जून 2025 में भारत की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति सालाना आधार पर घटकर 2.1 फीसदी हो गई, जो मई में 2.82 फीसदी थी। अप्रैल-जून तिमाही के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति, औसतन 2.7 फीसदी रही जो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 2.9 फीसदी के अनुमान से कम है। यह गिरावट, मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) को निकट अवधि में कुछ राहत दे सकती है जो काफी हद तक खाद्य कीमतों में गिरावट के कारण हुई है। हालांकि, भविष्य के नजरिये से देखें तो ब्याज दरों पर अधिक सतर्क दृष्टिकोण अपनाना उचित है।
हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 में सीपीआई मुद्रास्फीति औसतन 3 फीसदी रहेगी, जो वित्त वर्ष 2025 में दर्ज 4.6 फीसदी से काफी कम है। खाद्य कीमतों के मोर्चे पर कोई बड़ी चुनौती न मिलने पर, निकट अवधि में मुद्रास्फीति कम रहने की उम्मीद है और यह जुलाई-सितंबर की अवधि में लगभग 2.5 फीसदी और अक्टूबर-दिसंबर की अवधि में 2.6 फीसदी तक हो सकती है जो आरबीआई के क्रमशः 3.4 फीसदी और 3.9 फीसदी के पूर्वानुमान से काफी कम है।
हालांकि वित्त वर्ष 2026 की अंतिम तिमाही में मुद्रास्फीति के आरबीआई के 4.4 फीसदी के अनुमान के साथ मेल खाने की संभावना है लेकिन पहली तीन तिमाहियों में इसके कम रहने से पूरे वर्ष का औसत 3 फीसदी हो सकता है जो आरबीआई के मौजूदा पूर्वानुमान 3.7 फीसदी से 70 आधार अंक कम है।
यह अनुकूल चरण शायद लंबे समय तक नहीं चलेगा। इस साल सीपीआई मुद्रास्फीति में तेज गिरावट, अगले वित्त वर्ष के लिए एक प्रतिकूल आधार तैयार करेगी। हमारे अनुमान बताते हैं कि अप्रैल-जून 2026 में मुद्रास्फीति बढ़कर 5 फीसदी हो जाएगी, जिसके बाद अगली दो तिमाहियों में यह कम होकर क्रमशः 4.7 फीसदी और 4.4 फीसदी तक हो जाएगी। नतीजतन, वित्त वर्ष 2027 में सीपीआई मुद्रास्फीति, औसतन 4.5 फीसदी रहने की उम्मीद है जो वित्त वर्ष 2026 के संभावित औसत 3 फीसदी से काफी ज्यादा होगी।
ऐतिहासिक रुझान भी इस नजरिये का समर्थन करते हैं। नवंबर 2018 से जनवरी 2019 तक, सीपीआई मुद्रास्फीति औसतन केवल 2.1 फीसदी थी। एक साल बाद, आधार प्रभाव और बढ़ती खाद्य कीमतों के कारण यह 7.5 फीसदी से अधिक हो गई। इसी तरह, जून 2017 में सीपीआई मुद्रास्फीति 1.5 फीसदी के निचले स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन 2018 के मध्य तक इसमें उछाल आई और यह लगभग 5 फीसदी हो गई। ये पिछले प्रकरण दिखाते हैं कि असाधारण रूप से कम आंकड़ों वाली अवधि के बाद मुद्रास्फीति कितनी तेजी से बढ़ सकती है, खासतौर पर जब इसमें खाद्य कीमतें शामिल हों। भारत में खाद्य कीमतों की अस्थिरता को देखते हुए मौजूदा अवस्फीति तेजी से पलट सकती है, जिससे 2026 के मध्य तक मुद्रास्फीति, आरबीआई के लक्षित दायरे के ऊपरी स्तर की ओर बढ़ सकती है।
इस पृष्ठभूमि में दूरदर्शिता बरतने वाली एमपीसी को संयम बरतना होगा। अगर वित्त वर्ष 2027 की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति 5 फीसदी तक बढ़ जाती है और वित्त वर्ष 2027 में औसतन 4.5 फीसदी रहती है तब वास्तविक ब्याज दर कम होकर 50-100 आधार अंक हो जाएगी जो फिलहाल लगभग 300 आधार अंक है अगर रीपो दर 5.50 फीसदी पर अपरिवर्तित रहती है। यदि रीपो दर में और कटौती करके 5 फीसदी कर दिया जाता है तब वास्तविक दर और घट कर शून्य तक हो जाएगी, जो मध्यम अवधि की व्यापक आर्थिक स्थिरता के लिए आदर्श स्थिति नहीं हो सकती है।
एमपीसी के जून 2025 के निर्णय में रीपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती की गई जो उम्मीद से कहीं ज्यादा थी और इससे बाजारों को हैरानी हुई। बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिए एक साक्षात्कार में आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने संकेत दिया कि अगर महंगाई अनुमान से कम रहती है, तो इससे ‘नीतिगत गुंजाइश का दायरा खुलता है।’ उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ‘तटस्थ’ रुख अपनाने का मतलब नीतिगत चक्र में तत्काल उलटफेर नहीं है। उनकी यह टिप्पणी संकेत देती है कि एमपीसी इस साल 25 आधार अंकों की कटौती करने में दिलचस्पी ले सकती है और हमारा मानना है कि सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
अब किसी भी नरमी को अक्टूबर तक टाला जा सकता है और इसका फैसला कई अहम कारकों पर निर्भर करेगा। इनमें खाद्य कीमतों का रुख, 29 अगस्त को जारी होने वाले अप्रैल-जून के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े, पिछली ब्याज दरों में की गई कटौतियों का असर और साथ ही वैश्विक आर्थिक परिदृश्य शामिल हैं। विशेष रूप से अमेरिका की मौद्रिक नीति और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक तनाव भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ये सभी यह तय करने में निर्णायक होंगे कि आगे और कितना ढील देना न्यायसंगत होगा।
इसके अलावा, भारत के मौजूदा वृद्धि के अनुमान को देखते हुए अतिरिक्त प्रोत्साहन की जरूरत नहीं है। 2019 में, जब आरबीआई ने रीपो दरों को 6.5 फीसदी से घटाकर 5.15 फीसदी कर दिया था, तब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 5 फीसदी से नीचे चली गई थी, जिसका एक कारण आईएलऐंडएफएस संकट भी था। इसके विपरीत वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद, हमें उम्मीद है कि 2025 में भारत की जीडीपी वृद्धि लगभग 6.5 फीसदी पर मजबूत बनी रहेगी। यह रीपो दर को 5.5 फीसदी पर बनाए रखने के पक्ष में तर्क को और मजबूत करता है।
निष्कर्ष के तौर पर कहें तो, मुद्रास्फीति में मौजूदा कमी से अल्पकालिक राहत मिल रही है, ऐसे में मौद्रिक नीति समिति को थोड़ा मध्यम अवधि का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। वित्त वर्ष 2027 में मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है और अभी आक्रामक तरीके से की गई दर कटौतियां, अर्थव्यवस्था को बाद में मुद्रास्फीति की अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बना सकती हैं। ऐसे में सही तरीका यह होगा कि दरों को स्थिर रखा जाए, घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखी जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि वास्तविक ब्याज दरें उस दायरे में बनी रहें जो वृद्धि और मूल्य स्थिरता दोनों को सहारा दे सकें।
(लेखक डॉयचे बैंक एजी (भारत, मलेशिया और दक्षिण एशिया) के मुख्य अर्थशास्त्री है)