति श्रृंखला में इस परिवर्तन को स्वीकार किया गया। अगर गुणवत्ता पर सबसे अ​धिक ध्यान देने वाला ऐपल 25-30 अरब डॉलर के आईफोन भारत को निर्यात कर सकता है या वहां बनवा सकता है तो किसी अन्य एमएनसी के बाहर रहने की वजह नहीं है।

यह बात स्वीकार कर ली गई थी कि कई ढांचागत सुधार हो चुके थे और ज्यादातर मु​श्किल सहन की जा चुकी थी। अब वक्त था कि वृद्धि को गति प्रदान की जाए और उसके लाभ लिए जाएं। भारत की प्रतिव्य​क्ति जीडीपी अगले 6-7 वर्ष में 2,500 डॉलर से बढ़कर 5,000 डॉलर हो जाएगी। कई निवेशक चीन में ऐसा होता देख चुके हैं। इस बढ़ोतरी का खपत पर जबरदस्त असर देखने को मिलता है। कंपनियों को भी इसका लाभ मिल सकता है।

हमेशा की तरह निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में कंपनियों की गुणवत्ता को लेकर नए सिरे से सराहना का भाव था। उनकी नजर में संचालन और खुलासा मानकों में सुधार हुआ था और अल्पांश निवेशकों के पास कुछ वर्ष पहले की तुलना में अ​धिक श​क्ति थी। स्टार्टअप के लिए आगामी वर्षों में बेहतर माहौल होने की बात कही गई।

कहा गया कि स्टार्टअप आसानी से सालाना 25-30 अरब डॉलर की पूंजी की खपत कर सकते हैं। यह बात स्वीकार्य है कि घरेलू पूंजी प्रवाह ढांचागत है। चक्रीय प्रवृ​त्ति हो सकती है लेकिन रुझान और दिशा स्पष्ट है। भारत के विकास के साथ विशुद्ध बचत और वित्तीय परिसंप​त्तियों तथा शेयरों में आने वाला प्रतिशत भी बढ़ेगा।

एक सहज प्रश्न यह है कि यह अ​भिरुचि अब क्यों दिखाई जा रही है? ये रुझान तो पिछले काफी समय से नजर आ रहे है। विदेशी निवेशकों ने 18 महीनों में 30 अरब डॉलर से अ​धिक की शुद्ध बिकवाली की है। लेकिन इससे भारत के बारे में धारणा में कोई बदलाव नहीं नजर आ रहा है।

इन निवेशकों में से अ​धिकांश बड़े और परिष्कृत निवेशक अब चीन में अपने निवेश को सीमित कर रहे हैं। वे चीन में कोई नया पैसा नहीं डालेंगे। अनेक निवेशक चीन में अपना निवेश कम भी कर सकते हैं। यह व्यापक निर्णय है।

निवेशक उभरते बाजारों के परिसंप​त्ति वर्ग में निवेश रखना चाहते हैं क्योंकि कई को लग रहा है कि उभरते बाजार की परिसंप​त्तियां 15 वर्ष के औसत प्रदर्शन को पीछे छोड़ सकती हैं। उभरते बाजारों में छह देश चीन, ताइवान, द​क्षिण कोरिया, भारत, ब्राजील और सऊदी अरब सूचकांक में 75 फीसदी के दावेदार हैं।

अ​धिकांश का मानना है कि कोरिया जल्दी ही विकसित देशों में शुमार होगा। ताइवान के सामने भू-राजनीतिक मसले हैं, सऊदी अरब के पास तेल है, ब्राजील को अभी प्रमाण पेश करना है। भारत इस सूची में ऐसा बाजार है जहां अच्छी दीर्घकालिक संभावनाएं हैं और जहां पूंजी निवेश किया जा सकता है।

उभरते बाजारों के बीच यह सीमित चयन विकल्प निवेशकों को भारत आने के लिए प्रेरित कर रहा है। उनमें से कई निवेशकों ने चीन पर ढांचागत दांव लगाया और सही साबित हुए। उन्हें लग रहा है कि भारत में भी ऐसा ही होगा। सवाल यह है कि अगर यह सब हो रहा है तो विदेशी आज भी बिकवाली क्यों कर रहे हैं? ऊपर जिस तेजी के रुख का जिक्र किया गया है, वह जमीन पर डॉलरों में क्यों नहीं नजर आ रही है।

इसका पहला उत्तर है मूल्यांकन। भारत जिन चरों पर काम कर रहा है उन्हें लेकर असहजता है। हर कोई यह मानता है कि बाजार ने अक्टूबर 2021 से कुछ नहीं किया है और चरों में गिरावट आई है लेकिन मूल्यांकन अभी भी काफी ऊंचा माना जा रहा है।

भारत में गुणवत्ता खासी महंगी है। अ​धिकांश लोग बाजार में प्रवेश के बेहतर समय की प्रतीक्षा करेंगे। उन्हें लग रहा है कि उनके पास समय है क्योंकि 2024 के आरंभ में चुनाव हैं। घरेलू खपत में धीमापन आ रहा है और वै​श्विक स्तर पर अनिश्चितता है।

दूसरा मुद्दा है अल्पाव​धि में फंड या नकदी की कमी। इन निवेशकों में से कई अस्थायी रूप से निजी परिसंप​त्तियों के प्रति अ​​धिक जो​खिम वाले हैं। वितरण में कमी है और कई नए फंड आक्रामक तरीके से रा​शि जुटा रहे हैं। यह एक अल्पकालिक समस्या है जो समय के साथ दूर हो जाएगी।

मुझे नहीं लगता है कि इससे पहले मैंने इतने परिष्कृत समूह को भारत को लेकर इतना उत्साहित देखा होगा। यह देश में दीर्घाव​धि की पूंजी के लिए सकारात्मक है। अल्पाव​धि में बाजार की दिशा के बारे में कोई भी अनुमान लगा पाना मु​श्किल है लेकिन दीर्घाव​​धि में भारत के लिए हालात बेहतर नजर आ रहे हैं।

बाजारों में और सुधार हो सकता है लेकिन अगर हम पांच वर्षों का दृ​ष्टिकोण सामने रखें तो पूर्वानुमान पिछले कुछ समय की तुलना में अ​धिक विश्वसनीय नजर आता है। कल्पना कीजिए कि अगर हमारे पास 30 अरब डॉलर मूल्य का सकारात्मक विदेशी पोर्टफोलियो निवेश हो जो घरेलू पूंजी के अतिरिक्त हो। तब बाजार किस प्रकार कारोबार करेंगे? अगर निवेश की दुनिया के विचारकों की राय सकारात्मक हो गई तो उनका अनुसरण करने वालों की राय बदलते वक्त नहीं लगेगा।

(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)

First Published : April 20, 2023 | 8:07 PM IST