इसमें कोई संदेह नहीं कि हल्के-फुल्के एवं आसान नियम-कायदे बनाने और लालफीताशाही कम करने से कारोबार चलाना भी आसान हो जाएगा और लोगों का जीवन भी सुगम हो जाएगा। सरकार पिछले कुछ समय से निवेशकों के लिए ‘रेड टेप’ (लालफीताशाही) यानी बेजा औपचारिकताओं और कायदों के जरिये बाधा पैदा करने वाले तौर-तरीकों को हटाकर ‘रेड कारपेट’ बिछाने यानी कामकाज सुगम बनाने की कोशिश कर रही है। संसद में पिछले महीने पेश आर्थिक समीक्षा में भी निवेशकों की राह आसान बनाने के लिए सरकारी ताम-झाम दूर करने की जरूरत बताई गई थी।
इसी को आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय बजट में एक समिति के गठन का प्रस्ताव रखा गया, जो वित्तीय क्षेत्र को छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में भागीदारों पर नियामकीय बोझ कम करने के तरीके तलाशेगी। इस समिति का गठन अभी होना बाकी है और यह भी तय नहीं हुआ है कि इसके सदस्य कौन होंगे मगर माना जा रहा है कि साल भर के भीतर वह अनुपालन के झंझट कम करने के तरीके सुझाएगी। हो सकता है कि यह काम मुश्किल हो या नहीं हो मगर उपभोक्ताओं को सीधी सेवाएं देने वाले क्षेत्रों में मौजूद नियमों की समीक्षा तो करनी ही होगी ताकि उपयोगकर्ताओं को फायदा मिल सके।
उदाहरण के लिए कैब एग्रीगेटरों (टैक्सी उपलब्ध कराने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म) को स्पष्ट और कारगर नियमों का पालन करना चाहिए ताकि यात्रियों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। कैब एग्रीगेटरों को आजकल नए जमाने के इलेक्ट्रिक राइड शेयरिंग प्लेटफॉर्मों की तरफ से कुछ होड़ तो दिख रही है मगर अभी उनकी संख्या और पैठ काफी कम है। सार्थक सेवा मुहैया कराने वाले बड़ी संख्या में आएंगे तो यह क्षेत्र उपयोगकर्ताओं यानी यूजर्स के लिए अधिक सहज, सरल बन सकता है मगर इसमें अभी समय लगेगा।
एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म के पास इस समय दोपहिया, तिपहिया और कैब समेत करीब लगभग 25 लाख वाहन हैं मगर राज्य सरकारों के पास अपने अलग आंकड़े हैं। उदाहरण के लिए पिछले साल तक दिल्ली सरकार की मोटर वाहन एग्रीगेटर एवं आपूर्ति सेवा प्रदाता योजना के अंतर्गत 21 कैब एग्रीगेटर और 1 लाख से अधिक वाहन पंजीकृत थे। राज्य परिवहन विभाग के अनुसार इन कैब एग्रीगेटरों में ई-कॉमर्स कंपनियां एवं सामान डिलिवर करने वाली इकाइयां भी थीं। नियमों के अनुसार अगर किसी कैब एग्रीगेटर, डिलिवरी सेवा प्रदाता या ई-कॉमर्स कंपनी के पास 25 से अधिक वाहन हैं तो उसे इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ाने के लक्ष्य के साथ लाई गई उस योजना के अंतर्गत पंजीयन कराने के बाद ही लाइसेंस मिलेगा। ऐसा नहीं करने पर हर बार पकड़े जाने पर 5,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक जुर्माना देना पड़ सकता है।
इस योजना के अंतर्गत वाहनों के पंजीयन से एक उद्देश्य पूरा होता है मगर मुसाफिरों को रोजाना जिन व्यावहाराक बाधाओं से दोचार होना पड़ता है उन पर अधिकारियों का ध्यान ही नहीं जाता। सर्ज प्राइसिंग को ही ले लीजिए। इसमें एग्रीगेटर दिन के किसी खास समय पर, किसी खास जगह के लिए या भीड़ ज्यादा होने पर भाड़ा बढ़ा देता है, जिस पर पूरी दुनिया में बहस होती रही है। भारत भी अपवाद नहीं है और यहां बाजार में स्वस्थ होड़ सुनिश्चित करने वाला भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (सीसीआई) इस पर कुछ कर भी रहा है। मगर एग्रीगेटर कंपनियां कहती आई हैं कि उनके मोबाइल ऐप्लिकेशन का अल्गोरिद्म किराया तय करता है और इसमें कोई मानवीय हस्तक्षेप नहीं होता। इस पर बहस अभी चल ही रही है मगर कैब एग्रीगेटरों की तरफ से सर्ज प्राइसिंग ही इकलौती दिक्कत नहीं है। कैब बुक कराते समय उसका बुक हो जाना और ड्राइवर का समय से आ जाना या समय से पहुंचा देना सबसे बड़ी चिंता होती है। भारत के हरेक शहर में यूजर्स का कभी न कभी इससे सामना हुआ ही होगा।
ऐप खोलकर कैब बुक करने से लेकर टैक्सी में बैठने के बीच का समय आपके लिए बहुत तकलीफदेह हो सकता है और यह काफी हद तक ड्राइवर (जिन्हें एग्रीगेटर पार्टनर कहते हैं) के मिजाज पर निर्भर करता है। कैब चालक गिग यानी अस्थायी कामगार होते हैं और ऐप पर बुकिंग होने के बाद भी कई बार वे ट्रिप कैंसल कर देते हैं। ट्रिप अच्छी लगती है तभी वे यात्री के पास पहुंचते हैं। कैंसल करने की वजह भी वे नहीं बताते। कई बार तो वे न तो यात्री के पास जाते हैं और न ही ट्रिप कैंसल करते हैं, चुपचाप बैठ जाते हैं। यात्री बेचारा उसके इंतजार में बंधा रह जाता है और दूसरी कैब बुक भी नहीं करा पाता। मगर इस पर भी उनसे कोई सवाल नहीं किया जाता। इसके अलावा किराये के रिफंड, सुरक्षा, स्वच्छता और कैब चलाते वक्त फोन पर बात करते रहने वाले ड्राइवरों जैसी कई समस्याएं हैं मगर उन पर फिर कभी बात की जा सकती है।
जब से कैब एग्रीगेटर, ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स हमारे जीवन का अहम हिस्सा बने हैं तब से गिग इकॉनमी (अस्थायी रोजगार देने वाली बाजार व्यवस्था) पर सरकार का ध्यान जाने लगा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गिग कर्मियों के लिए हालात बेहतर बनाने के मकसद से केंद्रीय बजट में कई घोषणाएं की हैं और उन्हें प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में शामिल कर स्वास्थ्य सेवा के फायदे देने का इंतजाम किया है। गिग कर्मियों और उनके प्लेटफॉर्मों के लिए कुछ स्पष्ट दिशानिर्देश एवं नियामकीय व्यवस्थाएं हों तो उपयोगकर्ताओं की शिकायतें दूर करने में मदद मिल सकती है।
वर्ष 2022 में कैब एग्रीगेटर प्रणाली का अध्ययन करने के बाद सीसीआई ने सर्ज प्राइसिंग का जिक्र किया था मगर यह भी कहा था कि जरूरी नहीं कि सर्ज प्राइसिंग को प्रतिकूल मानने की धारणा सही ही हो क्योंकि कई यूजर सुविधा और दूसरी बातों को ज्यादा अहमियत देते हैं। मगर सीसीआई ने सुझाव दिया था कि कैब एग्रीगेटरों को स्वयं ही कायदे में रहने के उपाय करने चाहिए ताकि उनकी सेवा में सबसे अच्छे तौर-तरीके शामिल हों और व्यवस्था भी एकदम दुरुस्त रहे।
कैब एग्रीगेटरों को भारत में एक दशक से अधिक समय हो चुका है। इनमें विदेशी कैब एग्रीगेटर भी हैं और विदेशी कंपनियों से निवेश पाकर कारोबार कर रही कंपनियां भी हैं। अब समय आ गया है कि वे कारोबार के सबसे अच्छे तौर-तरीकों को वाकई में लागू करें। इसके लिए ड्राइवरों को बेहतर फीस देनी होगी और कामकाज के ज्यादा सहूलियत भरे घंटे मुहैया कराने होंगे। उनकी सेवा इस्तेमाल करने वालों के लिए सफर तभी आनंद भरा हो पाएगा।