facebookmetapixel
बिटकॉइन ने बनाया नया रिकॉर्ड: कीमत ₹1.11 करोड़ पार, निवेशकों में जोश!शेयर बाजार में इस हफ्ते कैसा रहेगा हाल? TCS रिजल्ट और ग्लोबल फैक्टर्स पर रहेंगी नजरेंUpcoming IPO: टाटा कैपिटल, एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स अगले हफ्ते 27,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के आईपीओ लाएंगे15 नवंबर से बदलेंगे टोल टैक्स के नियम, बिना FASTag देना होगा ज्यादा पैसाAadhaar Update: UIDAI का बड़ा फैसला! बच्चों के आधार अपडेट पर अब कोई फीस नहींMCap: टॉप 7 कंपनियों का मार्केट वैल्यू बढ़ा ₹74 हजार करोड़, HDFC बैंक ने मारी छलांगFPI Data: सितंबर में FPIs ने निकाले ₹23,885 करोड़, शेयर बाजार से 3 महीने में भारी निकासीFD Schemes: अक्टूबर 2025 में कौन से बैंक दे रहे हैं सबसे ज्यादा रिटर्न FD? पूरी लिस्ट देखेंभारतीय IPO बाजार रिकॉर्ड महीने की ओर, अक्टूबर में $5 बिलियन से अधिक के सौदे की उम्मीदट्रंप की अपील के बाद भी नहीं थमा गाजा पर इसराइल का हमला, दर्जनों की मौत

टैरिफ के झटके से कैसे उबरे भारत

इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए शुल्कों के चक्रीय और रणनीतिक दोनों असर समझने होंगे। बता रही हैं

Last Updated- April 28, 2025 | 10:15 PM IST
US Tariffs on India

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने नए पूर्वानुमान में साफ कहा है कि वैश्विक वृद्धि में गिरावट आ सकती है। शुल्कों के कारण अमेरिका में अपस्फीति की स्थिति बन सकती है और बाकी दुनिया को मांग में कमी का झटका लग सकता है। भारत के लिए इसका क्या मतलब है और हमें इसके लिए तैयार कैसे होना चाहिए? इसका जवाब जानने के लिए देखना होगा कि इसका चक्रीय प्रभाव क्या होगा और रणनीतिक असर क्या होगा।

चक्रीय असर भांपें तो वृद्धि के लिए यह अभी तो नकारात्मक ही है। अमेरिका को भारत से सीधे होने वाला निर्यात और अन्य देशों के निर्यात में भारतीय मूल्यवर्द्धन को मिलाएं तो यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 2 फीसदी बैठता है। क्षेत्रवार शुल्क और जवाबी शुल्क से वृद्धि पर 0.2 से 0.3 फीसदी का सीधा असर होगा। अलग-अलग निर्यात उत्पादों पर अलग-अलग असर होगा, जो इस बात पर निर्भर करेगा कि कीमत कितनी कम की जा सकती है और कैसे विकल्प उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए रत्न-आभूषण निर्यात पर जोखिम है क्योंकि ये जरूरी उत्पाद नहीं हैं। लेकिन वाहनों पर लगने वाले शुल्क का बोझ निर्यातक, अमेरिकी कंपनियां और उपभोक्ता मिलकर उठा सकते हैं।

कुछ असर परोक्ष भी होंगे। अनिश्चितता और कमजोर वैश्विक मांग से निजी निवेश अटकेगा। गैर जरूरी खर्च घटने से सूचना प्रौद्योगिकी सेवा निर्यात पर भी असर होगा। घटते आत्मविश्वास, वित्तीय तंगी और रोजगार तथा आय में सुस्त वृद्धि का असर भी मांग पर पड़ेगा।
कुछ सकारात्मक बातें भी हैं। निकट भविष्य में इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में कारोबार आएगा। जिंस के भाव घटने से कच्चे माल की लागत कम होगी और कारोबारी शर्तें बेहतर होंगी। सामान्य से बेहतर मॉनसून और कम महंगाई ग्रामीण खपत के लिए अच्छी रहेगी। लेकिन सभी बातों पर विचार करें तो नकारात्मक पहलू ही हावी हैं। हालांकि सभी को 2025-26 में जीडीपी 6.2 से 6.5 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है मगर हमारे हिसाब से यह बहुत आशावादी अनुमान है और वृद्धि दर 5.8 फीसदी ही रहेगी।

महंगाई चिंता का विषय नहीं है। सब्जियों की कीमतें मौसम के हिसाब से घटती-बढ़ती रहती हैं मगर खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट सभी के दाम घटने के कारण है। बेहतर कृषि उत्पादन और सामान्य से बेहतर मॉनसून की संभावनाएं सकारात्मक हैं। कच्चा तेल सस्ता होने से ढुलाई का खर्च कम होगा, जिसका असर भी खाद्य कीमतों पर होगा।

चीन में जरूरत से ज्यादा उत्पादन क्षमता, क्षमता से कम उत्पादन, सस्ता कच्चा माल और वेतन में कम बढ़ोतरी से लगता है कि मुख्य मुद्रास्फीति काबू में रहेगी। हमें उम्मीद है कि समग्र मुद्रास्फीति अगली तीन तिमाहियों में 4 फीसदी से कम रहेगी और इस वित्त वर्ष में औसतन 4 फीसदी रह सकती है।

वृहद तस्वीर अर्थव्यवस्था को सहारा देने के उपायों की जरूरत बताती है। क्षमता से कम उत्पादन, कम मुद्रास्फीति और ऊंची वास्तविक दरों के कारण मौद्रिक नीति ही सबसे पहले हमारी हिफाजत करेगी। बाहरी क्षेत्र पर नजर रखनी चाहिए मगर यह हमारे लिए बाधा शायद ही बनेगा। निर्यात में कमजोरी और विदेश से धन प्रेषण में कमी की भरपाई सस्ते कच्चे तेल के कारण आयात पर कम खर्च से हो सकती है। विदेश से पूंजी की आवक कम-ज्यादा हो सकती है मगर अमेरिकी डॉलर खुद कमजोर हो रहा है क्योंकि इसकी कीमत जरूरत से ज्यादा है और अमेरिका का रुतबा भी घट रहा है।

ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक के पास फेडरल रिजर्व से अलग कदम उठाने का मौका है। हमारा अनुमान है कि देश की नॉमिनल तटस्थ दर करीब 5.5 फीसदी रहेगी। किंतु क्षमता से कम उत्पादन और मुद्रास्फीति का लक्ष्य देखते हुए नीतिगत दरों में बदलाव किया जा सकता है। अभी 100 आधार अंक तक और कटौती की गुंजाइश है, जिसके बाद रीपो दर 5 फीसदी रह सकती है।

अन्य तरीके भी इस्तेमाल किए जाने चाहिए। खुले बाजार में परिचालन, विदेशी मुद्रा की अदलाबदली तथा रीपो का इस्तेमाल करने पर नकदी का अधिशेष लगातार बना रहेगा, जिससे ब्याज दरें तेजी से घटेंगी। अर्थव्यस्था को संभालने के लिए नरमी दिखाई गई तो बैंक लक्षित क्षेत्रों को अधिक कर्ज दे सकते हैं। पूंजी लगातार आए तो उसका इस्तेमाल बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार के लिए किया जाए।

मौद्रिक नीति में गुंजाइश है मगर राजकोष में नहीं। निर्यातकों को लक्षित समर्थन कुछ समय के लिए बढ़ाया जा सकता है। पिछले वित्त वर्ष में चुनावों के कारण पूंजीगत व्यय अटका था मगर चालू वित्त वर्ष में शुरू से ही सरकारी व्यय को प्राथमिकता दी जाए। रिजर्व बैंक के लाभांश और ईंधन पर उत्पाद शुल्क बढ़ने से खजाने को कुछ सहारा मिल सकता है मगर नॉमिनल जीडीपी वृद्धि घट सकती है और प्रत्यक्ष कर संग्रह तथा विनिवेश सुस्त रह सकता है। अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन अंतिम उपाय हो।

चक्रीय प्राथमिकताओं से परे रणनीतिक मुद्दों पर भी विचार करना होगा। ऊंचा शुल्क बता रहा है कि अमेरिका अब चीन से दूरी बनाएगा। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट विभिन्न देशों से गठजोड़ करके चीन को अलग-थलग करने की योजना भी बना रहे हैं। मगर भारत को अपनी योजना बनानी होगी।

अमेरिका हमारा रणनीतिक साझेदार है और अभी हमारा प्राथमिकता द्विपक्षीय व्यापार समझौता है। वार्ता जल्दी शुरू कर भारत दूसरे देशों से आगे निकल गया है। हम औद्योगिक वस्तुओं के लिए दोनों ओर शून्य शुल्क पर बात कर सकता है, अधिक अमेरिकी उत्पाद खरीद सकता है और शुल्क के अलावा बाधाएं कम करने पर भी कम कर सकता है. मगर कृषि में सोच-समझकर खोलना ही ठीक होगा।
अमेरिका के साथ जल्दी समझौते से दो फायदे होंगे। इससे हमारे ऊपर जवाबी शुल्क कम हो सकता है और दूसरे देशों के मुकाबले हम फायदे में रह सकते हैं। भारत को आपूर्ति श्रृंखला में नए बदलाव से भी लाभ हो सकता है।

हमारी नजर में भारत निम्न से मध्यम स्तर के तकनीकी निर्माण में जगह बना सकता है। स्मार्ट फोन में मिली कामयाबी कंप्यूटर, खिलौनों, टेक्सटाइल और फुटवियर में क्यों नहीं दोहराई जा सकती। भारत अपने देसी बाजार से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी आकर्षित कर सकता है।
भारत को भी चीन जैसी रणनीति की आवश्यकता है। चीन निर्यात और देसी खपत में इस्तेमाल होने वाले मध्यवर्ती सामान के आयात का अहम स्रोत है। इनमें फार्मा, सोलर और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्र शामिल हैं। चीन पर अमेरिकी शुल्क बढ़ने से इन उत्पादों के भारत में पाटने का खतरा भी बढ़ेगा। इसके लिए निगरानी और कड़ा प्रवर्तन चाहिए।

कुल मिलाकर ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में लगे शुल्क झटके ने वृहद तस्वीर बदल दी है। निकट भविष्य में वृद्धि को बड़ा झटका लग सकता है,जिस कारण अर्थव्यवस्था को संभालने के उपाय करने होंगे। मध्यम अवधि में व्यापार का अधिक विभाजन संभव है किंतु भारत अब भी वैश्विक विनिर्माण में बड़ी हिस्सेदारी पा सकता है। बहुत कुछ दांव पर लगा है मगर सही चाल चली तो मध्यम अवधि में भारत की वृद्धि पींगें बढ़ा सकती है।

(लेखिका नोमूरा में मुख्य अर्थशास्त्री हैं)

First Published - April 28, 2025 | 10:13 PM IST

संबंधित पोस्ट