अब तक तो वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को ही शुक्रवार का नाम सुनकर पसीना आता था। अभी कुछ ही दिन पहले शेयर बाजार की उठा-पटक पर पत्रकारों की जिज्ञासा को शांत करते हुए उन्हें चैन की एक लंबी सांस लेकर कहा था कि ‘शुक्र है, आज शुक्रवार नहीं है।’
अब शायद उनके मंत्रालय ने संकेत समझ लिया है। आज कल तो वहां शुक्रवार को पिकनिक पर जाने की बात कही जा रही है। इसकी जड़ में है, उद्योग मंत्रालय की हर शुक्रवार को जारी होने वाली एक रिपोर्ट। जी हां, हम थोकमूल्य सूचकांक में आने वाले उतार-चढ़ावों की ही बात कर रहे हैं, जो हर शुक्रवार की दोपहर में जारी किए जाते हैं। भारत में महंगाई को मापने के लिए इसी सूचकांक का इस्तेमाल किया जाता है।
वैसे कई दूसरे सूचकांक भी हैं, जिनमें से कुछ में इस्तेमाल खुदरा मूल्य का भी इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह थोक मूल्य सूचकांक ही है, जिसके आंकड़ों पर आर्थिक विश्लेषक लंबी बहसें करते हैं। साथ ही, इसी के आंकड़ों का इस्तेमाल सरकार और रिजर्व बैंक महंगाई की दर को काबू में रखने के लिए रणनीति बनाने के वास्ते करते हैं। इससे भी ज्यादा दुख देने वाली बात यह है कि जब से इस सूचकांक पर आधारित महंगाई के आंकड़े ने पांच फीसदी के आंकड़े को पार किया है, हर शुक्रवार को शेयर बाजारों पर मंदड़ियों का ही बोलबाला रहा है।
सरकार बार-बार यह भरोसा दिला रही है कि महंगाई की दर जल्दी ही कम हो जाएगी। साथ ही, अर्थशास्त्री यह भविष्यवाणी करने में जुटे हुए हैं कि महंगाई की नाक में नकेल डालने के लिए कितनी जल्दी रिजर्व बैंक ब्याज दरों को बढा सकता है। इसीलिए हैरानी की बात नहीं है अगर उद्योग मंत्रालय के उन अधिकारियों पर अपने काम करने के तरीके को बदलने पर जोर दिया गया, जो हर शुक्रवार को थोक मूल्य सूचकांक को जारी करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इस बात के नतीजे के रूप में पहली बात जो सामने आई , वह यह है कि थोकमूल्य सूचकांक के आंकडे आधे-अधूरे होते हैं और उनसे महंगाई की सच्ची तस्वीर उभर कर नहीं आती है।
इस सूचकांक में बड़ी तादाद में ऐसी चीजें हैं, जिनकी कीमतों को हफ्तों से अपडेट नहीं किया। इस बात को भी अच्छी तरह से लोगों के बीच बताया गया। इसलिए हो सकता है कि अभी आपको महंगाई की दर काफी ऊंची लगे, लेकिन हकीकत में महंगाई की असल दर तो काफी ज्यादा है। यह आपको महीने-दो महीने के बाद दिख जाएगी। इन दिक्कतों को ठीक करने की कवायद चल रही है, लेकिन अब भी महंगाई की दर की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है।
अब तो हर हफ्ते थोक मूल्य सूचकांक के आंकड़े जारी करने पर भी सवालिया निशान लगाया जा रहा है। सरकार के अंदर और बाहर, दोनों जगहों पर अर्थशास्त्री महंगाई दर के बारे में हर हफ्ते जारी होने वाले इस आंकड़े को हर हफ्ते जारी करने की जरूरत पर हैरानी जता रहे हैं। सरकार को तो यहां तक सुझाव दिए जा रहे हैं कि दुनिया के और किसी मुल्क में हर हफ्ते महंगाई की दर जारी नहीं की जाती है। इसलिए हिंदुस्तान को भी दुनिया का इकलौता ऐसा मुल्क बने रहने की क्या जरूरत है, जो हम थोकमूल्य सूचकांक को हर हफ्ते जारी करते हैं?
हालांकि, यह बात भी सच है कि इस सोच ने तभी जोर पकड़ा, जब महंगाई के आंकड़े सरकारी हलकों को गर्माने लगे थे और यूपीए सरकार के मंत्रियों को पसीना आने लगा था। इससे लोगों का यह शक यकीन में बदल जाता है कि इसके पीछे कोई आर्थिक तर्क नहीं है बल्कि सरकार जी का जंजाल बने इस मुद्दे से जल्द से जल्द पीछा छुड़ाना चाहती है। अब तो कई हलकों से यह प्रस्ताव भी आ रहा है कि उद्योग मंत्रालय को अब इस सूचकांक के आंकड़ों को जारी करने के भार से मुक्त कर दिया जाए। इस सुझाव को देने वालों में कई बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों के नाम भी हैं।
आंकड़े इकट्ठा करने के मामले में सरकार की कुशलता पर जल्दी किसी को भरोसा नहीं होता है। इससे पहले भी तो सरकार आंकड़े जुटाने के काम को निजी क्षेत्र के हवाले करती रही है। मिसाल के तौर पर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़े को ही ले लीजिए। इस काम को कई प्राइवेट एजेंसियों के हवाले किया जा चुका है। तो फिर थोक मूल्य सूचकांक के लिए आंकड़े जुटाने के काम को रिजर्व बैंक या फिर उसके द्वारा नामित किसी एजेंसी के हवाले करने में भला क्या ऐतराज हो सकता है? रिजर्व बैंक को महंगाई से जुड़े आंकड़े जुटाने और उनके विश्लेषण का काम सौंप दीजिए। इससे उसे महंगाई पर काबू पाने के लिए नीतियां बनाने में काफी आसानी भी होगी।
इसमें कोई शक नहीं है कि केंद्र सरकार जल्द ही महंगाई दर के बारे में आंकड़े जुटाने के लिए एक नीति लेकर आने वाली है। अगर आंकड़े जुटाने और उसके विश्लेषण की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक के हवाले कर दी जाएगी तो इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं होगा। वह काफी अच्छे तरीके से काम करेगा। सटीक आंकड़ों से मुल्क को काफी फायदा होगा।
1998 तक देश के सारे टकसालों और नोट छापने वाले छापेखाने को चलाने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय पर थी। लेकिन 1999 में नोट छापने वाले चार में से दो प्रेस की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की एक कंपनी के हवाले कर दी गई। यह बात बिल्कुल सच है कि थोक मूल्य सूचकांक के लिए आंकड़े जुटाने का काम प्रेस चलाने से काफी अलग है। लेकिन जब रिजर्व बैंक दो प्रिंटिंग प्रेस को इतनी सफलता के साथ चला सकती है, तो वह महंगाई के आंकड़ों को अच्छी तरह से क्यों नहीं जुटा सकता?