लेख

नीतिगत उपाय पूरा करेंगे विकसित भारत का सपना

भारत को विकास का अपना लक्ष्य हासिल करना है तो बजट में घोषित प्राथमिकताओं के लिए नीतिगत स्तर पर सुधार फौरन आरंभ करना जरूरी है। बता रहे हैं एम गोविंद राव

Published by
एम गोविंद राव   
Last Updated- August 16, 2024 | 9:15 PM IST

केंद्रीय बजट प्रस्तुत होने के बाद मचा शोरगुल थम चुका है और अब सधी नजर से देखना होगा कि भारत को विकसित देश बनाने के लिए मध्यम और दीर्घ अवधि में क्या रणनीति अपनानी होंगी और नीतिगत स्तर पर क्या प्रयास करने होंगे। विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में किसी विकसित देश की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) 14,005 डॉलर है।

भारत की जीएनआई 2,600 डॉलर के करीब रहने का अनुमान है, जिसका अर्थ है कि यह विकसित देशों के समूह में इतनी जल्दी शामिल नहीं होने जा रहा है। भारत को इस समूह में आना है तो उसे प्रति व्यक्ति जीएनआई 5.3 गुना बढ़ानी होगी। दूसरे शब्दों में उसे अगले 23 वर्ष तक प्रति व्यक्ति जीएनआई में औसतन 7.5 प्रतिशत सालाना और कुल जीएनआई में औसतन 9 प्रतिशत सालाना वृद्धि करनी होगी।

एक और बात यह है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में ठहराव वर्ष 2045 में आएगा। आर्थिक समीक्षा में दिए गए अनुमानों के अनुसार कृषि के अलावा दूसरे क्षेत्रों में वर्ष 2030 तक सालाना लगभग 80 लाख नए रोजगार सृजित करने होंगे। इन दोनों पहलुओं के साथ ही भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध कार्बन उत्सर्जन शून्य करने के लिए पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे पूरा करने के लिए यानी जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बंद कर हरित ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ने के लिए उसे भारीभरकम निवेश करना होगा।

आर्थिक वृद्धि दर बढ़ाने के लिए निवेश और उत्पादन में बड़े स्तर पर वृद्धि करनी होगी। फिलहाल वृद्धिशील पूंजी उत्पादन अनुपात 5 है, जिसके हिसाब से निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 40 प्रतिशत के बराबर होनी चाहिए, जो अभी 34 प्रतिशत ही है। इसमें जो कसर रह जाएगी, उसकी भरपाई उत्पादकता बढ़ाकर करनी होगी। लिहाजा नई तकनीक का इस्तेमाल करना और कार्यबल को अधिक शिक्षित एवं हुनरमंद बनाना समान रूप से जरूरी है। ये कठिन चुनौतियां हैं, जिनसे निपटने के लिए प्राथमिकताएं दोबारा तय करनी होंगी और नीतिगत सुधार अविलंब लागू करने होंगे।

जुलाई में पेश केंद्रीय बजट में नौ क्षेत्रों में सरकार की प्राथमिकताएं परिभाषित कर वृहद निर्देशों का उल्लेख किया गया है। ये प्राथमिकताएं हैं कृषि क्षेत्र में उत्पादकता एवं प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझने की क्षमता बढ़ाना, रोजगार एवं कौशल विकास, मानव संसाधन विकास, आधारभूत संरचना, उद्योग एवं सेवाएं, शहरी विकास, नवाचार और नई पीढ़ी के सुधार। ये व्यापक प्राथमिकताएं हैं किंतु इनमें से प्रत्येक क्षेत्र के लिए सुधार के विशिष्ट उपाय करना जरूरी है। इन प्राथमिकताओं एवं नीतिगत संकेतों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने से सही मार्ग चुनने एवं आवश्यक सुधार एवं बदलाव करने में सहायता मिलेगी।

निवेश एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है कारोबार के लिए सस्ती पूंजी उपलब्ध कराना और प्रत्यक्ष लाभ के साथ अप्रत्यक्ष लाभ भी सुनिश्चित करना होगा। वर्ष 2021-22 से ही राजकोष को मजबूत करने और पूंजीगत व्यय बढ़ाने के उपाय किए जा रहे हैं। अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.5 प्रतिशत तक रोकना कठिन नहीं होगा किंतु इसे और कम कर 3 प्रतिशत के मूल लक्ष्य तक लाना तथा केंद्र सरकार पर कर्ज बोझ को जीडीपी के 40 प्रतिशत तक रोकना जरूरी है ताकि निजी क्षेत्र के लिए भी कर्ज लेने की गुंजाइश बनी रहे।

यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि घरेलू बचत कम होकर 5.3 प्रतिशत रह गई है। इसे देखते हुए सरकार को मध्यम अवधि की राजकोषीय योजनाओं से जुड़े लक्ष्यों पर दोबारा विचार करना चाहिए और उन्हें अगले बजट में प्रस्तुत करना चाहिए। अगला बजट बमुश्किल छह महीने में आना है। वित्तीय क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने और सरकारी उधारी में ज्यादा अनुशासन लाने के लिए सांविधिक तरलता अनुपात में कमी करना भी इतना ही जरूरी है।

केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर पूंजीगत व्यय बढ़ाकर बुनियादी ढांचे में निवेश पर अधिक ध्यान देना होगा। इसके लिए राजस्व व्यय को साधना होगा और बेहद जरूरी व्यय ही करना होगा। केंद्र स्तर पर छोटा-मोटा राजस्व व्यय कम किया जा चुका है। खाद्य एवं उर्वरक सब्सिडी में और कमी के लिए अब कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार करने होंगे। ये सुधार केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारों को करने होंगे। शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य सेवा पर व्यय भी अच्छा खासा बढ़ाना होगा।

अच्छी बात यह है कि कर संग्रह में इजाफा जारी रहेगा और तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल से इसमें वृद्धि तेज होनी चाहिए। अगले बजट में पुरानी आयकर प्रणाली खत्म कर व्यक्तिगत आयकर को तार्किक बनाने और कर दरों या स्लैबों की संख्या घटाकर 3 करने से कर प्रणाली और सरल हो जाएगी। इस बजट में विदेशी कंपनियों पर लागू होने वाली कर दर कम होकर 35 प्रतिशत रह गई है और इसे देसी कंपनियों के बराबर 30 प्रतिशत पर लाना उचित होगा। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को दुरुस्त करना भी जरूरी है। जल्द खराब होने वाली वस्तुओं को मिल रही रियायत कम करने, जीएसटी के दायरे से बाहर वस्तुओं को इसकी जद में लाने, कर श्रेणी घटाकर दो करने और बड़े कर चोरों पर नकेल कसने से ही ऐसा हो पाएगा।

उत्पादन में योगदान देने वाले कारकों (फैक्टर-मार्केट) में सुधार खासकर श्रम सुधार करना रोजगारों की संख्या एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं। सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को अपना आकार बढ़ाना होगा और होड़ करने की क्षमता विकसित करने के लिए तकनीक का अधिक से अधिक इस्तेमाल करना होगा। अंकुश लगाने वाले या बाधा बनने वाले श्रम कानून एमएसएमई को कारोबार बढ़ाने की क्षमता प्रभावित करते हैं। केंद्र सरकार ने 29 श्रम कानूनों को पहले ही चार संहिताओं में बांट दिया है और अब इन्हें लागू करना जरूरी है। चूंकि श्रम समवर्ती सूची में आता है, इसलिए राज्यों को भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

अब देखना यह है कि इस वर्ष के बजट में घोषित प्रोत्साहन कितने असरदार साबित होते हैं। इनमें कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में पहली बार पंजीकृत होने वाले कर्मचारी को एक महीने का वेतन (15,000 रुपये तक) देना, नई भर्ती के पहले चार वर्षों में कर्मचारियों एवं नियोक्ताओं दोनों के लिए भर्तियों की संख्या से जुड़े प्रोत्साहन और नियोक्ताओं को नए कर्मियों के लिए किए गए ईपीएफओ अंशदान में से हर महीने 3,000 रुपये तक सरकार द्वारा लौटाए जाना आदि शामिल हैं। शीर्ष 500 कंपनियों में इंटर्नशिप प्रस्ताव में भी 12 महीने के लिए 5,000 रुपये भुगतान की बात कही गई है।

व्यापार के मोर्चे पर भारत को अपना संरक्षणवादी रुख भी बदलना होगा। कुछ वस्तुओं पर शुल्क कम करने से अधिक खुली नीति का संकेत मिलता है। सरकार ने अगले छह महीने के दौरान शुल्कों की समीक्षा की घोषणा की है और इस पर अमल हुआ तो एक तय अवधि के भीतर दरें घटाने तथा एकीकृत करने में मदद मिलेगी। यह कदम भारतीय विनिर्माण उद्योग को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाएगा। शुल्क घटाने तथा बाजार को और खोलने के लिए सरकार को अधिक द्विपक्षीय समझौतों को तेजी देनी चाहिए।

जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे-धीरे खत्म करने और हरित ऊर्जा के इस्तेमाल की तरफ कदम बढ़ाने से शुरुआत में जोखिम होंगे। इसके लिए और पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए धन की अधिकतर जरूरत सरकार ही पूरी करेगी। अंत में सुधार के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को पूरे तालमेल के साथ आगे बढ़ना होगा। दोनों को इस पर एकाग्रचित्त होना पड़ेगा, सौहार्द बनाए रखना होगा, संवाद करना होगा और समन्वय के साथ मजबूत संघवाद रखना होगा।

(लेखक 14वें वित्त आयोग के सदस्य थे। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published : August 16, 2024 | 9:15 PM IST