उच्च तीव्रता वाले संकेतकों का ताजा पाठ बताता है कि देश की अर्थव्यवस्था में आ रहे संकुचन की गति धीमी जरूर पड़ी है लेकिन आर्थिक गतिविधियां अभी भी कोविड-19 के आगमन के पहले के स्तर से काफी कम हैं। मौजूदा स्तर से आगे का सुधार धीमी गति से होने की उम्मीद है क्योंकि वायरस का प्रसार निरंतर जारी है और देश के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन पुन: लागू किया जा रहा है। इसका असर खपत पर तो पड़ेगा ही साथ ही यह आपूर्ति शृंखला और उत्पादन को भी प्रभावित करेगा। धीमी गति से होने वाला सुधार कारोबारियों और आम परिवारों के लिए कठिनाई बढ़ाएगा और ऋण अदायगी को नए सिरे से कठिन बनाएगा। व्यवस्था में गैर निष्पादित परिसंपत्तियों यानी फंसे हुए कर्ज का स्तर बढऩा भी तय है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कर्जदाताओं को इजाजत दी कि वे लॉकडाउन के दौरान नकदी की किल्लत से जूझ रहे कर्जदारों की मदद करने के लिए ऋण अदायगी को एक विशेष अवधि के लिए स्थगित कर दें। यह सुविधा अगले महीने समाप्त हो जाएगी और जानकारी के मुताबिक इस स्थगन को बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। आरबीआई कर्ज के एकबारगी पुनर्गठन की अनुमति देने पर भी विचार कर रहा है।
इस संदर्भ में यदि नियामक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार की बात पर विचार करें तो बेहतर होगा। कुमार ने कहा है कि अब सभी के लिए ऋण अदायगी पर रोक की आवश्यकता नहीं है। बहरहाल, कई क्षेत्र और कंपनियां ऐसे हैं जिन्हें अभी भी राहत की आवश्यकता होगी। ऐसे में आरबीआई यह तय करने का काम कर्जदाताओं पर छोड़ सकता है कि किसे ऋण अदायगी में स्थगन की आवश्यकता है या किसके ऋण का पुनर्गठन किया जाना चाहिए। यह बात समझदारी भरी है क्योंकि अगर सबके लिए एकबारगी विस्तार किया गया तो हमें वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगाने में मुश्किल होगी। आर्थिक गतिविधियां आरंभ हो गई हैं और ऐसे में ऋण अदायगी भी शुरू होनी चाहिए। कई छोटे और मझोले कारोबारियों ने ऐसा शुरू भी कर दिया है। चुनिंदा ऋण स्थगन या पुनर्भुगतान से बैंकों को भी कर्जदारों के नकदी प्रवाह का सही आकलन होगा। यह मानना होगा कि कुछ कमजोर और अत्यधिक कर्ज में डूबी फर्म नाकाम होंगी और सबके लिए ऋण अदायगी में स्थगन से मामला बस थोड़ा और टलेगा। बैंकिंग व्यवस्था या नियामक के लिए यह संभव नहीं कि वह हर एक को बचा सके। कमजोर फर्म की नाकामी पूंजी को किफायती फर्म तक पहुंचाएगी और इससे अर्थव्यवस्था किफायती होगी।
ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता के निलंबन ने वसूली को मुश्किल किया है। ऋण अदायगी की अवधि बढ़ाने से ऋण संस्कृति प्रभावित होगी और इस क्षेत्र में वर्षों के दौरान अर्जित लाभ गंवा दिए जाएंगे। कर्जदाताओं को ऋण पुनर्गठन या अदायगी की शर्तों की समीक्षा की अनुमति देने के अलावा नियामक को यह भी तय करना चाहिए कि फंसा कर्ज छिपाने के नए तरीके न तलाशे जाएं। चूंकि निकट भविष्य में इसमें इजाफा होना तय है इसलिए बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों दोनों को पूंजी जमा करनी होगी। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल में सही कहा कि निजी और सार्वजनिक दोनों तरह के बैंकों का पुनर्पूंजीकरण जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में आगे बढ़े क्योंकि सरकारी बैंकों का दबदबा है। कमजोर बैलेंस शीट वाले कर्जदाताओं के लिए आगे ऋण देना और वसूली मुश्किल होंगे। बैंकों को अपने संचालन और जोखिम प्रबंधन तंत्र में सुधार करना होगा ताकि कोविड संबंधी नुकसान कम किया जा सके। नियामक को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि कर्जदाता फंसे हुए ऋण को समय रहते पहचानें और उनके पास पर्याप्त पूंजी हो। वित्तीय संकट के बाद फंसे कर्ज को चिह्नित करने में देरी का असर अभी भी अर्थव्यवस्था पर है। यह दोहराया नहीं जाना चाहिए।
