प्रतीकात्मक तस्वीर
‘एकेन बाबू’ की शक्ल-सूरत देखकर कोई नहीं कहेगा कि वह एक जासूस हैं। मोटे कद-काठी और कम बालों वाले इस किरदार का सृजन 1991 में दिवंगत लेखक सुजन दासगुप्ता ने बांग्ला पत्रिका ‘आनंद मेला’ के लिए किया था। वर्ष 2018 में ‘एकेन बाबू’ बांग्ला वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस होइचोई पर एक वेब सीरीज के रूप में सामने आई। यह शो अब अपने 8वें सीजन का सफर तय कर रहा है। एकेन बाबू की लोकप्रियता से उत्साहित होकर होइचोई की मूल कंपनी एसवीएफस एंटरटेनमेंट (कोलकाता स्थित एक बड़ी स्टूडियो एवं वितरक कंपनी) ने एकेन बाबू के किरदार को केंद्र में रखकर 2022 में एक फिल्म का निर्माण किया। इस साल मई में इस सीरीज की तीसरी किस्त ‘एकेनः बनारस-ए- विभीषिका’ प्रदर्शित हुई। होइचोई एक सबस्क्रिप्शन आधारित सेवा है जिसकी शुरुआत 2017 में हुई थी। यह स्ट्रीमिंग सर्विस 100 करोड़ रुपये राजस्व (वित्त वर्ष 2024-25) के साथ अब थोड़ा मुनाफा कमाने लगी है।
हैदराबाद में तेलुगु स्ट्रीमिंग ऐप ‘अहा’ इस साल 150 करोड़ रुपये राजस्व के साथ नफा न नुकसान की स्थिति में आ जाएगी। ‘अहा’ की शुरुआत माई होम ग्रुप और अल्लू अरविंद की गीता आर्ट्स ने की है। इसके 25 लाख उपभोक्ता (सबस्क्राइबर) हैं। ‘स्टेज’ नाम के की अन्य ओटीटी ने हाल में 100 करोड़ रुपये जुटाए हैं जिनका इस्तेमाल वह अपने उपभोक्ताओं की संख्या मौजूद 44 लाख से बढ़ाकर 7-8 करोड़ करने में इस्तेमाल करेगी। ‘स्टेज ‘ ओटीटी हरियाणवी, भोजपुरी और राजस्थानी भाषाओं में कार्यक्रम की पेशकश करती है और आगे वह मैथिली, बुंदेली, अवधी और मराठी सहित 18 अन्य भाषाओं में भी कार्यक्रम शुरू करना चाहती है।
ये आंकड़े छोटे लगते हैं। मीडिया पार्टनर्स एशिया के अनुसार वर्ष 2024 में स्ट्रीमिंग वीडियो ने विज्ञापन और 12.5 करोड़ उपभोक्ताओं से भुगतान राजस्व के माध्यम से 35,600 करोड़ रुपये जुटाए। इस तरह, कुछ लाख उपभोक्ता और कुछ करोड़ रुपये राजस्व बहुत अधिक प्रतीत नहीं होते हैं। यह स्थिति के पीछे इतिहास और मुनाफा कमाने की संभावना ये दो कारण हैं।
पहले इतिहास पर बात करते हैं। स्ट्रीमिंग भी टेलीविजन की तरह ही कारोबार विस्तार की राह पर चल रही है। भारत में निजी टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत 1991 में हुई थी जब स्टार टीवी और सीएनएन ने कदम रखा था। ज़ी 1992 में इस होड़ में शामिल हुआ और इसके तुरंत बाद पहला कलानिधि मारन का सन टीवी (तमिल भाषा का चैनल) 1993 में आया। रामोजी राव के चैनल इनाडु टीवी (तेलुगु) की शुरुआत 1995 में हुई। ज़ी मराठी, एशियानेट (मलयालम), मां टीवी (तेलुगु) और कई अन्य निजी टेलीविजन चैनलों की शुरुआत हुई। ज़ी को छोड़कर कोई भी बड़ी प्रसारण कंपनी गैर-हिंदी भाषा खंड में तत्काल नहीं उतरी।
इसका कारण यह है कि मूल्य एवं कारोबार दोनों के लिहाज से हिंदी मीडिया एवं मनोरंजन का सबसे बड़ा हिस्सा है। इसका कारण यह है कि देश के एक बड़े हिस्से में हिंदी बोली जाती है। इस भाषा के कार्यक्रमों का तंत्र एवं ढांचा सिनेमा और दूरदर्शन के कारण अच्छी तरह विकसित हो पाया। फिल्म निर्माताओं ने 1980 के दशक में ‘बुनियाद’ या ‘कथासागर’ सहित अन्य लोकप्रिय कार्यक्रम बनाए। हिंदी के बाद तेलुगु और मलयालम दो अन्य ऐसी भाषाएं थीं जिनका ढांचा काफी विकसित था। इन दोनों भाषाओं के लेखक, फिल्म निर्माता, तकनीशियन टेलीविजन पर नए दर्शकों के लिए कार्यक्रम तैयार कर सकते थे। इस तरह, हिंदी के बाद इन भाषाओं ने रफ्तार पकड़ी।
तमिल, तेलुगु और मलयालम भाषाओं की पहुंच इस कारण से सीमित रही कि हिंदी बोलने वाली आबादी में केवल 5-10 प्रतिशत लोग ही ये भाषाएं बोल सकते हैं। मगर दिलचस्प बात है कि विभिन्न भाषाओं के दर्शकों में दशकों तक सन टीवी भारत में सबसे अधिक देखा जाना वाला चैनल रहा। कोविड-19 महामारी के बाद दंगल टीवी ने इसकी जगह हथिया ली। सन, मां टीवी और कई अन्य चैनल भारत में 10 सर्वाधिक देखे जाने वाले टीवी चैनलों में नियमित रूप से शुमार रहते हैं। इसका कारण यह है कि कई उत्तरी राज्यों में केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित) की तरह कभी भी केबल टीवी की 80-90 प्रतिशत पहुंच नहीं हो पाई। टेलीविजन पर ये तीनों भाषाएं अपने लगभग सभी दर्शकों तक पहुंच रही हैं मगर हिंदी ऐसा नहीं कर पा रही है।
अन्य भाषाओं की बात करें तो पंजाबी, भोजपुरी, बांग्ला या मराठी बोलने वाले दर्शक द्विभाषी होते हैं। हिंदी ने अपने दमदार कार्यक्रमों की बदौलत इन भाषाओं के बाजार में आसानी से जगह बना लेती है। हिंदी की बराबरी करने का मतलब है लागत में इजाफा करना, जो प्रति एपिसोड 1 लाख रुपये से बढ़कर 10-15 लाख तक पहुंच सकती है। इन बाजारों में विज्ञापन एवं भुगतान राजस्व इतनी अधिक लागत के लिए नाकाफी हैं। इससे साबित हो जाता है कि इन भाषाओं में स्वतंत्र और बड़े दोनों नेटवर्क के प्रयास सफल नहीं हुए जबकि दक्षिण भारतीय भाषाओं में निवेश के सकारात्मक परिणाम मिले। स्टार, वायकॉम18 और ज़ी पंजाबी और गुजराती सहित अन्य भाषाओं में जरूर उतरी मगर उसे सीमित सफलता ही मिली।
यह स्थिति हमें दूसरे कारण की तरफ खींचती है कि क्यों ‘होइचोई’ या ‘अहा’ की धीमी लेकिन निरंतर प्रगति दिलचस्प है। ये दोनों ही मुनाफा देने वाले कारोबार में और उस स्तर पर हैं जहां तक कोई गैर-हिंदी भाषा कारोबार हो सकता है। उनके साथ एक अच्छी बात यह भी है कि वे एक बड़ी इकाई का हिस्सा हैं। उदाहरण के लिए होइचोई की मूल कंपनी एसवीएफ बांग्ला सिनेमा एवं टेलीविजन पर पिछले 30 वर्षों से केंद्रित रही है। इसका प्रदर्शन उसी तरह रहा है जैसा सन टीवी का तमिल या तेलुगु में इनाडु का रहा है। जरा इस आंकड़े पर गौर करें। 2025 में नेटफ्लिक्स पर भारत से 26 शो एवं फिल्म मौजूद हैं जबकि होइचोई पर 25 शो तो केवल बांग्ला भाषा के हैं।
नई शताब्दी की शुरुआत में कई बड़े प्रसारणकर्ताओं ने स्थानीय कारोबारों इकाइयों का अधिग्रहण कर अपने कारोबार का विस्तार कर लिया। स्टार ने एशियानेट (2009) और मां टीवी (2015) दोनों को खरीद लिया। इस समय ज्यादातर प्रसारणकर्ताओं के कुल राजस्व में गैर-हिंदी भाषाओं के कार्यक्रमों की हिस्सेदारी लगभग 25-30 प्रतिशत तक पहुंच गई है। अगर भाषा आधारित टेलीविजन का विकास कोई संकेत है तो भविष्य में जब बड़े प्लेटफॉर्म राजस्व जुटाने और अपने गैर-हिंदी कारोबार को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे तो उनकी ‘होइचोई’ और ‘अहा’ जैसे ब्रांड खरीदने में काफी दिलचस्पी हो सकती है। अक्सर कहा जाता कि इतिहास स्वयं को दोहराता है।