भारत को 2047 तक विकसित बनाने का लक्ष्य मुझे आकर्षित तो करता है मगर अपनी बिरादरी के दूसरे लोगों की तुलना में मुझे संदेह भी अधिक होता है। यह लक्ष्य बेहद करीब नजर आता है, जिसकी वजह से और भी लुभाता है। अगर हम बीते जमाने के मॉडल और सबक आजमाते हैं तो इस लक्ष्य से चूक जाना लगभग तय है। यह भी तय है कि बंटी हुई भू-राजनीति, बिना भरोसे के व्यापार साझेदार, तकनीकी चुनौतियां और जलवायु परिवर्तन जैसी अनिश्चितताएं बनी रहेंगी बल्कि और भी बढ़ेंगी। इसलिए हमारे पास न तो गति है और न ही भू-राजनीति, व्यापार या जलवायु हमारे पक्ष में है। किंतु मुझे लगता है कि लक्ष्य इतना आकर्षक तो है कि इसके लिए अधिक यत्न किया जाए।
मेरे विचार में तमाम अनिश्चितताओं का हल ऐसी आर्थिक व्यवस्था बनाने में है, जो बदलते माहौल में खुद को जल्द ढाले और जिसमें लगातार नवाचार ही उत्पादन की बुनियाद हो। इसके लिए अधिक से अधिक आर्थिक गतिविधियों को प्लेटफॉर्म के स्वरूप में अंजाम दिया जा रहा है। इसकी वजह शायद यह भी है कि चुनौतीपूर्ण अवसरों में यह ज्यादा कारगर है। डिजिटल कॉमर्स से लेकर सैन्य उपकरण, वाहन उत्पादन और सूचना तकनीक समेत तमाम क्षेत्रों में प्लेटफॉर्म वाले मॉडल का इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि हर नए विचार की तरह यह विचार भी पुराना है। प्लेटफॉर्म कुछ और नहीं हैं, वे तमाम तरह के एजेंटों को एक साथ काम करने का मौका भर देते हैं। रेलवे प्लेटफॉर्म पर मुसाफिर, रेहड़ी वाले और रेलवे कर्मचारी एक साथ आते हैं। कंप्यूटर प्लेटफॉर्म पर कई सॉफ्टवेयर एक साथ काम करते हैं। एयरक्राफ्ट प्लेटफॉर्म में कई तरह के पुर्जे लगाए और बदले जाते हैं। विश्वविद्यालयों और मॉल में भी ऐसे ही आदान-प्रदान होता है।
इन प्लेटफॉर्म की सबसे बड़ी खासियत होती है इनके एजेंटों की आजादी और लचीलापन। इसीलिए किसी एक एजेंट या घटक पर उनकी निर्भरता बहुत कम होती है। यही वजह है कि विक्रेता किसी एक ग्राहक से नहीं बंधे होते हैं और न ही ग्राहक किसी एक विक्रेता से बंधा रहता है। इस लचीली व्यवस्था के कई फायदे हैं। ई-कॉमर्स कंपनियां उत्पादों में ज्यादा अच्छी तरह से अंतर कर पाती है और ग्राहकों को अधिक विकल्प मिल जाते हैं। इस तरह वे तेजी से बदलती मांग को कम खर्च में ही पूरा कर देती हैं। सैन्य विमान की बात करें तो पुराने हथियारों और इंजनों की जगह ज्यादा उन्नत हथियार और इंजन आ सकते हैं, जिससे विमान का प्लेटफॉर्म लंबे समय तक चल जाता है। इसलिए प्लेटफॉर्म लचीला हो तो आजादी का बहुत फायदा मिलता है। डिजिटल तकनीक में तेज प्रगति से भी सूचना तत्काल सही जगह पहुंच जाती है, जिससे लोगों की प्रतिक्रिया भी विश्वसनीय तरीके से आती है। इससे नवाचार भी तेज होता है।
भारत सरकार दुनिया की उन चुनिंदा सरकारों में शामिल है, जो प्लेटफॉर्म तैयार करने के प्रस्तावों का स्वागत करती है। यहां डिजिटल भुगतान व्यवस्था में प्लेटफॉर्म की सभी खासियत हैं, जिनकी वजह से यह जल्द शुरू हुई और कामयाब भी हो गई। ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओनएनडीसी) के साथ सरकार एक और प्लेटफॉर्म तैयार कर रही है, जिससे कई और स्टार्टअप की जमीन तैयार होगी।
इसलिए अब हमें ऐसी आर्थिक नीति नहीं चाहिए, जो व्यापार या उद्योग जैसे किसी खास क्षेत्र के खास प्लेटफॉर्म पर केंद्रित हो। उसकी जगह हमें सभी प्लेटफॉर्मों पर केंद्रित एक नीति चाहिए। प्लेटफॉर्म भी दूसरी कंपनियों या संस्थाओं की तरह होते हैं, जो एक दूसरे से होड़ भी करते हैं और मिल-जुलकर काम भी करते हैं। किसी दूसरी आर्थिक संस्था की तरह उन्हें भी फलने-फूलने के लिए आजादी चाहिए। सरकार डिजिटल भुगतान और ओएनडीसी के अनुभवों से खुद ही सीखे तो बेहतर होगा। इसके जोखिमों से घबराने और नवाचार का गला घोटने के बजाय लेनदेन के इस नए तरीके को साकार होने देना चाहिए, जहां प्लेटफॉर्म मालिक सेवा प्रदाता भी होता है।
किंतु लगता है कि अनिश्चितता भरी दुनिया में प्लेटफॉर्मों को नवाचार तथा वृद्धि में मददगार मानने के बजाय उनसे डरा ज्यादा जा रहा है। उनसे अवसर तो उत्पन्न हो रहे हैं मगर यह धारणा भी है कि वे छोटे कारोबार को नुकसान पहुंचाते हैं या बाजार में दबदबा कायम कर होड़ खत्म कर रहे हैं। इससे बचाने के लिए हमारे पास भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग है। लेकिन धारणा यह भी है कि इस तरह के लेनदेन और व्यापार से किराना दुकानों की जरूरत कम हो जाएगी, इसलिए इन दुकानों को बचाना होगा। यह दलील सही नहीं है क्योंकि किराना दुकानें भी खुद को बदल रही हैं। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के रोजगार संबंधी हालिया आंकड़े बताते हैं कि खुदरा व्यापार में रोजगार पर कोई नकारात्मक असर नहीं हुआ है। इसलिए अब हमें व्यापक प्लेटफॉर्म नीति बनानी चाहिए, जिसमें ये बातें शामिल हों:
पहली, प्लेटफॉर्म सरकारी हो या निजी, उसे डिजिटल इंडिया और भारतनेट समेत व्यापक डिजिटल बुनियादी ढांचे में भागीदारी करनी चाहिए तथा उसका फायदा उठाना चाहिए। ओएनडीसी के रूप में सरकार देसी उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं का वैकल्पिक प्लेटफॉर्म तैयार कर रही है। इससे विकल्प और नवाचार बढ़ जाएंगे और होड़ भी बढ़ेगी।
दूसरी बात, नियम-कायदे सरल बनाने होंगे। इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कम रखने की कोई तुक नहीं है क्योंकि प्लेटफॉर्मों में एफडीआई से भारत ही नहीं दुनिया भर में मौके तैयार होंगे। इस क्षेत्र को रोकने वाली नीतियों में सबसे ज्यादा खामी इसी नीति में है क्योंकि इसके बहुत नकारात्मक असर होते हैं। ये नीतियां बाजार से बाहर करा देती हैं, देसी तथा वैश्विक कंपनियों के बीच होड़ कम करती हैं, एफडीआई तथा दूसरी तकनीकें नहीं आने देतीं और भारतीय कंपनियों को दुनिया भर के बाजारों में जाने से रोकती हैं।
तीसरी, नीति ऐसी हो, जिससे स्टार्टअप्स आसानी से प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर सकें, उसकी प्रक्रियाओं से मार्केटिंग समेत विभिन्न प्रकार की मदद मिल सके ताकि इन प्लेटफॉर्मों से मिलने वाले मौकों का पूरा फायदा उठा सकें। इसके अलावा सख्त केवाईसी समेत जो जरूरतें रखी गई हैं, उनसे छोटे स्थानीय स्टार्टअप तथा अनौपचारिक क्षेत्र के स्टार्टअप उन मौकों का पूरा फायदा नहीं उठा पाते। क्या जरूरतें और शर्तें ज्यादा सख्त हैं? क्या हम छोटे उद्यमियों के लिए उनमें ढील सकते हैं?
चौथी बात, प्लेटफॉर्मों के साथ मिलकर इस क्षेत्र के लिए लोकपाल तथा ग्राहकों की शिकायत दूर करने के लिए व्यवस्थित नीति बनाई जानी चाहिए। ग्राहकों का भरोसा जितना अधिक होगा, इस क्षेत्र की वृद्धि और प्रभाव उतना ही अधिक होगा। ऐसे में नियंत्रण और जुर्माने की जगह उसे ठीक करने की प्रक्रियाओं में निवेश होना चाहिए।
पांचवीं, अंतरराष्ट्रीय लेनदेन मे रुकावटें पहचानी और हटाई जाएं। छठी, हमें भारतीय प्लेटफॉर्मों को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ जोड़ना होगा क्योंकि देसी कंपनियों को दुनिया भर में अवसर मिलेंगे।
आखिर में अच्छी नीति वह होती है जो अर्थव्यवस्था में होने वाले स्वाभाविक बदलावों में मदद करे। लेनदेन या सौदों के पुराने तौर-तरीके भविष्य की जरूरतों के माफिक नहीं हैं। उनसे हमारी रफ्तार घटेगी और मौकों तथा कल्याण के रास्तों में रुकावट भी आएगी।
(लेखक CSEP के अध्यक्ष हैं)