बाजार नियामक सेबी को ऐसे मंचों के कारोबार में दखल देने की आवश्यकता नहीं है जो अचल संपत्ति क्षेत्र में आंशिक स्वामित्व अधिकार प्रदान करते हों। बता रहे हैं अजय त्यागी
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने इस वर्ष मई में ‘सूक्ष्म, लघु और मझोले आरईआईटी’ (एमएसएम रीट) को लेकर एक मशविरा पत्र जारी किया जिसे पढ़ना दिलचस्प है।
यह पत्र नियामकीय निगरानी के तहत अचल संपत्ति क्षेत्र में बंटे हुए स्वामित्व को बढ़ावा देता है, बशर्ते कि उसे समुचित तरीके से गठित और क्रियान्वित किया गया हो। यदि ऐसा होता है तो यह बड़ी तादाद में निवेशकों के लिए नए निवेश अवसर लेकर आएगा और विभाजित स्वामित्व अधिकारों के क्षेत्र में द्वितीयक बाजार कारोबार की इजाजत देगा तथा परिसंपत्ति मूल्यांकन में पारदर्शिता लाएगा।
कोविड के बाद की अवधि में भारतीय वित्तीय बाजारों में कई दीर्घकालिक ढांचागत बदलाव आए हैं, इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है इन बाजारों में खुदरा निवेशकों की बढ़ती तादाद।
डीमैट खातों की तादाद मार्च 2020 के 4.1 करोड़ से करीब 180 फीसदी बढ़कर अब 11.5 करोड़ हो चुकी है। तकनीकी प्रगति, विभिन्न ऐप्लीकेशन और ई-केवाईसी आदि ने शेयर बाजार में कारोबार को एकदम आसान बना दिया है। ज्यादा से ज्यादा परिसंपत्ति वर्गों को निवेशकों के समक्ष उपलब्ध कराने की आवश्यकता है ताकि बाजार में उनकी रुचि बनी रही। सेबी के प्रस्ताव को अचल संपत्ति बाजार में नकदी की कमी दूर करने के प्रयास के अलावा इस संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए।
अब शेयर बाजार और अचल संपत्ति बाजार की तुलना करते हैं। सबसे पहले बात आकार की- सभी सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण एक मई 2023 को करीब 280 लाख करोड़ रुपये था।
अचल संपत्ति के मामले में किसी विश्वसनीय आंकड़े पर पहुंच पाना मुश्किल है, हालांकि भारत जैसे बड़े देश के लिए यह आंकड़ा काफी बड़ा होना चाहिए। दूसरा, कीमत में पारदर्शिता और नकदी की बात करें तो शेयर बाजार में नकदी और पारदर्शिता अधिक है, अचल संपत्ति बाजार गैर नकदीकृत और अस्पष्ट है। परिसंपत्ति मूल्य के मामले में शेयर बाजार और अचल संपत्ति बाजार दो विपरीत ध्रुवों पर हैं।
अचल संपत्ति बाजार की खराब स्थिति के लिए उसका बंटा हुआ होना एक प्रमुख वजह है। करीब 5,000 सूचीबद्ध कंपनियों की तुलना में देखें तो वाणिज्यिक परिसंपत्तियों की तादाद लाखों में होगी। इनमें बहुत अधिक विविधता है इसलिए इनका विश्वसनीय मूल्यांकन और संपत्ति के मालिकाने का प्रमाणन करना मुश्किल है।
इससे अचल संपत्ति बाजार में कारोबार करना मुश्किल होता है। किसी संपत्ति के खरीदारों को विक्रेताओं से मिलाना सायास हो सकता है। अचल संपत्ति के एजेंट अच्छा खासा कमीशन अर्जित करते हैं और पारदर्शी कीमतों की अनुपस्थिति बाजार को अस्पष्ट बनाती है। अचल संपत्ति के क्षेत्र में नकदीकृत बाजार बनाना आसान नहीं है।
सेबी (अचल संपत्ति निवेश न्यास) नियमन, 2014 एक ऐसा ढांचा मुहैया कराता है जिसकी मदद से निवेशकों को अचल संपत्ति में निवेश का अवसर देकर इस दिशा में बढ़ा जा सकता है। वे ट्रस्ट होल्डिंग वाली संपत्तियों में निवेश के माध्यम से ऐसा कर सकते हैं। इन नियमन के अधीन गतिविधियां 2017 से आरंभ हुईं जब सेबी द्वारा अंशधारकों के साथ मशविरे के पश्चात कुछ बड़े संशोधन किए गए।
एक मई, 2023 तक पांच अचल संपत्ति निवेश न्यास (रीट) जिनके पास करीब 55,000 करोड़ रुपये की संपत्ति प्रबंधनाधीन थीं, सेबी के साथ पंजीकृत हुए। इनमें से तीन सूचीबद्ध थे। प्रतिभागिता और कारोबार के आकार में समय के साथ गिरावट आई जिससे बड़े पैमाने पर निवेशक निवेश सक्षम हो सके।
फिलहाल एक निवेशक रीट के पब्लिक इश्यू के समय न्यूनतम 10,000-15,000 रुपये का निवेश कर सकता है। न्यूनतम एक यूनिट का कारोबार किया जा सकता है। सूचीबद्ध रीट के कारोबार में नकदी की स्थिति सुधरी है और इसकी तुलना समान बाजार पूंजीकरण वाले शेयरों के साथ की जा सकती है। उस लिहाज से देखें तो आरईआईटीज को अभी भी निवेशकों के बीच समुचित लोकप्रियता हासिल करनी है। मशविरा पत्र में कहा गया है कि आरईआईटीज की वृद्धि में एक बाधा न्यूनतम परिसंपत्ति और मौजूदा नियमन के तहत न्यूनतम पेशकश आकार है।
रीट नियमन में एमएसएम रीट के लिए शिथिल सीमाओं और निवेशक संरक्षण के अतिरिक्त प्रावधानों के साथ चैप्टर पेश करने का प्रस्ताव समझदारी भरा है। पूरी हो चुकी तथा किराया जुटा रही संपत्तियों में प्रस्तावित उच्च प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति निवेश, यूनिट धारकों को वितरणयोग्य नकदी का उच्च अनुपात, कुल व्यय अनुपात की सीमा तय करना तथा परिसंपत्तियों का अक्सर मूल्यांकन आदि निवेशकों को अधिक राहत प्रदान कर सकते हैं।
बहरहाल, सेबी के मामूली स्वामित्व वाले मंचों (एफओपी) के नियमन प्रस्ताव के गहन विश्लेषण की आवश्यकता है। पत्र मानता है कि बीते कुछ वर्षों में वेब आधारित ऐसे कई मंच उभर आए हैं।
अगर सेबी उनका नियमन स्वयं करना चाहे तो क्या उसे पहुंच बनाने में मुश्किल न होगी? सेबी के साथ पंजीकृत न होने वाले या उसके ध्यान में न आने वाले मंचों का प्रवर्तन कितना प्रभावी होगा? इसके अलावा विशेष उद्देश्य के लिए बनी कंपनियों (एसपीवी) से जुड़े मंचों का क्या जहां 200 से कम निवेशक रीट ढांचे को अपनाने को तैयार न हों?
सेबी के पास शायद ऐसे मामलों में नियमन का क्षेत्राधिकार न हो। उस समय को याद कीजिए जब देश में कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम यानी सीआईएस उफान पर थीं। उस समय सेबी को आलोचना का सामना करना पड़ा था क्योंकि उसकी प्रवर्तन प्रणाली निगरानी और नियंत्रण में नाकाम रही थी।
एक अहम समस्या पहुंच की थी। सेबी में सीमित कर्मचारी हैं और उसके पास तमाम अन्य दायित्व भी हैं। ऐसे में वह बिना नियमन वाले सीआईएस से नहीं निपट पाया जो तमाम राज्यों में फैले थे। अंत में सरकार और वित्तीय क्षेत्र के नियामकों को लगा कि ऐसी अनियमित गतिविधियों से स्थानीय स्तर पर यानी राज्य और जिला स्तर पर ही बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है। यही वजह है कि अनियमित जमा योजनाओं पर प्रतिबंध अधिनियम 2019 सामने आया।
सवाल यह है कि एमएसएम रीट के पब्लिक इश्यू, सूचीबद्धता और कारोबार के लिए शेयर बाजार की मौजूदा व्यवस्था का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता। शेयर बाजारों को इसका अनुभव है जिसका उपयोग एमएसएम रीट के प्रबंधन में किया जाना चाहिए। ऐसे मंचों का नियमन संबंधित राज्यों के अचल संपत्ति नियामकीय प्राधिकार के हाथों में छोड़ दिया जाना चाहिए या फिर किसी भी अन्य समुचित प्राधिकार के हाथों में।
इसके अलावा जमा योजनाओं के गुणधर्म वाले अवैध एफओपी का प्रबंधन शायद 2019 के अनियमित जमा योजनाओं पर प्रतिबंध लगाने वाले अधिनियम से ही बेहतर होगा। चाहे जो हो सेबी को इनके नियमन का काम नहीं करना चाहिए।
(लेखक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एवं सेबी के पूर्व चेयरमैन हैं)