भारत की मुद्रास्फीति एक नए दौर में प्रवेश कर गई है। छह वर्षों तक लक्ष्य से ऊंची रही मुद्रास्फीति से संघर्ष करने के बाद और महामारी, जंगों और खाद्य मुद्रास्फीति के झटकों से गुजरते हुए हेडलाइन मुद्रास्फीति आखिरकार 2025-26 में रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य से नीचे रहती नजर आ रही है। यदि यह अवस्फीतिकारक दायरा बरकरार रहता है तो मौद्रिक नीति द्वारा वृद्धि को समर्थन देने की गुंजाइश उससे अधिक होगी जितनी कि लोगों को अपेक्षा है।
4 फीसदी से कम मुद्रास्फीति रहेगी बरकरार?
यह सही है कि 4 फीसदी से कम मुद्रास्फीति का टिकाऊ स्तर पर बरकरार रहना महत्त्वाकांक्षी प्रतीत होता है, लेकिन हमें मांग और आपूर्ति संबंधी कई अनुकूल कारक भी नजर आते हैं।
सबसे पहली बात यही कि हेडलाइन यानी समग्र मुद्रास्फीति 4 फीसदी से नीचे आ चुकी है और इसकी आंशिक वजह सब्जियों की कीमत भी है। परंतु उसे बाहर कर देने पर भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति बीते वर्ष के दौरान औसतन 3.6 फीसदी रही है।
अंतर्निहित मुद्रास्फीति भी कम बनी हुई है। हमारे 20 फीसदी कटौती वाले माध्य सीपीआई मुद्रास्फीति का माप जिसमें उच्चतम और न्यूनतम मुद्रास्फीति वाले बाहरी मूल्य शामिल नहीं हैं, जनवरी 2024 में 4 फीसदी से नीचे आ गया और इस अप्रैल में यह केवल 3.3 फीसदी था। रिजर्व बैंक का कोर मुद्रास्फीति संबंधी माप 4 फीसदी ऊपर निकल गया लेकिन ऐसा मुख्य रूप से सोने की ऊंची कीमतों की वजह से हुआ। कोर बास्केट से जिंसों को निकाल दिया जाए तो तीन महीने की मौसम समायोजित वार्षिक दर 3.5 फीसदी रही।
दूसरा, खाद्य मुद्रास्फीति में आगे और गिरावट आने की उम्मीद है। आमतौर पर दालों की कीमत अधिक होने पर अधिक बोआई को प्रोत्साहन मिलता है, इससे आपूर्ति बढ़ती है और कीमतों में कमी आती है। उच्च उत्पादन और बढ़े हुए आयात के कारण दालों की कीमतों में पहले ही कमी आने लगी है और आने वाले दिनों में इनमें और कमी आएगी।
बेहतर घरेलू उत्पादन और कम मांग के कारण मसालों की कीमत में कमी आई है। रबी की अच्छी फसल, जलाशयों में बेहतर जल स्तर और इस वर्ष अनुकूल मॉनसून के कारण प्रमुख खाद्यान्नों की कीमत में और गिरावट आने की संभावना है। भारत का मुद्रास्फीति चक्र खाद्य कीमतों से संचालित होता है इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है।
तीसरी बात, कच्चे माल या इनपुट की लागत में भी कमी आ रही है। कृषि की बात करें तो उर्वरक, डीजल और चारे की कीमतों में महंगाई कम हो रही है और ग्रामीण कृषि मेहनताने में इजाफा भी धीमा है। विनिर्माण की बात करें तो ऊर्जा और औद्योगिक धातु कीमतों में कमी आई है। इससे जिंस लागत मुद्रास्फीति कम हुई है। सेवा क्षेत्र की बात करें तो सूचीबद्ध कंपनियों के वेतन और मजदूरी में कमी, जो शहरी वेतन का संकेतक है, इनपुट की कम लागत का संकेत देती है।
चौथा, चीन भी मुद्रास्फीति में कमी का एक स्रोत है। अमेरिका और चीन के बीच हालिया समझौते के बावजूद चीन के आयात पर अमेरिकी टैरिफ, भारत पर अमेरिकी टैरिफ की तुलना में कहीं अधिक हैं। मार्च-अप्रैल में चीन से होने वाले हमारे आयात में साल दर साल आधार पर 26 फीसदी का इजाफा हुआ। इससे संकेत मिलता है कि कम कीमत वाले चीनी उत्पाद भारत में आ रहे हैं और उसके लिए अलग-अलग रास्तों का प्रयोग किया जा रहा है।
पांचवां, अर्थव्यवस्था में भी शिथिलता आई है। कमजोर होती ऋण वृद्धि, कमजोर वैश्विक मांग, निजी पूंजी निवेश पर अनिश्चितता का प्रभाव और नीतियों के लागू होने में लगने वाला समय, इन सब का अर्थ यह है कि उत्पादन में अंतराल वित्त वर्ष 26 में भी मामूली रूप से नकारात्मक बना रहेगा।
छठी बात, मु्द्रा कोई बड़ा जोखिम नहीं है। अमेरिकी वृद्धि में धीमापन आने, परिसंपत्ति आवंटन के अमेरिका से दूर होने, अमेरिकी वित्तीय स्थिति को लेकर जोखिम उत्पन्न होने और बाजार का यह नजरिया होने कि पूर्वोत्तर एशिया के साथ व्यापार वार्ताओं में विनिमय दर पर भी चर्चा हो रही है, इन सबका यह अर्थ है कि अमेरिकी डॉलर में आने वाले महीनों में नरमी बनी रहेगी।
भविष्य में कम रहेगी मुद्रास्फीति
इन कारकों को मिलाकर देखें तो हमें उम्मीद है कि महंगाई साल-दर-साल आधार पर अप्रैल के 3.2 फीसदी से कम होकर मई के बाद अगले कुछ महीनों तक 3 फीसदी के आसपास रहेगी। इस बीच सीपीआई मुद्रास्फीति का औसत 2026 में संभवत: रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के मध्यम लक्ष्य से काफी कम हो जाएगा।
मुद्रास्फीति में गिरावट चक्रीय हो सकती है लेकिन इसके अन्य सकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए कम खाद्य कीमतों के कारण आम परिवारों के मुद्रास्फीति अनुमान में और कमी आएगी।
जोखिम पर नजर
अवस्फीति से संबंधित इस नज़रिये के लिए मुख्य जोखिम भू-राजनीतिक व्यवधान, मौसम संबंधी अनिश्चितताएं और वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता के कारण उत्पन्न होने वाले बढ़त के झटके हैं। इस बीच वैश्विक मांग को गहरा झटका एक नकारात्मक जोखिम है। भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि इनमें से किसी भी बढ़त के झटके के समायोजन के लिए पर्याप्त गुंजाइश है।
मौद्रिक नीति के लिए निहितार्थ
भारत में दरों में कटौती चक्र को वैश्विक जोखिम के आधार पर समायोजित करना होगा। बाहरी परिदृश्य चुनौतीपूर्ण है। टैरिफ की वजह से कारोबार और नीतिगत अनिश्चितता बरकरार है लेकिन यह अनिश्चितता सक्रिय घरेलू नीति संबंधी रुख को मजबूती देता है। अगर बाहरी मांग कमजोर पड़ती है तो घरेलू कारकों की भूमिका अहम होगी। खुशकिस्मती से भारत में अवस्फीति, टैरिफ के कारण अमेरिका में अनुमानित मुद्रास्फीतिजन्य झटके के एकदम विपरीत होगी। इससे रिजर्व बैंक को फेडरल रिजर्व से अलग रुख लेने में मदद मिलेगी। रिजर्व बैंक पहले ही रीपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती कर चुका है और उसने अपना रुख बदलकर ‘समायोजन’ वाला कर लिया है। परंतु उसे 2026 में सीपीआई मुद्रास्फीति के औसतन 4 फीसदी रहने की उम्मीद है। मुद्रास्फीति दर और कम होने पर भी दरों में कटौती की गुंजाइश पहले से कहीं अधिक होगी।
रिजर्व बैंक के कर्मचारियों के एक पुराने शोध में अनुमान लगाया गया था कि वास्तविक तटस्थ दर 1.4 से 1.9 फीसदी के बीच रहेगी। मौजूदा नीतिगत सहजता चक्र गहरा रह सकता है। बहरहाल, वृद्धि के रुझान से नीचे और मुद्रास्फीति के लक्ष्य से नीचे रहने पर वास्तविक दरें तटस्थ दर से नीचे रह सकती हैं। मौजूदा नीतिगत सहजता चक्र गहरा हो सकता है। वर्ष 2026 के अंत तक दरों में 100 आधार अंक की कटौती और हो सकती है।
कम मुद्रास्फीति के अन्य सकारात्मक प्रभाव
कम मुद्रास्फीति वृद्धि के लिए बेहतर है। इससे वास्तविक खर्च योग्य आय और खपत को बढ़ावा मिलता है। कच्चे माल की लागत में कमी से कंपनियों का मुनाफा मार्जिन बढ़ेगा और कम नीतिगत दरें ऋण की लागत कम करेंगी। इससे दरों के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों को मदद मिलेगी। इसी प्रकार किसानों जैसे खाद्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हितों का संतुलन भी नीति निर्माताओं के लिए जरूरी होगा।
कम मुद्रास्फीति के कारण वृहद आर्थिक स्थिरता को बल मिलेगा। मौद्रिक नीति द्वारा बोझ उठाने से सरकार के पास राजकोषीय मजबूती के लिए गुंजाइश होगी। कुल मिलाकर भारत की वृहद अर्थव्यवस्था की बुनियादी बातें मसलन कम मुद्रास्फीति, बेहतर सापेक्षिक वृद्धि, राजकोषीय मजबूती, चालू खाते के घाटे में कमी, मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार के कारण भी मौद्रिक सहजता की गुंजाइश तैयार होनी चाहिए।
वैश्विक झटकों को सहने की गुंजाइश
भारत कम मुद्रास्फीति के एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है जो स्थिरता के साथ समझौता किए बिना घरेलू वृदि्ध का समर्थन करने के लिए नीतिगत गतिशीलता की बहुत जरूरी गुंजाइश प्रदान करता है। बढ़ती अनिश्चितता और प्रतिकूल परिस्थितियों वाली मौजूदा दुनिया में कम मुद्रास्फीति भारत के लिए मददगार है।
(लेखिका नोमूरा में मुख्य अर्थशास्त्री हैं)