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दृष्टिकोण नहीं, समाधान जरूरी: बड़ी समस्याओं की अनदेखी कर रहा भारत

ऐसे दर्जनों मुद्दे हैं जो भारत की वृद्धि को संभावित क्षमता से नीचे रोकते हैं। 8%+ GDP growth के लिए तत्काल ध्यान और ठोस समाधान की आवश्यकता है। बता रहे हैं

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प्रसेनजित दत्ता   
Last Updated- July 09, 2025 | 9:45 PM IST

भारत को 2047 तक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति और विकसित राष्ट्र बनने के लिए क्या करना होगा? सभी लोगों की तरह मैंने भी यही कहा है कि भारत को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लंबे अरसे तक 7.5 फीसदी से अधिक बल्कि 8 फीसदी से अधिक (वास्तविक जीडीपी, नॉमिनल नहीं) दर से वृद्धि दर्ज करनी होगी।

सवाल यह है कि इस तरह की वृद्धि के लिए क्या मददगार होगा? मैंने अपनी किताब ‘विल इंडिया गेट रिच बिफोर इट टर्न्स 100’ में बताया है कि इस तरह की वृद्धि दर हासिल करने के लिए हमें शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान देना होगा। इनके बिना कोई भी देश अपनी युवा आबादी का लाभ नहीं उठा पाया है। साथ ही लंबे समय तक स्थिरता के साथ चलने वाली नीतियां, बेहतर परिवहन, विनिर्माण और प्रौद्योगिकी अनुसंधान को अपनाना भी जरूरी है।

नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन जैसे सिर उठा रहे खतरों और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे मौकों के लिए भी तैयारी करनी होगी। हमें आवश्यक दवाओं, कंप्यूटर चिप और दुर्लभ धातु जैसे अहम क्षेत्रों में पूरा तंत्र विकसित और नियंत्रित करना होगा ताकि हम दूसरे देशों पर निर्भर न रहें।

बड़ी समस्याओं को अलग रख दें तो भी ऐसी कई समस्याएं हैं, जिन पर कम ध्यान दिया जाता है क्योंकि उनके लिए किसी बड़ी योजना की जरूरत नहीं होती। ये समस्याएं सरकार की अच्छी नीतियों और प्रयासों के बावजूद हमारी वृद्धि दर धीमी कर देती हैं। छोटे, मझोले और बड़े उद्यमी इन समस्याओं पर अक्सर तब चर्चा करते हैं, जब सरकार की ओर से कोई मौजूद नहीं होता। इन सभी समस्याओं का सामना औसत उद्यमी, कर्मचारी और नागरिक रोजाना करते हैं और इनकी वजह से काम पर्याप्त अच्छे ढंग से नहीं होता तथा उत्पादकता कम रहने के साथ बेजा खर्च भी होता है।

कुछ मसलों पर नजर डालते हैं और शुरुआत नए बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता से करते हैं, जिस पर अरबों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने पहले कार्यकाल से ही बुनियादी ढांचे के विकास पर लगातार ध्यान दिया है। प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के कार्यकाल के हर केंद्रीय बजट में इसके लिए बडी रकम आवंटित की गई है। हजारों किलोमीटर लंबे राजमार्ग बने हैं और बंदरगाह तथा हवाई अड्डों की क्षमता भी बढ़ाई गई है।

दुख की बात यह है कि धूमधाम से उद्घाटन के कुछ हफ्ते बाद ही नए बुनियादी ढांचे पर समस्याएं दिखने लगती हैं। नए हवाईअड्डे के टर्मिनल पहली बारिश में ही पानी-पानी हो जाते हैं। सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर बने राजमार्ग कुछ समय बाद ही दरारों और गड्ढों से भर जाते हैं। जो सड़कें दो दशक तक चलने के लिए बनाई गईं, उनमें छह महीने के भीतर ही मरम्मत करनी पड़ती है। कई पुल तो पूरे होने से पहले ही ढह चुके हैं। करोड़ों रुपये की सार्वजनिक धनराशि से बनी पानी की टंकियां कुछ महीनों में ही ढह गई हैं। खराब डिजाइन वाली सडकों, फ्लाईओवरों और पुलों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर और सुर्खियों में छाई रहती हैं।

नए बने बुनियादी ढांचे की दोबारा मरम्मत होने या खामियां ठीक करने में धन और समय तो खर्च होता ही है, उत्पादकता घटती और वक्त की बरबादी होती है। सफर में खर्च हुए ज्यादा समय से लेकर ईंधन पर खर्च हुई ज्यादा रकम तक इससे लोगों की उत्पादकता पर असर पड़ता है और जीडीपी वृद्धि धीमी हो जाती है। ये छोटी-छोटी बाधाएं हैं, जिनकी वजह से परिवहन और विनिर्माण की होड़ में हम पिछड़ जाते हैं।

गुणवत्ता की समस्या बुनियादी ढांचे तक ही सीमित नहीं है बल्कि दूसरे क्षेत्रों में भी बनी हुई है। कुछ सेवाओं या उत्पादों में इससे सुरक्षा खतरे में पड़ती है या घटिया माल सामने आता है। हाल ही में एयर इंडिया हादसे को देख लें। असली वजह तो जांच पूरी होने के बाद ही सामने आएगी मगर इस दुर्घटना ने कई समस्याओं का पिटारा खोल दिया है।

नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) में कर्मचारियों की भारी कमी से लेकर एयर इंडिया के शीर्ष अधिकारियों द्वारा सुरक्षा के प्रति लापरवाही जैसी विमानन क्षेत्र में पसरी दिक्कतें सामने आई हैं, जिन्हें बेशक हल किया जा सकता है। रेल हादसों के बाद भी पता चलता है कि भारतीय रेलवे में कितने पद खाली पड़े हैं, जिन्हें पुरानी पटरियों और दूसरी दिक्कतों के अलावा हादसों की अहम वजह माना जाता है।

खाद्य और औषधि गुणवत्ता नियंत्रण देखें तो हमारी नियामकीय संस्थाओं में कर्मियों की भारी कमी दिखती है और उन कारखानों पर दंडात्मक कार्रवाई में भी ढिलाई दिखती है, जो लगातार नियमों का मखौल उड़ा रहे हैं। इनके कारण घटिया दवाएं और खाद्य उत्पाद दिखते हैं, जो सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतरते। इनसे आम नागरिकों का स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ जाता है और उत्पादकता कम हो जाती है।

दर्जनों दूसरी समस्याएं भी है जैसे हमारी सरकारी वेबसाइटों के खराब यूआई/यूएक्स, प्रोसेसिंग की जरूरत से कम क्षमता और सीमित बैंडविड्थ, दूरसंचार की कम स्पीड और सेवाएं। इन सभी के कारण भी हमारी उत्पादकता कम हो जाती है।

इन समस्याओं से सभी वाकिफ हैं। कुछ समस्याएं गहरी जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार से पनपती हैं, जिसे खत्म करने का वादा प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार किया है। बाकी समस्याएं इसलिए हैं क्योंकि बढ़िया गुणवत्ता वाली वस्तुएं और सेवा देने में दिलचस्पी ही नहीं है। सरकार, कंपनियां और नागरिकों में से हर कोई जिम्मेदार है मगर अलग-अलग तरीके से।

ये समस्याएं हल करना आसान नहीं है मगर केंद्र और राज्य सरकारें ध्यान दें तो मुश्किल भी नहीं है। दूसरे देशों के सामने भी भ्रष्टाचार की दिक्कत आई और उसे दूर करने में वे कामयाब रहे हैं। जापान समेत कई देशों में शुरुआत में गुणवत्ता की बड़ी दिक्कत थी मगर अब ये देश गुणवत्ता के प्रतीक बन गए हैं। जरूरत है राजनीतिक इच्छाशक्ति की और पूरे देश की मानसिकता बदलने की। इनमें से पहली हो गई तो दूसरी अपने आप हो जाएगी।

(लेखक बिजनेस टुडे और बिजनेसवर्ल्ड के संपादक रह चुके हैं और संपादकीय परामर्श संस्था प्रोजैक व्यू के संस्थापक हैं)

First Published : July 9, 2025 | 9:31 PM IST