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मीडिया मंत्र: टेलीविजन में विलय का ‘ड्रामा’ उद्योग के लिए ठीक नहीं

विदेशी पत्र-प​त्रिकाओं में इस सौदे के लंबा खिंचने की सुर्खियां भारत के 2.1 लाख करोड़ डॉलर के मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार के साथ-साथ सोनी और ज़ी के लिए भी अच्छी खबर नहीं है।

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वनिता कोहली-खांडेकर   
Last Updated- January 21, 2024 | 9:29 PM IST

सोनी-ज़ी विलय का ड्रामा उनके प्रतिदिन प्रसारित होने वाले नाटकों की तरह ही पिछले कुछ सप्ताहों से एक से बढ़कर एक रोचक मोड़ से गुजरता रहा है। लंबे समय से हर थोड़े अंतराल पर एक नई खबर के साथ बीच में अटक जाने वाले इस सौदे के बारे में एक आंतरिक सूत्र ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘दोनों कंपनियों में विलय होगा भी या हम कोई वेब सीरीज ही देख रहे हैं।’

सोनी और ज़ी के बीच विलय की घोषणा 21 दिसंबर, 2021 को हुई थी। इस सौदे के अंजाम को पहुंचते ही कंपनी वित्त वर्ष 2023 में 14,851 करोड़ रुपये अथवा 1.8 अरब डॉलर का राजस्व जुटा सकती थी। दोनों के विलय से बनने वाली नई कंपनी गूगल, मेटा और डिज्नी-स्टार के बाद भारत की चौथी सबसे बड़ी मीडिया कंपनी होगी।

विलय के लिए सभी औपचारिक कानूनी प्रक्रियाएं पूरी हो गईं लेकिन अंतिम मिनट में यह सौदा एक सवाल के साथ लटक गया कि विलय के बाद नई बनने वाली कंपनी का सीईओ कौन होगा? पहली बार जब दोनों कंपनियों के विलय की घोषणा हुई थी तो इस बात पर सहमति बनी थी कि ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज के मौजूदा सीईओ और प्रबंध निदेशक पुनीत गोयनका ही बिना किसी शक-ओ-शुब्हा नई संयुक्त कंपनी के प्रमुख बनाए जाएंगे।

जब ज़ी सुभाष चंद्रा के एस्सेल समूह का हिस्सा था तो उस दौरान कथित वित्तीय अनियमितताओं की सेबी द्वारा जांच शुरू किए जाने के कारण 2023 के अंत में सोनी का मन बदल गया। एक शेयरधारक द्वारा पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित से ली गई कानूनी राय के अनुसार दोनों कंपनियों के बीच हुए समझौते के मुताबिक विलय केवल उसी स्थिति में हो सकता है जब गोयनका को विलय के बाद बनने वाली नई कंपनी का सीईओ बनाया जाए।

विदेशी पत्र-प​त्रिकाओं में इस सौदे के लंबा खिंचने की सुर्खियां भारत के 2.1 लाख करोड़ डॉलर के मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार के साथ-साथ सोनी और ज़ी के लिए भी अच्छी खबर नहीं है। मीडिया निवेश के लिए भारत बहुत आकर्षक बाजार नहीं रहा है। समाचार, डिजिटल, फिल्म और इससे जुड़े अन्य सेगमेंट में कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने निवेश किया, लेकिन विभिन्न कारणों से वे पैसा कमाने में कामयाब नहीं हो पाईं।

उदाहरण के लिए केबल टीवी डिस्ट्रीब्यूशन क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश को इजाजत दिए जाने के आठ साल बाद भी कोई अंतरराष्ट्रीय केबल कंपनी इस क्षेत्र में कारोबार करने के लिए भारत नहीं आई। अंतिम स्तर पर जवाबदेही को लेकर अस्पष्टता, कीमतों पर नियामक का नियंत्रण एवं विखंडित कारोबार होने के कारण कॉमकास्ट जैसी दिग्गज केबल कंपनी ने भी एक बार रुचि तो दिखाई, लेकिन बाद में उसने भी अपना मन बदल लिया।

केबल टीवी कनेक्शन को ब्रॉडबैंड में बदलने तथा स्ट्रीमिंग की सुविधा देने वाले निवेश के बिना यह कारोबार पिछड़ता जा रहा है। चार साल पहले जहां दस करोड़ घरों में केबल की पहुंच थी, यह घटकर अब केवल साढ़े पांच करोड़ ही रह गई है। बड़ी बात, केबल क्षेत्र में निवेश का वक्त निकल गया है।

ब्रॉडकास्टिंग जैसे क्षेत्र जिसमें अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने बहुत अच्छे परिणाम दिए हैं, के लिए भी यही बात बहुत जल्द सच साबित हो सकती है। टेलीविजन लगभग 90 करोड़ लोगों तक पहुंच चुका है और 2022 में इस क्षेत्र से 70,900 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। यह भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग का सबसे बड़ा खंड रहा है। लेकिन यह एक परिपक्व कारोबार है।

मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र के हर खंड में घुसपैठ रखने वाली टेक मीडिया दिग्गज कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण यह कारोबार निचले एक अंक में वृद्धि कर रहा है। गूगल और मेटा सबसे बड़े वीडियो कारोबारियों में हैं और चीन को छोड़ विभिन्न देशों से ये डिजिटल ऐडवरटाइजिंग के 70 फीसदी हिस्से पर कब्जा जमाए हुए हैं।

सितंबर 2023 में समाप्त वित्त वर्ष में 278 अरब डॉलर का राजस्व अर्जित करने वाली गूगल अपने दर्शकों को बनाए रखने के लिए सर्च टूल का इस्तेमाल ग्लू के तौर पर करती है। इसी प्रकार 127 अरब डॉलर के राजस्व वाली मेटा ग्राहकों को अपने ब्रांड वाट्सऐप, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लाने के लिए सोशलाइजिंग का इस्तेमाल करती है।

कुल 554 अरब डॉलर वाली एमेजॉन का वीडियो कारोबार थोड़ा बदला हुआ है। एमेजॉन वैश्विक स्तर पर और भारत में भी, गूगल-मेटा जैसी कंपनियों के लिए डिजिटल ऐडवरटाइजिंग क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। 100 अरब डॉलर से अधिक कारोबार करने वाली कंपनियों के क्लब के दरमियान क्या केवल 25 अरब डॉलर की कंपनी सहज रूप से कारोबार कर सकती है?

यही वह समस्या है, जिसका अमेरिका समेत वैश्विक स्तर पर हर बड़ी मीडिया कंपनी को सामना करना पड़ता है। टेक-मीडिया कंपनियां बहुत बड़ी हैं और वे बेहतर स्थिति में हैं और उनके पास पैसा भी है। इसके दम पर वे अपने हर प्रतिस्पर्धी को धराशायी कर आगे बढ़ने की हरसंभव कोशिश करेंगी। यूरोप और अमेरिका में नियामक इस समस्या से जूझ रहे हैं कि आखिर किस प्रकार इन बड़ी कंपनियों को नियंत्रित किया जाए और कैसे प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल खड़ा किया जाए।

इन कंपनियों का मुकाबला करने के लिए बड़ी पूंजी और व्यापक आकार की आवश्यकता होगी। फॉक्स के रूपर्ट मर्डोक को संभवत: यह बहुत पहले ही महसूस हो गया था, जिन्होंने 2018 में अपना मनोरंजन कारोबार डिज्नी को बेच दिया। उसके बाद से एकीकरण की एक लहर सी चली, जो आज तक जारी है। अब डिज्नी कथित रूप से अपना टेलीविजन कारोबार पीसमील बेच रही है, ताकि हुलू में हिस्सेदारी खरीद सके और डिज्नी+हॉटस्टार में और अधिक निवेश झोंक सके।

वार्नर और डिस्कवरी का वर्ष 2022 में विलय हुआ था। पिछले साल के अंत में ऐसी खबर भी आई थी कि पैरामाउंट ग्लोबल (पूर्व में वायकॉम-सीबीएस) वार्नर-डिस्कवरी के साथ विलय के लिए बातचीत कर रही है। भारत में पैरामाउंट आंशिक रूप से पहले से काम कर रही है। उसने अपनी बड़ी हिस्सेदारी वायकॉम18 को दे दी है। इस समय गूगल, मेटा, डिज्नी स्टार, सोनी, ज़ी और रिलायंस इंडस्ट्रीज की वायकॉम18 जैसी कुछ ही दिग्गज कंपनियां बची हैं।

इनमें शीर्ष तीन कंपनियां ही 18,000 करोड़ रुपये या इससे अधिक राजस्व कमाने वाली हैं। जैसी अटकलें लग रही हैं, यदि डिज्नी और वायकॉम18 का विलय हुआ, तो राजस्व के मामले में इससे बनने वाली नई कंपनी गूगल के बराबर हो जाएगी। यदि सोनी और ज़ी एक साथ आती हैं तो इनसे अस्तित्व में आने वाली नई फर्म शीर्ष पांच दिग्गज कंपनियों में शामिल होगी। लेकिन अगर उन्हें अलग कर दें तो या वे टेकओवर कर ली जाएंगी अथवा अप्रासंगिक होकर बाजार से बाहर हो जाएंगी।

टाइम्स समूह को याद कीजिए, जो 1980 और 1990 के दशक में विशाल सामाज्य जैसा प्रतीत होता था, आज यह केवल 8,000 करोड़ रुपये की कंपनी है और अब इतनी प्रभावी नहीं रह गई है, जितनी यह एक दशक पहले तक हुआ करती थी। यदि कोई समूह नई प्रौद्योगिकी और प्रतिस्पर्धा के साथ तालमेल नहीं बैठा पाता तो उसका नतीजा यही होता है।

First Published : January 21, 2024 | 9:29 PM IST