इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती
अमेरिका-भारत (एआई) संबंधों में वर्ष 2000 तक भरोसे की बेहद कमी थी और इस संबंध में कभी-कभी शत्रुतापूर्ण भाव भी आया लेकिन अब इन दोनों देशों ने अपने संबंधों के पूर्ण चक्र को पूरा कर लिया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कार्यकाल के तहत दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों की प्रक्रिया शुरू हुई और तब से लेकर राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा और डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल के तहत घनिष्ठता बढ़ती ही गई।
हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मान में राजकीय रात्रिभोज का आयोजन और अमेरिकी कांग्रेस में भाषण के साथ किए गए स्वागत के जरिये भारत-अमेरिका के संबंधों ने एक नई ऊंचाई छू ली है। दोनों देशों के बीच घनिष्ठता बढ़ाने में चीन का खतरा तात्कालिक कारण है लेकिन इसके व्यापक आयाम व्यापार, प्रौद्योगिकी, रक्षा उत्पादन, अंतरिक्ष और जलवायु संबंधी पहलों से लेकर भारतीय प्रवासियों की बढ़ती भूमिका से भी जुड़े हैं जो अब अमेरिका का सबसे अमीर जातीय समूह बन गया है।
इस लेख का केंद्रीय बिंदु व्यापार ही है। अमेरिका अब भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार का दायरा वर्ष 2020-21 में 192 अरब डॉलर तक पहुंच गया जो चीन-भारत व्यापार के 136 अरब डॉलर की तुलना में काफी ज्यादा है।
इसके अलावा, भारत का अमेरिका के साथ व्यापारिक निर्यात में 30 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार अधिशेष है जबकि चीन के साथ इसका व्यापार घाटा 80 अरब डॉलर से अधिक है। भारत-चीन सीमा से नजदीक गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच गंभीर झड़प हुई जिसके बाद भारत ने कई चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन इसके बावजूद भारत के आयात का 10 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अब भी अकेले चीन से ही आता है।
रक्षा संबंधों को मजबूत करने के अलावा, अमेरिका के साथ व्यापार, प्रौद्योगिकी और निवेश बढ़ाना भारत के लिए फायदेमंद है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की तुलना में बड़ी टक्कर देने में एकमात्र देश भारत ही है और भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बीच वर्ष 2030 तक दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के अनुमान से अमेरिका को भी काफी फायदा हो रहा है।
भारत को 2030 तक 2 लाख करोड़ डॉलर के निर्यात (1 लाख करोड़ डॉलर की वस्तुओं और 1 लाख करोड़ डॉलर तक की सेवाओं) तक पहुंचने के लक्ष्य के लिए अगले आठ साल में सालाना 12.6 प्रतिशत (वस्तुओं के लिए 10.5 प्रतिशत और सेवाओं के लिए 15.2 प्रतिशत दर की वृद्धि) की दर से वृद्धि करने की जरूरत होगी।
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भारत ने वर्ष 2010-2019 के दशक के दौरान दिखी मंदी के बाद वर्ष 2019 और 2023 के बीच निर्यात में फिर से उभार देखा है। लेकिन वर्ष 2000-2010 के दौरान भारत की वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में प्रति वर्ष 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें सेवा निर्यात प्रति वर्ष 23.2 प्रतिशत और वस्तुएं 18.2 प्रतिशत सालाना दर से बढ़ीं। डॉलर की स्थिरता के संदर्भ में भी वर्ष 2000-2010 के दशक में वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात सालाना 14 प्रतिशत की दर से बढ़ा।
क्या दुनिया वर्ष 2010-2019 की अवधि की तरह ही दिखेगी जब वैश्विक व्यापार में कमी आई थी या यह वर्ष 2000-2010 के दशक की तरह होगी जब इसमें तेजी आई थी वास्तव में यह देखा जाना बाकी है। बढ़ती भू-राजनीतिक दरारों के साथ, वैश्विक व्यापार में वर्ष 2000-2010 की अवधि के दौरान देखी गई वृद्धि की पुनरावृत्ति नहीं हो सकती है। पिछले रुझानों के आधार पर ऐसा अनुमान है कि सेवा निर्यात वास्तव में वस्तु निर्यात की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है लेकिन यहां सावधानी बरतने की बात भी शामिल है।
अन्य एआई (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस) अब कई कारोबारी मॉडलों को खत्म कर रहे हैं। इसका भारत के कम लागत वाले नियमित आईटी सेवा निर्यात पर एक बड़ा प्रभाव पड़ सकता है जिस पर वास्तव में इसकी आईटी सफलता आधारित है। भारतीय आईटी कंपनियों को अगर अपनी पिछली सफलता को दोहराना है तो उन्हें वैल्यू चेन को आगे बढ़ाना होगा।
लेकिन इन सबके बीच एक तथ्य उभरकर सामने आता है कि 1990 के बाद से भारत का निर्यात वैश्विक निर्यात की तुलना में तेजी से बढ़ा है और 2000 के बाद से दोगुनी तेजी से बढ़ा है। नतीजतन, वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 1990 में 0.5 प्रतिशत थी जो वर्ष 2022 में बढ़कर 2.5 प्रतिशत हो गई है। लेकिन यह चीन (12 प्रतिशत), जर्मनी (6.6 प्रतिशत) या यहां तक कि ब्रिटेन (3.2 प्रतिशत) की तुलना में कम है।
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यदि भारत वर्ष 2030 तक निर्यात में अपनी वैश्विक हिस्सेदारी को लगभग 4 प्रतिशत तक बढ़ाना जारी रख सकता है तब यह वैश्विक व्यापार में धीमी वृद्धि के बावजूद 2 लाख करोड़ डॉलर के अपने लक्ष्य तक पहुंचने की उम्मीद कर सकता है।
भारत को चीन के साथ व्यापार बढ़ने से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि इसके साथ हमारा व्यापार घाटा बढ़ता ही रहेगा। भारत चीन को केवल 20 अरब डॉलर से कुछ अधिक का निर्यात करता है जबकि अमेरिका को 100 अरब डॉलर से अधिक निर्यात करता है। पिछले सात वर्षों में अमेरिका में भारत का निर्यात दोगुना हो गया है और वर्ष 2030 तक यह 300 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच सकता है।
वित्त वर्ष 2022-2023 में लगभग 75 अरब डॉलर की वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के साथ यूरोपीय संघ (ईयू) का बाजार, भारत के लिए संभवतः बहुत बड़ा है। लेकिन यूरोपीय संघ के साथ, भारत को जलवायु सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) के खतरे और फाइटो-सैनिटरी (पौधों के स्वास्थ्य से संबंधित, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार की आवश्यकताओं के संदर्भ में) नियमों से निपटना होगा।
ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ हुए समझौतों के साथ-साथ ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौतों से मदद मिलेगी। लातिन अमेरिका भी एक बड़ा बाजार प्रदान करता है – इसका आयात 1 लाख करोड़ डॉलर से अधिक है, जिसमें मर्कोसुर देश 0.5 लाख करोड़ डॉलर के करीब आयात करते हैं।
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लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद, भारत के महत्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्यों को प्राप्त करने की कुंजी अमेरिका-भारत व्यापार में वृद्धि के साथ ही तय होगी जैसा कि केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि वर्ष 2030 तक 500-600 अरब डॉलर तक पहुंचना चाहिए। अमेरिका-भारत की दोस्ती इस सदी में दोनों देशों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हो सकती है अगर दोनों पक्ष इस सदी में अपने तुरुप के पत्ते सही तरीके से खेलते हैं।
इस बात पर भी कई तरह की टिप्पणी की जा रही है कि इस यात्रा से किसे अधिक लाभ हुआ है और यहां तक कि कुछ ऐसे भी हैं जो सुझाव देते हैं कि भारत कभी भी अमेरिका का सहयोगी नहीं होगा। लेकिन अमेरिका-भारत संबंधों के लंबे दायरे में, यह यात्रा इस तथ्य के लिए एक संकेत होगी कि भारत एक औपचारिक सहयोगी नहीं हो सकता है लेकिन निश्चित रूप से अमेरिका का करीबी दोस्त बन रहा है और दोनों पक्षों को एक-दूसरे से बहुत कुछ हासिल करना है।
(लेखक जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनैशनल इकनॉमिक पॉलिसी के प्रतिष्ठित विजिटिंग स्कॉलर हैं)