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Opinion: वर्ष के मध्य में वैश्विक परिदृश्य

आईएमएफ एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के इन अनुमानों में बदलाव होते रहेंगे मगर इनके निहितार्थ में संभवतः कोई बदलाव नहीं होगा।

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शंकर आचार्य   
Last Updated- June 13, 2023 | 11:33 PM IST

तेजी से बदलती परिस्थितियों के बीच दुनिया में आर्थिक एवं सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। बता रहे हैं शंकर आचार्य

दिसंबर में इस समाचार पत्र में मैंने अपने स्तंभ में अनुमान जताया था कि कैलेंडर वर्ष 2023 वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था दोनों के लिए 2022 से भी बदतर साबित होगा। वर्तमान कैलेंडर वर्ष लगभग आधा सफर तय कर चुका है और परिस्थितियां वैसी उत्पन्न हो रही हैं जैसा मैंने अंदेशा जताया था।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अप्रैल में प्रकाशित विश्व आर्थिक परिदृश्य (डब्ल्यूईओ) में अनुमान जताया गया है कि बाजार विनिमय दर पर वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर 2.4 प्रतिशत के साथ निचले स्तर पर रहेगी। यह 2022 में दर्ज 3 प्रतिशत दर से कम होगी मगर अक्टूबर 2022 में डब्ल्यूईओ में व्यक्त 2.1 प्रतिशत अनुमान से अधिक (अमेरिका, चीन और रूस की अर्थव्यवस्थाओं के अनुमान से कुछ बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद के कारण) होगी।

अप्रैल डब्ल्यूईओ में यह भी कहा गया है कि 2023 में वस्तु एवं सेवाओं के व्यापार की वृद्धि दर 2022 में दर्ज 5.1 प्रतिशत से सिमट कर 2.4 प्रतिशत तक रह जाएगी। आईएमएफ एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के इन अनुमानों में बदलाव होते रहेंगे मगर इनके निहितार्थ में संभवतः कोई बदलाव नहीं होगा।

निहितार्थ यह है कि कैलेंडर वर्ष 2023 में उत्पादन एवं व्यापार 2022 की तुलना में खासा कम रहेंगे। चिंता की एक बात यह भी है कि 2023 के पहले पांच महीनों में कम से कम पांच ऐसी घटनाएं हुई हैं जो मध्यम अवधि में वैश्विक आर्थिक एवं सामाजिक-राजनीतिक संभावनाओं के लिए अच्छी नहीं लग रही हैं।

इनमें सबसे पहला है जलवायु परिवर्तन जिसे लेकर पूरी दुनिया परेशान दिख रही है। विश्व मौसम विभाग संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सालाना रिपोर्ट में मौसम एवं जलवायु से संबंधित प्रतिकूल बातों का जिक्र किया गया है। इनमें मौसम के मिजाज में अचानक एवं हैरान करने वाले बदलाव, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड एवं अन्य हानिकारक गैसों का लगातार बढ़ता उत्सर्जन और कुछ अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों का जिक्र किया गया है।

एक और चिंता की बात यह है कि डब्ल्यूएमओ ने मध्य मई में अपने अद्यतन अनुमान में कहा कि ग्रीनहाउस गैसों और अल नीनो इन दोनों कारणों से ‘इस बात की 66 प्रतिशत आशंका है कि 2023 से 2027 के बीच सतह के निकट सालाना वैश्विक तापमान कम से कम एक वर्ष के लिए औद्योगीकरण से पूर्व के स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहेगा।’

वास्तविकता यह है कि प्रमुख देशों (ज्यादातर धनी) ने अल्पकालिक राजनीतिक हित साधने के लिए दीर्घकालिक भलाई के लिए समस्या से निपटने के लिए बहुत अधिक प्रयास नहीं किए हैं। ना ही जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए गंभीर कदम उठाए जाने के कोई संकेत मिल रहे हैं।

एक दूसरे घटनाक्रम के तहत पिछले कुछ महीनों में जेनेरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के लोकप्रिय ऐप्लिकेशन का उपयोग बेतहाशा बढ़ा है। इसमें चैट जीपीटी (एक प्रकार का लार्ज लैंग्वेज मॉडल) और अन्य चैटबॉट का प्रमुख योगदान रहा है। एआई कई वर्षों से अस्तित्व में है मगर जेनेरेटिव एलएलएम चैटबॉट के उपयोग से इसके अनियंत्रित विकास एवं ऐप्लिकेशन से जुड़ी सामाजिक एवं राजनीतिक चिंताएं बढ़ गई हैं।

एआई विकसित करने जाने-माने वरिष्ठ लोगों एवं विचारकों ने हाथ से बाहर निकलती इस स्थिति को जल्द नियंत्रित करने की सलाह दी है अन्यथा इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। इजरायल के विख्यात दार्शनिक- इतिहासकार युवाल हरारी ने पिछले महीने कहा था कि भाषा हरेक मानव संस्कृति एवं सभ्यता का ‘ऑपरेटिव सिस्टम’ (कामकाजी ढांचा) रहा है मगर जेनेरेटिव एआई ने मानव सभ्यता के इस ‘ऑपरेटिव सिस्टम’ को विस्थापित कर दिया है।

यूरोप और अमेरिका में संवेदनशील एवं टिकाऊ नियामकीय ढांचे पर सक्रियता से विचार हो रहा है। ये किस तरह काम करते हैं और अगर नहीं कर पाते हैं तो इसके मानव जाति के लिए भविष्य से जुड़े दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।

तीसरी महत्त्वपूर्ण बात, दुनिया में पिछले 50 वर्षों के दौरान कई परमाणु दुर्घटनाएं हुई हैं (जैसे अमेरिका में 1979 में थ्री माइल्स, 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल और 2011 में जापान के फुकुशिमा में)। मगर पिछले कुछ महीनों में यूक्रेन युद्ध, परमाणु प्रसार एवं अन्य कारकों से जोखिम खासा बढ़ गया है।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने हाल ही में कहा कि ‘यूक्रेन के जपोरिजिया परमाणु बिजली संयंत्र (जेडएनपीपी) पिछले तीन महीने से बिजली के किसी पुख्ता इंतजाम के चल रहा है। अगर काम करने वाली एकमात्र बिजली आपूर्ति में व्यवधान आया तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है। 22 मई को कुछ ऐसा ही हुआ था जब बिजली आपूर्ति बाधित होने पर रिएक्टर को ठंडा रखने एवं आवश्यक परमाणु सुरक्षा के लिए आपात डीजल जनरेटरों का सहारा लेना पड़ा था।’ यह स्थिति कभी भी किसी बड़े खतरे को खुला निमंत्रण दे सकती है।

हाल में पाकिस्तान में परमाणु नियंत्रण प्रणाली को लेकर भी प्रश्न उठने शुरू हो गए हैं। वहां चरमराई अर्थव्यवस्था के बीच सेना समर्थित सरकार और इमरान खान की पार्टी के बीच शुरू हुआ संकट गहराता जा रहा है। जो हालात उत्पन्न हुए हैं उनसे पाकिस्तान एक कभी न खत्म होने वाले संकट में फंसता जा रहा है।

दूसरी तरफ, खबरों की मानें तो ईरान कुछ परमाणु उपकरण बनाने के लिए आवश्यक संवर्धित यूरेनियम तैयार करने से महज कुछ ही दिन पीछे रह गया है। दूसरी तरफ इजरायल में दक्षिणपंथी सरकार की नीति किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में ईरान के परमाणु संयंत्रों पर इजरायल अगर आत्मरक्षा का हवाला देकर हमला करता है तो परिणाम कितना घातक होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।

चौथी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया में आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के लिहाज से सबसे ताकतवर देश अमेरिका में ऋण सीमा बढ़ाने पर चली घमासान लड़ाई वहां गहरे राजनीतिक विभाजन के गंभीर परिणामों की तरफ ध्यान खींचता है। हाल ही में ऋण सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव अततः अमेरिकी संसद में पारित हो गया मगर इससे काफी कम लोग खुश हैं।

अमेरिका फिलहाल भुगतान में चूक के संकट से तो उबर गया है मगर जरूरी अनसुलझे विषय केवल ढाई वर्षों (जनवरी 2025 तक) के लिए टाले गए हैं। इस सहमति पर पहुंचने के लिए पूर्व में मंजूर सामाजिक क्षेत्र पर खर्च में कुछ कटौती भी की गई है। जनवरी 2025 में अमेरिका में नया राष्ट्रपति चुना जाएगा और वहां की संसद में भी नए लोग चुनकर आएंगे। इस लिहाज से अनसुलझे विषय सुलझाने के लिए बहुत अधिक समय नहीं बचा है। इस बीच, पूरी दुनिया में अमेरिकी बॉन्डधारक निःसंदेह नए विश्वसनीय विकल्प की तलाश करेंगे जिसकी वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

पांचवां महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम यह है कि चीन ने ताइवान और ताइवान जलडमरूमध्य में अपनी आक्रामक गतिविधियां तेज कर दी हैं। यह तब हुआ है जब अमेरिका ने तनाव कम करने के लिए अपना रुख कुछ नरम किया है। वर्तमान हालात के बीच समुद्र या हवा में जाने-अनजाने में सैन्य टकराव की आशंका काफी बढ़ गई है। इस समस्या का कोई समाधान नहीं दिख रहा है।

अंतिम बिंदु भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस बात की संभावना काफी बढ़ गई है कि नवंबर 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दो बुजुर्ग जो बाइडन और डॉनल्ड ट्रंप आमने-सामने होंगे। जब चुनाव होंगे तब बाइडन 82 वर्ष के हो जाएंगे और उनकी शारीरिक चुस्ती-फुर्ती को लेकर लोग सवाल जरूर उठाएंगे।

बाइडन से तीन साल छोटे ट्रंप के मानसिक स्वास्थ्य पर उनके साथ पहले काम कर चुके कई लोग सवाल उठा चुके हैं। इसके अलावा उनके खिलाफ आरोपों की जांच चल रही है। ट्रंप अगर दोबारा राष्ट्रपति चुने गए तो यह वैश्विक राजनीति एवं अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
(लेखक इक्रियर में मानद प्राध्यापक हैं और भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं)

First Published : June 13, 2023 | 11:33 PM IST