Smart Beta Funds: पिछले एक साल में कई स्मार्ट-बीटा फंड्स ने निफ्टी 50 जैसे बड़े इंडेक्स से कम रिटर्न दिया है। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि निवेशकों को इस तरह की शॉर्ट टर्म की गिरावट से डरने की जरूरत नहीं है। ऐसी गिरावट बाजार में अक्सर होती रहती है। कुछ समय बाद हालात फिर बेहतर हो जाते हैं और फंड्स में सुधार भी देखने को मिलता है।
पिछले एक साल में मोमेंटम फंड्स में ज्यादा गिरावट आई है। ICICI प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के चितन हरिया कहते हैं कि इन फंड्स में साइक्लिकल और मिड-कैप शेयर ज्यादा होते हैं, इसलिए जब बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ता है तो इन फंड्स को ज्यादा नुकसान होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जब बाजार लंबे समय तक तेजी में रहता है, तो उसके बाद मोमेंटम फंड्स कमजोर पड़ जाते हैं। Axis AMC के विकाश वाडेकर कहते हैं कि हर साल एक ही तरह का फैक्टर अच्छा नहीं चलता। बाजार चढ़ता है तो मोमेंटम अच्छा करता है, लेकिन जब बाजार गिरता है तो क्वालिटी और लो-वोलैटिलिटी जैसे फंड्स बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इसी वजह से स्मार्ट-बीटा फंड्स में बाजार के साथ-साथ फैक्टर से जुड़े जोखिम भी होते हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि निवेशकों को थोड़े समय के रिटर्न देखकर फैसले नहीं लेने चाहिए। विकाश वाडेकर का कहना है कि तीन से पांच साल की लंबी अवधि में ज्यादातर फैक्टर अच्छे रिटर्न देते हैं। हर साल अलग-अलग फैक्टर अच्छा चलता है। जैसे 2022 में मोमेंटम कमजोर था, लेकिन 2023 और 2024 में यह फिर मजबूत हुआ। स्मार्ट-बीटा फंड्स का असली फायदा लंबे समय में मिलता है। चितन हरिया सलाह देते हैं कि अगर आपका चुना हुआ फैक्टर आपकी जोखिम लेने की क्षमता से मेल खाता है, तो निवेश बनाए रखना ज्यादा सही होता है। गिरावट के समय निवेश निकालने से नुकसान बढ़ सकता है और बाद में आने वाली रिकवरी का फायदा भी नहीं मिल पाता।
निवेशकों को सिर्फ एक ही फैक्टर पर भरोसा नहीं करना चाहिए। विकाश वाडेकर कहते हैं कि अलग-अलग फैक्टरों का मिलाकर निवेश करना या मल्टी-फैक्टर तरीका अपनाना समय के साथ रिटर्न को स्थिर रखता है और जोखिम भी कम करता है। चितन हरिया के अनुसार, साल में एक-दो बार थोड़ा बहुत बदलाव (रिबैलेंसिंग) करना भी फायदेमंद रहता है। इसमें ज्यादा उतार–चढ़ाव वाले फैक्टरों की हिस्सेदारी कम करके, और क्वालिटी तथा लो-वोलैटिलिटी जैसे सुरक्षित फैक्टरों की हिस्सेदारी बढ़ाई जाती है।
स्मार्ट-बीटा फंड्स से बाहर निकलने की सलाह आमतौर पर नहीं दी जाती। मोतिलाल ओसवाल AMC के प्रतीक ओसवाल कहते हैं कि केवल तभी बाहर निकलें जब आपकी जोखिम क्षमता बदल जाए या आपकी निवेश योजना में बदलाव आए। वैलट्रस्ट के संस्थापक और CIO अरिहंत बारडिया का कहना है कि अगर फंड का ट्रैकिंग एरर बार-बार बढ़ रहा हो या इंडेक्स बनाने की प्रक्रिया में गड़बड़ी दिखे तो बाहर निकलना ठीक है।
नए निवेशकों के लिए सबसे अच्छा है कि वे शुरुआत साधारण इंडेक्स फंड्स या पुराने, भरोसेमंद एक्टिव फंड्स से करें। अरिहंत बारडिया कहते हैं कि स्मार्ट-बीटा फंड्स में अक्सर ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए ये नए निवेशकों या कम जोखिम लेने वालों के लिए सही नहीं होते। नए निवेशकों को किसी भी इंडेक्स का पुराना रिकॉर्ड जरूर देखना चाहिए, खासकर यह कि पिछली गिरावटों में उसने कैसा प्रदर्शन किया था। अगर ETF के जरिए निवेश कर रहे हैं, तो उसके आकार और लिक्विडिटी पर ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि बहुत कम ट्रेड होने वाले ETF से जोखिम बढ़ जाता है।
प्रूडेंट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के CEO प्रशस्त सेठ कहते हैं कि शुरुआत में निवेशक अपने कुल निवेश का करीब 5–10% हिस्सा स्मार्ट-बीटा फंड्स में लगा सकते हैं। जिन लोगों की जोखिम लेने की क्षमता ज्यादा है, वे इसे 10–15% तक बढ़ा सकते हैं। ऐसे फंड्स में निवेश कम से कम तीन से पांच साल के लिए करना चाहिए, तभी सही फायदा मिलता है। मल्टी-फैक्टर रणनीतियों में थोड़ा ज्यादा निवेश भी किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए भी कम से कम तीन साल की लंबी सोच जरूरी है।