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परमाणु ऊर्जा के लिए अनुकूल हालात की जरूरत

गृह मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को निजी परिचालकों और नियामकीय निगरानी की सुरक्षा मंजूरी देनी होगी ताकि निजी परमाणु संयंत्रों की रखरखाव हो सके।

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अजय शाह   
अक्षय जेटली   
Last Updated- November 12, 2024 | 9:17 PM IST

बुनियादी नीति की बात करें तो पांच ऐसे क्षेत्र हैं जो संभावित परमाणु ऊर्जा उत्पादन को संभव बना सकते हैं। विस्तार से बता रहे हैं अजय शाह और अक्षय जेटली

हम भारतीय यह मानते आए हैं कि अंतरिक्ष में कोई भी गतिविधि केवल सरकार करती है। परंतु अंतरिक्ष यात्रा को लेकर बेहतरीन वैश्विक ज्ञान में स्पेसएक्स जैसी निजी कंपनियों की जबरदस्त हिस्सेदारी है।

एक बार जब निजी क्षेत्र गति पकड़ लेता है तो वह गुणवत्तापूर्ण ऊर्जा और नवाचार लाता है जो सरकारी संस्थानों में नहीं पाया जाता है। परमाणु ऊर्जा पर भी यही बात लागू होती है। अब निजी कंपनियां दुनिया का सबसे सुरक्षित, किफायती और नवोन्मेषी परमाणु रिएक्टर बना रही हैं।

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के समय यह स्पष्ट था कि बड़े उत्पादन संयंत्र फ्रांस, जापान और अमेरिका से आयात किए जाएंगे और यह बड़ा आरक्षण होगा। हाल के दिनों में गूगल और मेटा ने निजी कंपनियों से ‘स्मॉल मॉड्युलर रिएक्टर्स’ (एसएमआर) के लिए ऑर्डर दिया है जो 50 मेगावॉट क्षमता वाले संयंत्र होंगे। हम केंद्रीय नियोजक नहीं होना चाहते और न ही हम वे महान नेता बनना चाहते हैं जो भारत के लिए चयन करेंगे।

भारत की ऊर्जा नीति को ऐसे हालात बनाने चाहिए जहां निजी कंपनियां इस बात पर विचार करें कि क्या उनके लिए ऐसे उपकरण खरीदना उचित होगा? यह कैसे हासिल किया जा सकता है? नीतिगत माहौल के कौन से तत्त्व जरूरी हैं ताकि यह क्षेत्र विवेकपूर्ण तरीके से विकसित हो सके? यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसने बाजार की विफलता देखी है।

सार्वजनिक अर्थशास्त्र के उपायों को अपनाया जाना चाहिए। यानी बाजार की नाकामी को समझना और भारतीय हालात तथा राज्य क्षमता के अधीन उपयुक्त नीतिगत राह तैयार करना। इसके अलावा उन प्रतिबंधों को हटाने की जरूरत है जिनका बाजार की विफलता से कोई संबंध नहीं। नीति निर्माताओं की कार्य योजना पांच तत्वों में निहित है।

1. अगर देश में कोई व्यक्ति किसी विदेशी विक्रेता से परमाणु रिएक्टर खरीदना चाहता है तो उस पर कोई आयात प्रतिबंध या ऐसा सीमा शुल्क नहीं लगेगा जो लेनदेन में हस्तक्षेप करता हो। बशर्ते कि ऑपरेटर पर सुरक्षा प्रतिबंध लागू हों।

2. वितरण कंपनियां आमतौर पर उच्च लागत वाले स्रोत मसलन तटीय पवन या परमाणु ऊर्जा में रुचि नहीं लेतीं। ऐसे में परमाणु ऊर्जा के लिए भी नीति ऐसी होनी चाहिए जैसी पवन ऊर्जा आदि के लिए है। इसमें उत्पादकों के लिए स्पष्ट व्यवस्था होनी चाहिए कि वे अपने लिए वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ता खोजें।

3. परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में इस्तेमाल किया जाने वाला ईंधन बम बनाने में भी इस्तेमाल हो सकता है। इससे सुरक्षा के लिए चुनौतियां उत्पन्न होती हैं। ये चुनौतियां अन्य क्षेत्रों में भी नजर आती हैं। उदाहरण के लिए हवाई यात्रा की सुरक्षा में राज्य की भूमिका नेतृत्वकारी होती है। इससे निजी हवाई अड्‌डों, कंपनियों और विमान निर्माताओं वाले इस क्षेत्र में उसका विशिष्ट योगदान सुनिश्चित होता है। निजी परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के लिए घरेलू नियमन, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा उपायों और प्रवर्तन प्रोटोकॉल की जरूरत है। देश में परमाणु सुरक्षा के नियामकीय ढांचे में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है।

परमाणु ऊर्जा अधिनियम में बदलाव की जरूरत है ताकि देश में परमाणु सामग्री के की साज-संभाल, भंडारण और परिवहन को निजी लोगों द्वारा संभाला जा सके जो अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की जरूरतों के मुताबिक हो। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के विशेष कैडर की जरूरत होगी ताकि निजी परमाणु संयंत्रों की देखभाल की जा सके।

गृह मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को निजी परिचालकों और नियामकीय निगरानी की सुरक्षा मंजूरी देनी होगी ताकि निजी परमाणु संयंत्रों की रखरखाव हो सके।

4. असैन्य परमाणु जवाबदेही की वैश्विक व्यवस्था के अनुसार पूरी जवाबदेही परिचालक की होती है और इसके मुताबिक आपूर्तिकर्ता के खिलाफ मुकदमा केवल परिचालक ही कर सकता है। इस डिजाइन में पूरा ध्यान परिचालक पर केंद्रित है कि वह अच्छे से संयंत्र चलाए। इसमें वे परिस्थितियां भी परिभाषित हैं जिनके तहत बेहतरीन वैश्विक कंपनियां भारत में बिक्री का चयन करेंगी। भारत में सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज ऐक्ट, 2010 बना हुआ है जो रिएक्टर के विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर जवाबदेही डालकर उन्हें रोकता है। इससे बीमा खरीदने की संभावनाएं भी जटिल हुईं क्योंकि बीमाकर्ता आपूर्तिकर्ता जवाबदेही की निजी कवरेज को लेकर हिचक होती है। इन चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार ने 2015 में एफएक्यू यानी अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों की सूची जारी की थी जो इस अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को सामने लाता है।

बहरहाल इन एफएक्यू को अधिनियम के अधीन विधान नहीं माना जाता और इसलिए ये राज्य पर बाध्यकारी नहीं हैं। भारतीय विधिक व्यवस्था में जब एफएक्यू विधान के साथ विरोधाभासी रहे हैं तो अदालतों ने उनकी अनदेखी कर दी है। विदेशी आपूर्तिकर्ता इनसे आश्वस्त नहीं होते और उन्होंने भारत में बिक्री से परहेज किया। विधायी संशोधन ही इकलौती व्यवहार्य विकल्प है।

5. भारतीय ऊर्जा उद्योग का आधार मूल्य व्यवस्था में बदलाव में निहित है जहां निजी लोग आपूर्ति और मांग को लेकर विकेंद्रीकृत निर्णय लेते हैं और सरकारी अधिकारियों या कंपनियों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं होता। यह ऐसा आधार है जिसके तहत आपूर्ति और मांग को लेकर विविध ऊर्जा तकनीक (परमाणु ऊर्जा सहित) ऊर्जा व्यवस्था में सटीक बैठेंगे। निजी व्यक्ति भविष्य की कीमतों में उतार-चढ़ाव को लेकर अटकलबाजी का नजरिया रखते हैं। इसमें शाम के पीक समय को लेकर उच्च कीमतों का अनुमान शामिल होता है। ऐसा इसलिए कि परमाणु रिएक्टर खरीदने की बात को उचित ठहराया जा सके।

परमाणु बिजली के क्षेत्र में दुनिया भर में लागत और सुरक्षा के मोर्चे पर सुधार हो रहे हैं। भारत में परमाणु ऊर्जा बेस लोड और ग्रिड स्थिरता की दिक्कतों को समाप्त करने में अहम योगदान कर सकती है। इन संयंत्रों को खरीदने का जोखिमभरा निवेश निजी व्यक्ति ही कर सकते हैं। हम एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं जहां नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन और तमाम भंडारण तकनीक हैं जो शाम को कीमतों में इजाफे को नियंत्रित रख सकें।

ऐसे में भंडारण पर सटोरिया नजरिया रखने वाले लोगों को मुश्किल होगी और वे परमाणु रिएक्टर खरीदने पर विचारक र सकते हैं। विजेताओं का चयन और प्रौद्योगिकी का चयन ऐसे ही लोगों का काम है न कि सरकार का।

हमारी समस्या बिजली और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में राज्य की गहन संबद्धता में निहित हैं। ऐसे में इन दोनों क्षेत्रों में सरकार की भूमिका के बारे में एक स्पष्टीकरण आवश्यक है क्योंकि इनमें सरकार का ध्यान बाजार विफलता में उसकी भूमिका और हर लिहाज से आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।

उपरोक्त पांचों क्षेत्रों में आर्थिक सुधारों को लेकर एक कार्यक्रम की आवश्यकता है। अगर इन क्षेत्रों में अगले कुछ सालों में ठीकठाक प्रगति होती है तो इसका सबसे बड़ा परिणाम यह होगा कि देश में परमाणु रिएक्टर ऐसा विकल्प बन जाएंगे जिनका निजी कंपनियां आकलन कर सकेंगी।

(शाह एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता और जेटली स्ट्रैटजी एवं पॉलिसी एडवाइजर हैं)

First Published : November 12, 2024 | 9:08 PM IST