facebookmetapixel
Sudeep Pharma IPO: ग्रे मार्केट में धमाल मचा रहा फार्मा कंपनी का आईपीओ, क्या निवेश करना सही रहेगा?Smart Beta Funds: क्या स्मार्ट-बीटा में पैसा लगाना अभी सही है? एक्सपर्ट्स ने दिया सीधा जवाबपीएम-किसान की 21वीं किस्त जारी! लेकिन कई किसानों के खाते खाली – आखिर वजह क्या है?Gold and Silver Price Today: सोना और चांदी की कीमतों में गिरावट, MCX पर दोनों के भाव फिसलेक्रिप्टो पर RBI की बड़ी चेतावनी! लेकिन UPI को मिल रही है हाई-स्पीड ग्रीन सिग्नलभारत और पाकिस्तान को 350% टैरिफ लगाने की धमकी दी थी: ट्रंपजी20 विकासशील देशों के मुद्दे आगे बढ़ाएगा: भारत का बयानडेवलपर्स की जान में जान! SC ने रोक हटाई, रुके हुए प्रोजेक्ट फिर पटरी परनीतीश कुमार 10वीं बार मुख्यमंत्री, नई मंत्रिपरिषद में बड़े सरप्राइजराष्ट्रपति के लिए तय नहीं कर सकते समयसीमा: सुप्रीम कोर्ट

Opinion: जारी रहने वाला है रुपये की स्थिरता का दौर

मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में भी रुपये की कीमत स्थिर बनी रहेगी। इसकी मुख्य वजह होगी भारत की आर्थिक स्थिति। बता रहे हैं मदन सबनवीस

Last Updated- April 04, 2024 | 11:49 PM IST
जारी रहने वाला है रुपये की स्थिरता का दौर, The 'stable' run for the rupee to continue

मार्च 2023 और मार्च 2024 के बीच रुपये की कीमत में 0.9 फीसदी की गिरावट आई। इस दौरान अमेरिकी मुद्रा (डॉलर) यूरो की तुलना में 1.5 फीसदी गिरी। रुपये का प्रदर्शन रेनमिनबी, वॉन, रैंड, रिंगित, रुपिया और बाह्त की तुलना में बेहतर रहा। मार्च 2024 तक हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 64.2 अरब डॉलर बढ़ा जबकि मार्च 2023 में यह 55.6 अरब डॉलर बढ़ा था। बाहरी मोर्चे पर शानदार प्रदर्शन है और इस वजह से 2024 में चालू खाते के घाटे में कमी आएगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर है लेकिन वह अनिश्चित समय से गुजरी है। इन अनिश्चितताओं ने केंद्रीय बैंक के कदमों को लेकर काफी अटकलों को जन्म दिया।

अब जबकि नया वित्त वर्ष आरंभ हो रहा है, अनिश्चितता में कमी आई है। पहली बात तो यह है कि यूक्रेन और फिलिस्तीन में छिड़ा संघर्ष शायद मायने न रखे। दूसरी बात, विश्व अर्थव्यवस्था स्थिर बनी रहेगी। तीसरा, कच्चे तेल की कीमत में इजाफा नहीं होगा। चौथा, केंद्रीय बैंक, खासकर फेडरल रिजर्व और यूरोपीय केंद्रीय बैंक दरों में कमी करेंगे, हालांकि यह कब होगा इस पर बहस हो सकती है। इसका अर्थ यह भी है कि अक्टूबर-दिसंबर 2022 में डॉलर में मजबूती का जो सिलसिला देखने को मिला वह दोहराया नहीं जाएगा। सवाल यह है कि भारतीय रुपये के भविष्य के लिए इसका क्या अर्थ होगा?

इस वर्ष रुपये की कीमत दो कारकों से प्रभावित होगी। इसकी प्राथमिक ताकत होगी भुगतान संतुलन की आधारभूत स्थिति जो विदेशी मुद्रा की कुल आवक और निकासी को शामिल करता है। दूसरा कारक होगा डॉलर की मजबूती की बाहरी शक्ति।

आधारभूत बिंदुओं की बात करें तो रुपया मजबूत स्थिति में नजर आता है। वित्त वर्ष 24 की निर्यात वृद्धि 11 महीनों में 12 फीसदी के साथ काफी अच्छी है। खासकर ऐसे समय में जबकि विश्व अर्थव्यवस्था से मिलेजुले संकेत मिल रहे हैं। 2024 में वृद्धि दर के स्थिर होने का अनुमान है और जिंस कीमतों में भी सुधार हो सकता है। इस वर्ष निर्यात की स्थिति भी बेहतर हो सकती है। यही बात निर्यात सेवाओं पर भी लागू है।

इनका प्रदर्शन अनुमान के अनुरूप नहीं रहा है और वित्त वर्ष 24 में यह 5 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करने में कामयाब रहीं। अगर मान लिया जाए कि कच्चे तेल की कीमतें 80-90 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहेंगी तो व्यापार घाटा और चालू खाते का घाटा नियंत्रण में रहना चाहिए। वित्त वर्ष 24 में इस घाटे के एक फीसदी या उससे कम रहने की उम्मीद है।

हालांकि अधिक आशावाद पूंजी खाते की स्थिति से उत्पन्न हुआ है। जून के बाद भारतीय सरकारी बॉन्डों को जेपी मॉर्गन बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने और उसके बाद जनवरी 2025 से उन्हें ब्लूमबर्ग में शामिल किया जाना है। इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफपीआई) में उछाल आएगी।

बीते कुछ वर्षों में एफपीआई मोटे तौर पर इक्विटी केंद्रित रहा है। ऐसा तब से है जब से पश्चिमी केंद्रीय बैंकों ने वित्तीय संकट के बाद किए गए आपात उपायों को वापस लेने के लिए मौद्रिक सख्ती को अपनाने का निर्णय किया। इसका अर्थ यह हुआ कि उभरते बाजारों में निवेश के लिए आवंटन योग्य फंड कम रह गया। पश्चिम में बढ़ती ब्याज दरों का अर्थ यह हुआ कि उभरते बाजारों का ऋण कम आकर्षक हुआ और फंड इक्विटी बाजार में जाने लगे।

बहरहाल, भारत के वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल होने के बाद डेट बाजार में अपने आप महत्त्वपूर्ण निवेश आने लगेगा जो हमारे भुगतान संतुलन के लिए अच्छी बात है। सूचकांक में 10 प्रतिशत भार को कवर करने के लिए चरणबद्ध तरीके से भारतीय बांडों को शामिल करने से 20-30 अरब डॉलर का निवेश आ सकता है।
इन फंडों की आवक के तरीके के मुताबिक यह जिम्मेदारी केंद्रीय बैंक पर होगी कि वह नकदी और अस्थिरता दोनों का प्रबंधन सुनिश्चित करे। ऐसे में रुपये में कुछ अस्थिरता नजर आ सकती है।

बाजार के लिए अन्य सकारात्मक बातों का उल्लेख करें तो बाह्य वाणिज्यिक उधारी पर अधिक निर्भरता भी इसकी एक वजह होगी। फिलहाल तो यही देखा गया है कि घरेलू वित्तीय व्यवस्था प्राथमिक तौर पर घाटे की शिकार है क्योंकि ऋण की गति जमा दर से तेज है। यह सिलसिला थोड़ी धीमी गति के साथ वित्त वर्ष 25 में भी जारी रह सकता है।

केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में कमी और रुपये में स्थिरता के साथ कंपनियां बाह्य वाणिज्यिक उधारी तक पहुंच बनाने का प्रयास करेंगी जिससे आवक बढ़ेगी। वित्त वर्ष 24 में बाह्य वाणिज्यिक ऋण का प्रदर्शन बेहतर था और वित्त वर्ष 23 के पहले 10 महीनों के 22 अरब डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 24 के पहले 10 महीनों में 30 अरब डॉलर के फंड तैयार हुए।

बीते दो वर्षों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कम रहा है। वित्त वर्ष 23 और 24 के पहले 10 महीनों में यह औसतन 60 अरब डॉलर रहा है जबकि वित्त वर्ष 21 और 22 में यह 71 अरब डॉलर था। इस क्षेत्र में यथास्थिति बनी रह सकती है जिससे अस्थिरता सुनिश्चित होगी। ऐसे में कुल मिलाकर यह उम्मीद की जा सकती है कि वित्त वर्ष 24 की तरह अर्थव्यवस्था विदेशी मुद्रा के मामले में बेहतर स्थिति में रहेगी और यह राशि 40-50 अरब डॉलर रहेगी। ऐसे में रुपये में मजबूती अपेक्षित है।

बाहरी ताकतों की भी अपनी भूमिका होगी। 2022 के अंत में जब डॉलर में मजबूती आई और वह यूरो के करीब पहुंच गया तब वही दौर था जब फेड दरों में इजाफा कर रहा था तथा अधिक इजाफे के संकेत दे रहा था। वह चक्र समाप्त हुआ और फेड ने दरों को 5.25-5.5 फीसदी पर रखा। इसमें कटौती की चर्चा है लेकिन वह मुद्रास्फीति पर निर्भर होगा।

फेड द्वारा दरों में इजाफा रोकने के बाद से डॉलर कमजोर हुआ है। फेड द्वारा दरों में कमी किए जाने के बाद (जो दो-तीन बार में 75 आधार अंक तक हो सकती है) डॉलर में और कमजोरी आ सकती है। इससे अन्य मुद्राओं पर दबाव बनेगा और रुपये को मजबूत होने में मदद मिलेगी।

इस परिदृश्य में रुपया 0.5 फीसदी के सकारात्मक बदलाव के साथ 82.50 प्रति डॉलर और 83.50 प्रति डॉलर के दायरे में स्थिर रह सकता है। ऐसे में रिजर्व बैंक को निरंतर गतिविधियों की निगरानी करनी होगी और जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करना होगा।

(लेखक बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)

First Published - April 4, 2024 | 11:31 PM IST

संबंधित पोस्ट