इस स्तंभ में हमेशा ही इस बात पर जोर दिया गया है कि अब हमें विश्व रैंकिंग में भारत के स्थान को देखने के बजाय आंतरिक स्तर पर खुद को मजबूत बनाने और अपनी छिपी हुई क्षमता का पूरा इस्तेमाल करने पर ध्यान देना चाहिए। इस वक्त आगे बढ़ने और मध्यम वर्ग पर होने वाली चर्चा को नए सिरे से शुरू करना जरूरी है।
अब विमर्श की दिशा केवल इस बात तक ही नहीं टिकी रहनी चाहिए कि कितने भारतीयों की आय किस दायरे के बीच है बल्कि इसका रुझान दूसरी ओर होना चाहिए कि देश और अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत मध्यम वर्ग कितना जरूरी होता है और उसकी क्या भूमिका है?
आज हम जिन्हें अपना मध्यम वर्ग मानते हैं, वे इस भूमिका को सही तरीके से निभा पा रहे हैं? (इसका जवाब यह है कि केवल छोटा वर्ग ही ऐसा कर पा रहा है) हमें एक मजबूत और असली मध्यम वर्ग बनाने के लिए किस बात पर जोर देना चाहिए ताकि वह अपने असली काम को सही तरीके से कर सके?
विश्व रैंकिंग में ऊपर आने का जश्न मनाना बेहद खुशी की बात है, खासतौर पर हमारी पीढ़ी के लिए। लेकिन अब लक्ष्य बदलने का समय आ गया है। आज भारत का एक छोटा हिस्सा भी इतना पर्याप्त है कि इससे हम दुनिया में पहले, दूसरे या तीसरे स्थान पर आ सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर भारत की आबादी का एक छोटा हिस्सा जिनकी उम्र 70 साल या उससे ज्यादा है, वह केन्या देश जितना बड़ा है। इससे बुजुर्गों के लिए बाजार में काफी संभावनाएं बनती हैं। अमेरिका में 94 प्रतिशत आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है जबकि भारत में यह संख्या करीब 50 प्रतिशत है। इसके बावजूद हमारे यहां अमेरिका के मुकाबले दोगुने से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं।
दुनिया भर में हुए अध्ययन में यह बात सामने आती है कि एक मजबूत मध्यम वर्ग क्यों आवश्यक है। भारत के लिए यह बात विशेषतौर पर लागू होती है क्योंकि यहां आम लोगों की आय कम है, शिक्षा का दायरा भी सीमित है और ज्यादातर लोगों को असंगठित क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है।
मध्यम वर्ग में अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने के साथ ही (उपभोग और बचत आदि इसमें किसी भी मुश्किल हालात से उबरने की क्षमता है। इसमें उच्च स्तर की उत्पादकता और प्रगति की क्षमता दिखती है क्योंकि ये लोग जिसे पेशे में भी हों, उनके पास निवेश के लिए पर्याप्त अतिरिक्त आमदनी होती है।
इनके उपभोग की गुणवत्ता कीमतों के लिहाज से कम संवेदनशील होती है। ये लोग बचत और निवेश के तरीकों की बेहतर समझ भी रखते हैं। इसके अलावा इनमें अपने जीवन और रहन-सहन को बेहतर बनाने का दृढ़ संकल्प और क्षमता होती है। अगर शेयर विश्लेषकों के पसंदीदा शब्दों में कहें तो यह समाज के ‘प्रीमियमकरण’ को बढ़ावा देता है ताकि समाज प्रगति की राह पर आगे बढ़े।
इसलिए एक वास्तविक मध्यम वर्ग बनाने में एक मुख्य तत्त्व, काम की प्रवृत्ति और कमाई करने का तरीका है। हालांकि यह उनकी शिक्षा, कौशल और इस तरह की क्षमता की मांग के स्तर पर निर्भर करता है। हम अनौपचारिकता के बड़े मुद्दे से जूझ रहे हैं जो मध्यम वर्ग के उन आंकड़ों को प्रतिच्छेदित करता है, जिन पर हम खुश होते हैं।
हम सभी जानते हैं कि संगठित या बेहतर गुणवत्ता वाली असंगठित नौकरियों के मौके भी कर्मचारियों को अपने कौशल बढ़ाने के लिए बेहतर साधन मुहैया कराते हैं जिससे उन्हें दूसरे कौशल वाले नेटवर्क के दायरे तक पहुंचने में मदद मिलती है। इससे उनकी काम की उत्पादकता ज्यादा बढ़ती है और कमाई करने में मदद मिलती है।
बेहतर बुनियादी ढांचा में बुनियादी सुविधाओं के साथ लोगों के जीवन के रहन-सहन का स्तर शामिल है और उनके आवागमन के साधन भी इसमें अपना योगदान देते हैं। उदाहरण के तौर पर झुग्गी–झोपड़ियों में रहने वाली घरेलू सहायिका को सुबह 5 बजे ही पानी इकट्ठा करना पड़ता है। ऐसे में ज्यादा मांग और बेहतर वेतन के बावजूद वह रात की ड्यूटी नहीं कर पाएगी। आगे अगर किसी एजेंसी ने उसकी औपचारिक भर्ती की तो उसके कौशल में सुधार की संभावना अधिक होगी, खासतौर पर तब जब उसने स्कूल की पढ़ाई खत्म कर ली होगी।
ऐसे में वह अधिक काम कर सकती है और अधिक कमा सकती है। इसका मतलब यह है कि इस तथाकथित मध्यम वर्ग की जो गुणवत्ता है, उसके ही बलबूते बेहतर नतीजे निकलते हैं और अर्थव्यवस्था का संचालन और बेहतर तरीके से होता है। सस्ते स्मार्टफोन या रंगीन टेलीविजन खरीद पाना इस कहानी का केवल एक छोटा सा हिस्सा भर है। किसी खास दायरे में आमदनी होने के बावजूद कम आमदनी वाले घरेलू सहायकों के परिवार द्वारा किसी मध्यम वर्ग से जुड़े व्यक्ति की तुलना में अर्थव्यवस्था में समान रूप से योगदान देने की संभावना नहीं है। हालांकि एक क्रेन परिचालक या दुकानदार (फेरीवाला नहीं) ऐसा कर सकता है।
उदाहरण के तौर पर जेप्टो पर डिलिवरी करने वाला लड़का ऐसा नहीं कर सकता है, लेकिन अर्बन कंपनी के मंच पर अपना अकाउंट बनाकर काम करने वाला एक स्वतंत्र कर्मचारी ऐसा कर सकता है। कुछ छोटे किसान मध्यम वर्ग से बाहर आ सकते हैं या इससे जुड़ सकते हैं लेकिन वे सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं। उनकी खेती के व्यवसाय की विशेषज्ञता ही उन्हें अधिक स्थिरता और उच्च स्तर की आमदनी दे सकती है और इससे वे वास्तविक तौर पर मध्यम वर्ग बन सकते हैं।
हमें आंतरिक इस्तेमाल के लिए अपने ‘गुणवत्तापूर्ण ’मध्यम वर्ग के आकार को मापने के लिए नए पैमाने की जरूरत है। ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट ने 2018 में मध्यम वर्ग के बारे में सोचने के तीन संभावित तरीकों पर चर्चा की मसलन नकदी, साख और संस्कृति (भाव, सोच एवं व्यवहार आदि)। इसमें यह भी कहा गया कि दृष्टिकोण का चुनाव, उस खास उद्देश्य पर निर्भर करेगा जिसका इरादा किया गया है।
भारत में हमें अपने मध्यम वर्ग के बारे में सोचते समय नकदी से अधिक साख पर ध्यान देना चाहिए। आज का कारोबार वास्तव में इस बात की परवाह नहीं करता है और तंग श्याओ फिंग के प्रसिद्ध मैक्सिम कथन के मुताबिक, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बिल्ली सफेद है या काली खासतौर पर तब तक, जब तक वह चूहों को पकड़ती है। हालांकि इस बात का फर्क पड़ना चाहिए क्योंकि बड़ी बिल्ली, बड़े चूहे को पकड़ सकती है।
संस्कृति भारत की विशिष्टता है। सभी वर्ग स्थायी रूप से आकांक्षा के साथ जीते हैं और शायद ही कोई संतुष्ट होकर या हार की निराशा के साथ बैठ जाता है। दिवंगत अर्थशास्त्री सुबीर गोकर्ण ने 2013 में इस अखबार के ही एक लेख में लिखा था कि जिस स्रोत से मध्यम वर्ग उभर रहा है उसमें काफी तेजी से विविधता देखी जा रही है। मध्यम वर्ग और निरंतर आर्थिक प्रदर्शन के बीच ‘सकारात्मक चक्र’ सुनिश्चित करने के लिए हमें खुद ही इस वर्ग के बदलते स्वरूप को पहचानने और उसका जवाब देने की आवश्यकता है।
(लेखिका ग्राहकों से जुड़ी व्यापार रणनीति के क्षेत्र में कारोबार सलाहकार और भारत की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था विषय की शोधकर्ता हैं)