पिछले हफ्ते अमेरिका में वित्तीय सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी जेपी मॉर्गन चेस द्वारा ऐसी ही कंपनी बेयर स्टीयर्न्स का
इस सौदे में अमेरिकी फेडरल रिजर्व की काफी अहम भूमिका रही है। संकट के इस दौर में लड़खड़ाते वित्तीय संस्थानों को सहयोग करने के ‘नैतिक खतरों‘ पर जताई जा रही चिंता के बावजूद अमेरिका फेडरल रिजर्व ने यह फैसला किया है।
बेयर स्टीयर्न्स को सहयोग के पीछे अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दलील है कि वित्तीय संस्थाओं की दिवालिएपन की हालत भविष्य के ‘नैतिक खतरों‘ से फिलहाल ज्यादा खतरा पैदा कर रही है। उसकी यह दलील कुछ हद तक सही भी है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सहयोग के जरिए अमेरिकी बाजार में तरलता के प्रवाह को तात्कालिक स्तर पर बनाए रखने में मदद मिलेगी। बेयर स्टीयर्न्स को इस संकट से उबारने का मकसद फिलहाल तो पूरा हो गया है, लेकिन पूरी दुनिया के बाजारों में अन्य संस्थाओं की बुरी हालत पर चिंता का आलम है।
हालांकि इस पूरे घटनाक्रम के मद्देनजर जो एक बात गौर करने लायक है, वह यह कि वित्तीय संकट से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों के चयन के मामले में सरकारों की दुविधा को साफ महसूस किया जा सकता है। दुविधा यह है कि इस संकट को दूर करने के लिए योजनाबध्द मौद्रिक नीति का सहारा लिया जाना चाहिए या कोई तात्कालिक उपाय पर अमल किया जाना चाहिए। (जैसा कि बेयस स्टीर्यंस मामले में हुआ)
बाजार में तरलता का ज्यादा प्रवाह
(जो बड़े पैमाने पर वित्तीय संस्थानों को राहत दिए जाने से पैदा होगा) मुद्रास्फीति का खतरा बढ़ाता है। इस खतरे से अमेरिकी फेडरल रिजर्व और दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंक भली–भांति परिचित हैं। गौरतलब है कि तेल की कीमतें 110 डॉलर के आसपास पहुंच गई हैं और प्रमुख खाद्य पदार्थों समेत अन्य कमॉडिटी के भाव काफी तेजी से भाग रहे हैं। वित्तीय संकट के इस दौर में सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह किसी को मालूम नहीं है कि प्रमुख वित्तीय खिलाड़ियों की समस्या किस हद तक गंभीर है।
जहां व्यावसायिक बैंकों की वित्तीय हालत पर बारीक नजर रखना संभव है और इनके खतरे भी काफी हद तक साफ नजर आते हैं, वहीं वित्तीय संस्थाओं के लिए अपने पोर्टफोलियो के प्रबंधन में लचीलेपन की काफी गुंजाइश है। गौरतलब है कि इससे पहले के आर्थिक संकट के दौरान ग्लोबल सेटलमेंट का फाम्यूला आया था, जिसके तहत इनवेस्टमेंट बैंकों द्वारा इक्विटी रिसर्च और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के विभाजन को जरूरी करने की बात कही गई थी। इसके चलते वित्तीय संस्थाओं की हालत के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करना मुमकिन होता है। मैक्रो इकनॉमिक्स और वित्तीय क्षेत्र को स्थिरता प्रदान करने में पारदर्शिता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इसके मद्देनजर पारदर्शिता की नीति को आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है।