कैबिनेट कमिटी ऑन प्राइसेज (सीसीपी) की 3 घंटे तक चली बैठक के बाद महंगाई को रोकने के लिए जारी पैकज से कुछ साफ संकेत नजर आते हैं।
इस पैकेज के ऐलान से स्पष्ट है कि सरकार के पास आइडिया का घोर अभाव है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि महंगाई रोकने के उपाय पहले से मौजूद हैं और इन्हें बस अमल में लाने की जरूरत है। हकीकत यह है कि महंगाई की वर्तमान हालत के मद्देनजर इसका हल निकालना टेढ़ी खीर है। महंगाई दर की उछाल की प्रमुख वजह अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हुई बढ़ोतरी है, जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।
खाद्य पदार्थों की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 62 फीसदी (डॉलर के लिहाज से) का इजाफा हो चुका है। गैर-खाद्य कृषि उत्पादों की कीमतों में 24.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। धातुओं की कीमतें 4 फीसदी चढ़ी हैं, जबकि तेल की कीमतों में रेकॉर्ड 85 फीसदी का उछाल देखने को मिला है। सोने की कीमत में 53 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है।
चूंकि ज्यादातर उत्पादों के व्यापार पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय कीमतों का घरेलू बाजार पर प्रभाव पड़ना लाजमी है। दरअसल, ये ट्रेंड वैश्विक मांग और पूर्ति के संतुलन में गड़बड़ी को प्रतिबिंबित करते हैं और इस कड़वी सचाई को बदलने के लिए सरकार के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं है। इसमें सरकार सिर्फ निर्यात को एक हद तक रोककर आयात को बढ़ावा दे सकती है।
विडंबना यह है कि विदेशों में ज्यादातर खाद्य पदार्थों (गेहूं व चावल समेत) की कीमतें भारत से ज्यादा हैं। ऐसी परिस्थिति में सरकार दो काम कर सकती है। इसके तहत सरकारी खजाने से सब्सिडी ( जैसा पेट्रोलियम पदार्थों के मामले में किया गया) का प्रावधान किया जा सकता है। इसके अलावा जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत सब्सिडी पर खाद्य पदार्थ मुहैया कराया जा सकता है।
गौरतलब है कि सरकार कुछ हद तक यह काम कर भी रही है, लेकिन इस सिस्टम की सीमाओं की वजह से इसके अपेक्षित नतीजे नहीं सामने आए हैं।लेकिन ये उपाय सिर्फ समस्या को कुछ देर तक काबू में रखने में सक्षम होंगे और वैश्विक परिस्थितयों को देखते हुए पूर्ण समाधान नहीं दे पाएंगे। लिहाजा सरकार पर इस समस्या से निपटने के लिए कुछ और करने का दबाव है।
हाल में घोषित पैकेज महज कुछ प्रमुख खाद्य पदार्थों पर केंद्रित है। इनमें वैसे उत्पादों को शामिल नहीं किया गया है, जिन्होंने कीमतों में आग लगाने में ज्यादा अहम भूमिका निभाई है। हालांकि इस मामले में भी सरकार मजबूर है। महंगाई के वर्तमान संकट के मद्देनजर खाद्य पदार्थों के मामले में यथासंभव आत्मनिर्भरता को बढ़ाने की जरूरत है।
हालांकि खाद्य तेलों के लिए हम 45 फीसदी तक आयात पर निर्भर हैं। बहरहाल हमारे पास बफर स्टॉक के रूप में 2 करोड़ 20 लाख टन चावल मौजूद है। बफर स्टॉक में 1 करोड़ 22 लाख टन चावल रहने से भी काम चल सकता है। बाकी स्टॉक को सरकार बाजार में उतारकर कीमतें कम करने में भूमिका अदा कर सकती है।