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भोपाल में लोग-बाग हैं ‘जहर’ पीने को मजबूर

Last Updated- December 05, 2022 | 11:43 PM IST

इतिहास के पन्नों में दर्ज दिसंबर 1984 की भोपाल गैस त्रासदी की घटना लोगों की स्मृति में 23 सालों बाद भी ताजा है।


यूनियन कार्बाइड प्लांट में जहरीली गैस रिसाव से सैकड़ों लोगों की मौत को शायद ही कोई भूला पाया होगा। लेकिन सरकार को इस त्रासदी से जुड़े मामलों को बस रफा-दफा करने की जल्दी है। प्लांट के परिसर में अब भी 9,000 टन विषैला कचरा जमा है। हम रिपोर्टों की इस सीरीज से आपको यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों के प्रति कितनी ‘गंभीर’ है।


भोपाल गैस त्रासदी को बीते 23 साल से भी अधिक का वक्त गुजर चुका है, लेकिन हजारों लोगों की कब्रगाह बनी यूनियन कार्बाइड प्लांट के आसपास रहने वाले लोगों के लिए मुश्किलें अब भी कम होती नजर नहीं आ रही हैं। प्लांट के नजदीक रहने वाले लोगों के लिए पानी एक विकट समस्या बनी हुई है।


यहां आसपास रहने वालों के लिए पानी के दो ही विकल्प हैं। एक विकल्प यहां के जमीन में मौजूद दूषित पानी, जो प्लांट परिसरों में जमा विषैले कूड़े की वजह से लगातार दूषित हो रहा है। दूसरा विकल्प है नगरपालिका का पानी जो पास ही के एक गांव रासलखेड़ी से सप्लाई किया जाता है। पानी के दोनों ही विकल्पों को आधिकारिक तौर पर पीने के अयोग्य घोषित किया जा चुका है। इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि यहां रहने वाले लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं।


शहर के ब्लूमून कॉलोनी में रहने वाले नसीरुद्दीन अपनी किस्मत को कोस्ता है। वह करीब 28 साल पहले मजदूरी करने के लिए रायसेन जिले से भोपाल में आकर बसा था। उसे आज अपने फैसले पर बहुत पछतावा होता है। नसीरुद्दीन और उसका परिवार शहर के उन 25,000 परिवारों में से एक है, जो किस्म-किस्म के रोगों से ग्रस्त हैं।


डॉक्टरों का मानना है कि यहां मौजूद दूषित पानी बीमारियों की जड़ है। यूनियन कार्बाइड प्लांट के परिसरों में करीब 8,000 से 9,000 टन विषैला कूड़ा मौजूद है, जिसे अभी तक ठिकाने नहीं लगाया गया है। इसमें कोई शक नहीं कि यहां भारी मात्रा में जमा जहरीले कूड़े की वजह से जमीन के भीतर मौजूद पानी भी दूषित हो रही है।


शहर में करीब 14 इलाकों से लोगों द्वारा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दर्ज कराने के बाद भोपाल नगर निगम (बीएमसी) ने 96 टैंकों से होने वाली पानी सप्लाई पर रोक लगा दी है। अब यहां के निवासियों को एक अन्य विकल्प के रूप में मौजूद रासलखेड़ी गांव से पानी की सप्लाई की जा रही है।


इस क्षेत्र में भी एक बड़ा नाला है, जिससे पानी दूषित होती है। बहरहाल, राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड का कहना है कि ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) के मुताबिक रासलखेड़ी गांव से सप्लाई होने वाला पानी पीने योग्य नहीं है। यहां के प्राधिकरण ने पिछले एक साल से पानी की गुणवत्ता की जांच-पड़ताल भी नहीं की है।


एक सच्चाई यह भी है कि बीएमसी कमीश्नर को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि पानी सप्लाई (रासलखेड़ी) के स्रोत, उसके  स्थान और साथ ही पानी के प्रदूषण का स्तर क्या है।


बहरहाल, पानी की समस्या और प्रदूषण को लेकर बीएमसी और भोपाल गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के बीच दोषारोपण का खेल शुरू हो चुका है। विभाग का कहना है कि वह कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुरूप चल रहा है और एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में काम कर रहा है जबकि बीएमसी का कहना है कि यह विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वह पानी की गुणवत्ता को सुनिश्चित करे।


इस क्षेत्र में मौजूद दूषित पानी के स्रोत के बारे में जब बीएमसी कमीश्नर निकुंज श्रीवास्तव से पूछा गया तो उन्होंने जवाब कुछ इस कदर दिया-”मैं पहली बार रासलखेड़ी का नाम सुन रहा हूं। कहां है यह जगह? सप्लाई करने से पहले हम पानी की रासायनिक और प्राकृतिक जांच-पड़ताल करते हैं। मुझे इस बारे में कोई समझ नहीं है कि गैस प्रभावित इलाकों में किस परियोजना के तहत पानी सप्लाई कराया जा रहा है। आप इस बारे में आप गैस राहत विभाग से पूछे।”


हालांकि गैस राहत विभाग का भी कुछ ऐसा जवाब था। वहां के एक अधिकारी ने बताया, ”सर, चलता है… थोड़ा बहुत जहर तो हम भी पीते हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि ”पानी की गुणवत्ता की जांच-पड़ताल की जाती है। बीएमसी और राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड टेस्ट रिपोर्ट का कहना है कि पांच पारामीटर पर पानी पीने योग्य होता है।”

First Published - April 24, 2008 | 11:25 PM IST

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