इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) मार्केटिंग सेक्टर की इस साल की सबसे बड़ी पहल है।
अगर पांच दिवसीय मैच का ईजाद क्रिकेट के मुरीदों ने किया और वनडे मीडिया का प्रॉडक्ट है, तो कहा जा सकता है कि आईपीएल बिजनेस का नतीजा है। और हर बिजनेस आखिरकार मार्केटिंग ही होता है, विभिन्न तरह की मार्केटिंग का समावेश।
बीसीसीआई, बिजनेस घराने, मीडिया, फिल्म इंडस्ट्री मिलकर एक अपार संभावना वाला ब्रांड तैयार करने की कोशिश में जुटे हैं। उपभोक्ताओं के नजरिए से देखें तो आईपीएल 4 भारतीय मर्जों का घालमेल (कॉकटेल) है।
पहले हम इसकी बुनियाद यानी क्रिकेट की बात करते हैं। 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम के वर्ल्ड कप जीतने के बाद से यह रोग महामारी की तरह फैल रहा है। उस वक्त के मुकाबले मैंचों की तादाद काफी बढ़ गई है, इसके बावजूद लोगों की दिलचस्पी कम नहीं हुई है। भारतीय उपमहाद्वीप इस खेल के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गया है। बीसीसीआई इतनी ताकतवर संस्था बन चुकी है कि यह क्रिकेट से जुड़े किसी भी मुद्दे ( मैदान के अंदर और बाहर दोनों) पर अपनी मनमानी करती है।
आईपीएल को सिनेमा से जोड़कर इसमें थोड़ा और ग्लैमर का पुट दिया गया है। सिनेमा भारतीय लोगों के लिए अफीम की तरह है। टेलिविजन के आगमन ने भी इसकी ताकत को कम नहीं किया है। एंटरटेनमेंट और न्यूज चैनलों के लिए फिल्में टीआरपी प्राप्त करने का बहुत बड़ा जरिया हैं।
चाहे ‘फ्लॉप’ बस्टर्स और ‘ब्लॉक’ बस्टर्स के वर्ल्ड प्रीमियर की बात हो या अवॉर्ड होस्ट करने का मामला या फिर सितारों और उनकी जिंदगी के बारे में किस्सागोई, क्रिकेट की तरह सिनेमा भी हर रूप में लोगों के मनोरंजन का अटूट हिस्सा है। इसके अलावा भारतीय लोगों को मस्ती के मूड का तड़का भी चाहिए। हमें खुशी मनाने और मस्ती करने का कोई न कोई बहाना चाहिए। देश में सभी धर्मों और पंथों को दिए जाने वाले सम्मान के मद्देनजर यहां औसतन रोज-ब-रोज कोई न कोई त्योहार होता है।
सभी समुदाय की अपनी परंपराएं हैं और सब के खुशी मनाने में जो बात आम है वह है लोगों का साथ मिलकर नाचना-गाना और प्रदूषण और नागरिक नियमों को नजरअंदाज कर थोड़ा शोर मचाना।चौथी और अंतिम बीमारी है सेलिब्रेटी के प्रति दीवानगी। भारत में 33 करोड़ देवी-देवता हैं और हम काफी आसानी से किसी को हीरो बना देते हैं।
चाहे क्रिकेट स्टार हो या फिल्म स्टार, अचानक हम उसे आसमान पर चढ़ा देते हैं और दूसरे ही पल जमीन पर पटक देते हैं। अक्सर देखा जाता है कि अपने नायक की एक झलक देखने के लिए लोगों की हजारों की तादाद में कहीं भी पहुंच जाते हैं। शायद भारत ही ऐसा मुल्क है, जहां किसी फिल्म स्टार की जेल से रिहाई के बाद उसका स्वागत इस तरह किया जाता है, मानो वह अपना कोई मिशन पूरा कर वापस लौटा हो।
जब ऊपर बताए गए चारों अवयव एक साथ मिल जाते हैं, तो यह घालमेल इंडियन प्रीमियर लीग कहलाता है। बिजनेस को ध्यान में रखकर इसकी पैकेजिंग कीजिए और इसके जरिए आप बिजनेस के नए नियम (स्पोट्र्स और एंटरटेनमेंट) बनाने में सक्षम हो सकते हैं। इस अभियान में कुछ बेहतरीन बिजनेस ग्रुपों का हाथ होने और प्रमोशन के लिए की जा रही कवायद के मद्देनजर लोग इस मैच को देखने का प्रयोग कर रहे हैं। आईपीएल कई मायनों में नई परंपरा की शुरुआत कर रहा है।
क्रिकेट का आगाज बैट बनाम बॉल के खेल के तौर पर हुआ था। मीडिया ने इसे लोगों के सामने मनोरंजन के रूप में पेश किया। आईपीएल के जरिये अब क्रिकेट को मार्केटिंग शो में बदला जा रहा है। क्रिकेटर्स अब महज खिलाड़ी न रहकर शो करने वाले बन चुके हैं और इसके साथ ही अब कोई मैच महज दो टीमों के बीच मुकाबला न रहकर सीरियल का एक एपिसोड बन चुका है।
क्रिकेटरों के पास अपनी स्टार पावर होती है, जो इस खेल को काफी लुभावना बनाती है। जहां तक आईपीएल की बात है, इसमें सेलिब्रेटीज के ‘सितारे’ शाहरुख खान, प्रीति जिंटा आदि के शामिल होने की वजह से इसकी ताकत और बढ़ गई है। आईपीएल दो मर्जों को एक साथ लाता है- क्रिकेट और सिनेमा।
क्रिकेट हमारे देश के लोगों के दिलों की धड़कन बन चुका है। भारत की पहचान को क्रिकेट से अलग करके देखना संभव नहीं है। हालांकि आईपीएल ने स्थानीयता की भावना को भुनाने की कोशिश की है। आज की वैश्विक दुनिया में जहां एकीकरण प्रमुख शब्द है, वहीं आईपीएल टीमों का आधार संस्कृति के आदान-प्रदान पर टिका है।
प्रमुख समाजशास्त्री पॉल हैरिस का कहना है कि ग्लोबल दुनिया में स्थानीय पहचान एक बहुत बड़ा अवसर है। संभवत: आईपीएल इसी उभरते ट्रेंड का सहारा थामने की कोशिश कर रही है।अब तक क्रिकेट टीम का खेल रहा है। इसकी बुनियाद ही इस आधार पर रखी गई है कि खिलाड़ी एक-दूसरे को बेहतर तरह से जानें और इसके लिए नेट पर एक-दूसरे के साथ खेलें।
आईपीएल ने इस पूरी अवधारणा को बदल दिया है और टीम वर्क में कॉरपोरेट शैली का आगाज किया है। आईपीएल में किसी खास प्रोजेक्ट के लिए पेशवरों को साथ करने की कवायद की गई है। इसमें जीत का फॉरम्युले के तहत व्यक्तिगत ताकत को आधार बनाया गया है, जिसमें खेल के लिए बहुत कम गुंजाइश है। हालांकि टीम में मिश्रित संस्कृति के जरिये विभिन्न देशों के बीच सौहार्द बढ़ाने में मदद मिलेगी।
सवाल यह पैदा होता है कि क्या इस कवायद से क्रिकेट के अन्य फॉर्म (टेस्ट और वन डे आदि) का खात्मा हो जाएगा ऐसा लगता जरूर है, लेकिन सचाई यह है कि इस दुनिया में हर प्रॉडक्ट का अपना स्थान है, बशर्ते इसे सही तरीके से चलाया जाए। मिसाल के तौर पर फास्ट फूड रेस्तरां बैठने वाले रेस्तरांओं को खत्म नहीं कर सकता। दोनों तरह के रेस्तराओं की अपनी-अपनी अहमियत है।
अगर वनडे क्रिकेट ने इस खेल को टीवी के जरिये लोगों तक पहुंचाया तो आईपीएल क्रिकेट को ग्लोबल बना सकता है। अत: क्रिकेट नहीं खेलने वाले मुल्कों को एक टीम तैयार करने के लिए स्थानीय प्रतिभाओं की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह पूरा मामला बेहतरीन प्रतिभाओं को खरीदने का है।
कुल मिलाकर अगर हम राष्ट्र भावना से ओतप्रोत होकर कहें तो माना जा सकता है कि यह दुनिया के लिए इंडियन ब्रांड ‘एक्सपोर्ट’ साबित हो सकता है। इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि इस बाबत ललित मोदी के प्रयोग और बिजनेस घरानों के समर्थन को शाबाशी दिए जाने की जरूरत है।
(लेखक के विचार निजी हैं)