वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट भाषण उस आर्थिक परिदृश्य में दिया गया जब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विशुद्ध स्तर पर मार्च 2019 के स्तर पर पहुंच चुका था। ऐसे में लक्ष्य था वृद्धि को बढ़ाना तथा अर्थव्यवस्था को ऐसी गति प्रदान करना ताकि वह कम से कम मध्यम अवधि में 8 फीसदी से अधिक की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर हासिल कर सके। वित्त मंत्री ने अपनी रणनीति में करीब दो लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत निवेश बढ़ाने पर भरोसा दिखाया और राज्यों की मदद के लिए एक लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि की बात कही। राज्यों को यह समर्थन बिजली सुधारों तथा शहरी भू कानूनों में संशोधनों से जोड़ा गया। पूंजीगत निवेश पर अधिक व्यय करने का राजकोषीय लचीलापन इसलिए मिल सका क्योंकि जीएसटी के माध्यम से राजस्व संग्रह काफी अच्छा रहा। वित्त मंत्री ने सदन को बताया कि जनवरी 2022 में जीएसटी संग्रह 1,40,986 करोड़ रुपये रहा जो जुलाई 2017 में जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद किसी एक महीने में सर्वाधिक राजस्व संग्रह है।
जीएसटी नीति केंद्रीय बजट के दायरे के बाहर है इसलिए सरकार ने सीमा शुल्क के मोर्चे पर राजस्व जुटाने पर ध्यान केंद्रित किया। इसके लिए चरणबद्ध तरीके से पूंजीगत वस्तुओं के आयात से संबंधित सीमा शुल्क संबंधी रियायतों को समाप्त किया गया तथा चुनिंदा रियायती आयात को परियोजना आयात की श्रेणी में लाया गया।
ऐसे रियायती आयात के लिए न्यूनतम बुनियादी सीमा शुल्क दर 7.5 फीसदी रखी गई है। पूंजीगत वस्तुओं पर से चरणबद्ध ढंग से समाप्त की गई उपरोक्त रियायतों को इस आधार पर उचित ठहराया जाता रहा है कि इससे घरेलू पूंजीगत वस्तु उद्योग को मदद मिलती है। खेद की बात है कि सामान्य शुल्क दर को कम करने का एक बड़ा अवसर गंवा दिया गया जो 2014 के 13 फीसदी से बढ़कर 18 फीसदी तक पहुंच गई है। बड़ी तादाद में वस्तुओं पर से उच्च आयात शुल्क कम करने से विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सकती थी जहां आयात की गहनता 0.35 फीसदी है। इसका दोहरा सकारात्मक असर आयात पर आईजीएसटी संग्रह में सुधार तथा घरेलू विनिर्माण के जीएसटी संग्रह में नजर आता। ध्यान रहे कि कि जीएसटी संग्रह का 70 फीसदी से अधिक हिस्सा जीएसटी के वस्तु क्षेत्र से आता है।
इसके अलावा बीते वर्ष के दौरान जीएसटी राजस्व में तेजी के लिए घरेलू विनिर्माण में किसी अहम सुधार के बजाय आयात अधिक उत्तरदायी था। शुल्क में कमी से उन क्षेत्रों में निर्यात को भी गति मिलती जहां आयात की गहनता अधिक है। जैसा कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने कहा भी, ‘आप संरक्षणवाद की दीवार के पीछे से निर्यात को बढ़ावा नहीं दे सकते।’ बजट में इस अवसर का फायदा बड़ी तादाद में कच्चे माल तथा मध्यवर्ती वस्तुओं मसलन फाइबर, धागों और कपड़े आदि पर शुल्क दरें कम करने में किया जा सकता था। ये चीजें कपड़ा एवं वस्त्र उद्योग में इस्तेमाल होती हैं जो कि देश का सर्वाधिक श्रम आधारित विनिर्माण क्षेत्र है। सौमित्र चटर्जी और डॉ. अरविंद सुब्रमण्यन के एक हालिया अध्ययन ने दिखाया है कि आयात और खुलेपन का कपड़ा एवं वस्त्र क्षेत्र के लिए कितना महत्त्व है। चीन और वियतनाम के तेजी वाले वर्षों की तुलना करते हुए उन्होंने दिखाया कि उनका निर्यात काफी हद तक आयात पर निर्भर था और उनके कपड़ा एवं वस्त्र क्षेत्र में 40-45 फीसदी मूल्यवद्र्धन इसी पर निर्भर था। इसके विपरीत भारत की आयात हिस्सेदारी केवल 16 फीसदी है और भारत के कपड़ा एवं तैयार वस्त्र क्षेत्र के निर्यात में से अधिकांश सस्ते कपड़ों तक सीमित था।
अन्य महत्त्वपूर्ण घोषणाओं की बात करें तो एसईजेड योजना पर नए सिरे से बल देने की बात कही गई। यह बात सर्वस्वीकार्य है कि मौजूदा एसईजेड योजना निर्यात को गति देने में नाकाम रही है। सरकार चाहती है कि निर्यातकों को इस्तेमाल से बची जमीन पर अपने संयंत्र और इकाइयां लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। बजट यह वादा करता है कि सीमा शुल्क के प्रशासनिक नियमन कम होंगे। एसईजेड इकाइयों के लिए कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री ने यह घोषणा भी की है कि एक पूर्णकालिक पोर्टल के माध्यम से एसईजेड के सीमा शुल्क प्रशासन की समस्याओं को दूर किया जाएगा। बजट में निर्यात से जुड़ा एक अन्य उपाय था विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादों पर सीमा शुल्क को कम करना। खासतौर पर उन क्षेत्रों में जिनमें एमएसएमई की मजबूत उपस्थिति है। उदाहरण के लिए हीरा, रत्न, मेथनॉल जैसे अहम रसायन तथा ऐसिटिक ऐसिड आदि। निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए कई सामग्रियों पर रियायत की घोषणा की जा चुकी है। इसमें बटन, चेन, लाइनिंग की सामग्री, खास तरह का चमड़ा, फर्नीचर में काम आने वाली सामग्री तथा पैकेजिंग बॉक्स आदि ऐसी सामग्री हैं जिनकी जरूरत हैंडीक्राफ्ट, कपड़ा एवं चमड़ा, जूते-चप्पल आदि के निर्यातकों को पड़ती है।
अन्य बड़ी घोषणा वह थी जहां वित्त मंत्री ने कहा कि स्टील के कबाड़ पर सीमा शुल्क रियायत को एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा रहा है ताकि एमएसएमई के द्वितीयक इस्पात उत्पादकों को राहत मिल सके। धातु की ऊंची कीमतों की समस्या को पहचानते हुए वित्त मंत्री ने स्टेनलेस स्टील, कोटेड स्टील उत्पादों, एलॉय स्टील तथा उच्च गति के स्टील पर चुनिंदा ऐंटी डंपिंग तथा सीवीडी शुल्क समाप्त करने की बात कही। इससे इन वस्तुओं का उपभोग करने वाले आम मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। अंत में, ईंधन में मिश्रण के सरकारी प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री ने एक अहम घोषणा की और कहा कि 1 अक्टूबर, 2022 से बिना मिश्रण वाले पेट्रोलियम उत्पादों पर प्रति लीटर दो रुपये का अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगेगा। ऐसा करके सरकार पेट्रोलियम उत्पाद निर्माताओं को एथनॉल तथा अन्य कृषि उत्पादों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करना चाहती है ताकि ईंधन के बिल में कमी आए तथा गन्ना उत्पादकों को मदद मिल सके। अप्रत्यक्ष करों को लेकर रुख की बात करें तो अभी भी अधिक से अधिक अनुपालन पर जोर देते हुए जीएसटी राजस्व बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है, बजाय कि दरों में तत्काल कोई बदलाव करने के। सीमा शुल्क की बात करें तो ज्यादातर बदलाव चुनिंदा पूंजीगत वस्तुओं पर सीमा शुल्क रियायत समाप्त करने पर केंद्रित हैं ताकि घरेलू पूंजीगत उद्योग की मदद की जा सके। इस प्रक्रिया में सरकार को कुछ अतिरिक्त सीमा शुल्क राजस्व भी मिलेगा।
(लेखक केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क परिषद के सेवानिवृत्त सदस्य हैं। लेख में विचार निजी हैं)