प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
इस महीने के आरंभ में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की महानिदेशक नगोजी ओकोंजो-इवेला ने लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में अपने भाषण में जोर देकर कहा कि बहुपक्षीय संस्थानों के पक्ष में बोलने की आवश्यकता है। खासतौर पर तब जबकि दबदबे वाली फंडिंग अर्थव्यवस्था ने इसकी आवाज और प्रासंगिकता को दबाने की ठानी है। उनका वक्तव्य डब्ल्यूटीओ के लिए सुखद है। अपनी बुनियादी प्रक्रियाओं और मुक्त व्यापार को आगे बढ़ाने के लक्ष्य की बात करें तो यह संस्थान इस समय एक चौराहे पर है। अमेरिका द्वारा विवाद निस्तारण प्रणाली की अपीलीय संस्था में नियुक्तियों को अवरुद्ध किए जाने को लेकर भी काफी चर्चा हो रही है लेकिन दीर्घकालिक वार्ताओं और परिणामों की कमी की बात करें तो संस्था लंबे समय से मुश्किलों से गुजर रही है।
यह बात तो सभी जानते हैं कि डब्ल्यूटीओ की सदस्यता का विस्तार किया गया और जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ ऐंड ट्रेड (गैट) के 23 संस्थापक देशों से 1994 में इसके डब्ल्यूटीओ में परिवर्तित होने पर इसकी सदस्य संख्या बढ़कर 128 हो गई। 2024 में यह संख्या 166 हो गई। परंतु इस दौरान चुनौतियां भी आईं। कृषि सब्सिडी, गैर कृषि बाजार पहुंच और सेवा उदारीकरण जैसे अहम मुद्दों का सहमति आधारित हल पाना मुश्किल बना रहा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि विकसित, विकासशील और अल्प विकसित देशों के अलग-अलग हित जुड़े हुए थे। व्यापार सुविधा समझौते और अभी हाल ही में मत्स्यपालन से जुड़ी सब्सिडी के बारे में भी काफी लंबी और कठिन चर्चा के बाद सहमति बन सकी। इन्हें लेकर दशक भर से लंबी वार्ताएं चलीं। डब्ल्यूटीओ के अहम मुद्दों पर लंबे समय से विवादों और गतिरोध के कारण इसके इकलौते व्यापार उदारीकरण कार्यक्रम यानी दोहा विकास दौर को वास्तव में निलंबित कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप अधिकांश मंत्रीस्तरीय बैठकें केवल पहले किए गए समझौतों के क्रियान्वयन से संबंधित प्रशासनिक निर्णयों तक सिमट गई हैं। इसलिए डब्ल्यूटीओ के नियम और प्रावधान सीमित हुए हैं।
बहरहाल, वैश्विक व्यापार अब बहुत हद तक वैश्विक मूल्य श्रृंखला यानी जीवीसी से संचालित होता है और उसने मुक्त व्यापार समझौतों यानी एफटीए और मुद्दा आधारित बहुपक्षीय समझौतों को नियम निर्माण का वैकल्पिक मार्ग बनाया है। गैट के अनुच्छेद 24 के तहत होने वाले एफटीए और दो या अधिक सदस्य देशों के बीच व्यापार उदारीकरण का 21वीं सदी में काफी विस्तार देखने को मिला है। सन 2000 में जहां डब्ल्यूटीओ की जानकारी में 100 से भी कम एफटीए थे वहीं 2025 में इनकी तादाद 600 पार कर चुकी है।
इनकी तादाद बढ़ने के साथ ही एफटीए में गहराई भी आई है। इनमें से अधिकांश में बौद्धिक संपदा, निवेश और सेवा उदारीकरण के साथ पर्यावरण और टिकाऊ शासन को लेकर काफी अहम मुद्दे शामिल होते हैं। एक समय सदस्यता के अतिक्रमण और विभिन्न एफटीए में स्रोत नियम की जटिलता के कारण बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौतों की आलोचना की जाती थी लेकिन उन्होंने भी सदस्य देशों के लिए एफटीए को सहज बनाने में अहम भूमिका निभाई है। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में से कई को एफटीए में भागीदारी से लाभ हुआ है।
डब्ल्यूटीओ के अधीन बहुपक्षीय समझौतों में भी प्रगति हुई है हालांकि यह प्रगति एफटीए की तुलना में बहुत धीमी रही है। डब्ल्यूटीओ के अधीन पहला बहुपक्षीय समझौता 1996 में हुआ सूचना प्रौद्योगिकी समझौता था। वहां प्रतिभागी देशों ने चिह्नित सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों के लिए डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य देशों को शुल्क मुक्त व्यापार की सुविधा दी थी। हाल के समय में नए दौर के नीतिगत क्षेत्रों मसलन ई-कॉमर्स, निवेश सुविधा और वैकल्पिक अंतरिम विवाद निस्तारण प्रक्रिया आदि में बहुपक्षीय समझौतों के तहत पहल की गई है लेकिन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की भागीदारी और निर्णायक बातचीत को अंजाम देना कठिन है।
वास्तव में बहुपक्षीय समझौते विवादास्पद रहे हैं क्योंकि कई बार इनमें रुचि रखने वाले सदस्य देश किसी ऐसे मुद्दे पर बातचीत शुरू कर देते हैं जिसे संपूर्ण डब्ल्यूटीओ की सदस्यता का प्रतिनिधि नहीं माना जाता है। इसके परिणामस्वरूप इन समझौतो में एजेंडा आगे बढ़ाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है और जो पहलकदमी करता है उसे ही लाभ हासिल होने की संभावना अधिक रहती है। इससे न केवल बातचीत का सहमति आधारित रुख सीमित होता है जो डब्ल्यूटीओ का अनिवार्य हिस्सा है बल्कि यह उरुग्वे दौर की वार्ता के बाद के विकासशील देशों के लंबे संघर्ष को नकारता है जिसके तहत उन्होंने गैर कारोबारी मुद्दों को दूर रखते हुए दोहा दौर के एजेंडे को आगे बढ़ाया। बहरहाल तब से अब तक विश्व व्यापार में बहुत कुछ बदल चुका है।
पहली बात, 21वीं सदी की जीवीसी आधारित विश्व व्यापार व्यवस्था के अंतर्निहित तंत्र को वस्तुओं, निवेश और सेवा व्यापार के उदारीकरण के बीच एक अटूट संबंध के रूप में समझने की आवश्यकता है। इनमें से हर क्षेत्र में नियमों और नियामकीय ढांचे का समुचित सेट जरूरी है ताकि विश्व व्यापार को सुविधा मिले। दूसरी बात, भारत समेत कुछ अर्थव्यवस्थाओं ने जिसे ‘गैर व्यापार’ श्रेणी में सूचीबद्ध किया है और बहुपक्षीय समझौतों में जिनका प्रतिरोध हो रहा है वे पहले ही मुक्त व्यापार समझौते के दायरे में हैं। उदाहरण के लिए जबकि निवेश सुविधा पर बहुपक्षीय बातचीत को डब्ल्यूटीओ के कुछ सदस्य चुनौती दे रहे हैं, वहीं 21वीं सदी के अधिकांश एफटीए में निवेश चैप्टर में, निवेश सुविधा से आगे बढ़कर निवेश संरक्षण, निवेशक और राज्य के बीच विवादों का समाधान और बौद्धिक संपदा अधिकारों पर गहरे प्रावधान शामिल हैं। इसी प्रकार ईएसजी से संबंधित प्रावधान जिनमें से कई को लंबे समय से गैर-व्यापार मुद्दा माना जाता है, उनमें 2010 के दशक के एफटीए में काफी इजाफा देखा गया। तीसरी बात, जहां बहुपक्षीय व्यापार वार्ताएं जोर नहीं पकड़ पातीं या लंबित रह जाती हैं, वहां संबंधित देशों ने क्षेत्र विशेष को ध्यान में रखकर डब्ल्यूटीओ के बाहर द्विपक्षीय समझौतों का विकल्प चुना। उदाहरण के लिए अमेरिका-जापान और ऑस्ट्रेलिया-सिंगापुर ने 2020 में द्विपक्षीय डिजिटल व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। हाल ही में यूरोपीय संघ और दक्षिण कोरिया ने मार्च 2025 में एक डिजिटल व्यापार समझौता किया। चौथी बात, हम एक ऐसे युग में हैं जहां संरक्षणवादी एकपक्षीयता और नीतिगत अनिश्चितता बढ़ती जा रही है। ऐसे में वैश्विक व्यापार नियमों में निरंतरता पर विचार करना होगा।
हमें वैकल्पिक प्रणालियां अपनानी होंगी। इसके साथ ही, विश्व व्यापार संगठन में नियमों के रूप में पीए-वार्ता के परिणामों को शामिल करने में वैधता के मुद्दों से निपटने का प्रयास किया जाना चाहिए। डब्ल्यूटीओ को हाशिए पर जाने से बचाने के लिए, केवल पुराने समझौतों पर नियमित प्रशासनिक उपाय करने तक सीमित रहने से रोकने के लिए, और तेजी से विकसित हो रहे वैश्विक व्यापार संदर्भ की जरूरतों के अनुरूप इसके विकास में सहायता करने के लिए वैकल्पिक साधनों यानी एफटीए और बहुपक्षीय समझौतों के संयोजन की आवश्यकता है।
(लेखिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में प्राध्यापक हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)