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IBC का कैसा रहा अब तक का प्रदर्शन

IBC Performance : ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (IBC) वि​भिन्न पैमानों पर सफल प्रतीत होती है। इसका आकलन कर बता रहे हैं एम एस साहू

Last Updated- January 19, 2024 | 9:20 PM IST
A performance appraisal of IBC

ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी), 2016 के प्रदर्शन का आकलन कई लोगों के लिए खाली समय का मनोरंजन रहा है। कुछ लोगों ने तो इसके लिए डोसा (डिसीजन ओरिएंटेड सिस्टमैटिक एनालिसिस यानी निर्णयोन्मुखीय व्यवस्थित विश्लेषण) का रुख भी अपनाया। यह रुख पहले ही वांछित आकलन निष्कर्ष निर्धारित कर लेता है और उसके बाद एक तरीका निकाला जाता है जिससे पहले से तय निष्कर्ष निकाला जाए।

उदाहरण के लिए वे पहले ही एक खराब और नकारात्मक परिणाम सोच लेते हैं। वे रिकवरी को प्रदर्शन मानक बनाते हैं, एक नमूना तय करते हैं, रिकवरी को कम करके आंकते हैं, दावों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करते हैं, कम रिकवरी अनुपात निकालते हैं और इन सबके परिणामस्वरूप कहते हैं कि आईबीसी का प्रदर्शन कमजोर है।

बहरहाल यह ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि आईबीसी का लक्ष्य रिकवरी नहीं है। उसके विधान में इस शब्द का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है। इतना ही नहीं कानून उन कोशिशों को दंडित करती है जिनमें आईबीसी का इस्तेमाल रिकवरी के लिए किया जाता है।

ऐसा आकलन करने वालों के लिए रिकवरी में निस्तारण के बाद इक्विटी धारिता से होने वाली प्राप्तियों, अवॉयडेंस लेनदेन की वापसी (आईबीसी के तहत अवॉयसडेंस लेनदेन एक शक्तिशाली उपाय है जिसके माध्यम से संदिग्ध लेनदेन में कर्जदार की गंवाई संपत्ति को वापस पाने का प्रयास किया जाता है) और गारंटरों के ऋण शोधन समाधान की अनदेखी कर दी जाती है। इसके अलावा दावों में बट्‌टे खाते में डाला गया फंसा कर्ज तथा ऐसे कर्ज पर दंडात्मक ब्याज लगाया गया।

इसके परिणामस्वरूप दावों के विरुद्ध 32 फीसदी की विसंगतिपूर्ण रिकवरी दर हासिल हुई। यह विश्व बैंक के आईबीसी से 72 फीसदी रिकवरी के अनुमान से मेल नहीं खाता। इस गलत अनुमान के साथ भी जो आईबीसी को एक रिकवरी कानून मानता है, रिकवरी दर देश में किसी भी अन्य रिकवरी कानून से बेहतर है।

यह समझ में आता है कि लेनदारों की वसूली को उनके दावों के बजाय जमीन पर मौजूद मूर्त संपत्तियों से जोड़ा जाए क्योंकि बाजार कंपनी की संपत्तियों के लिए एक मूल्य प्रदान करता है। आईबीसी प्रक्रिया से कंपनियों के मूल्य में उल्लेखनीय 169 फीसदी प्राप्ति हो रही है। कोई विकल्प अधिक से अधिक 100 फीसदी प्राप्ति कर सकता है। इसमें भी लागत कम करनी होगी। 69 फीसदी की अतिरिक्त प्राप्ति, आईबीसी की ओर से लेनदारों को बोनस है और इस दौरान बचाव योग्य कंपनियों को बचाया जाता है।

आईबीसी जितनी कंपनियों को बचाती नहीं उससे अधिक कंपनियों का परिसमापन करती है। कुछ आकलनकर्ता आईबीसी के प्रदर्शन की नकारात्मक तस्वीर पेश करने के लिए परिसमापन की संख्या का उपयोग करते हैं। इसमें आईबीसी के बुनियादी पहलू की अनदेखी कर दी जाती है। यह दो तरह के निस्तारण की पेशकश करता है- निस्तारण योजना और परिसमापन जहां बाजार को चयन की स्वतंत्रता होती है।

गौर कीजिए कि किस प्रकार की कंपनियों का परिसमापन किया जा रहा है। इस प्रक्रिया से निपटायी जाने वाली तीन चौथाई कंपनियां या तो बंद पड़ी हैं या उनकी हालत खस्ता है। आईबीसी प्रक्रिया में शामिल होते समय औसतन इन कंपनियों का परिसंपत्ति मूल्य दावे के पांच फीसदी के बराबर होता है। ऐसी कंपनियों के लिए परिसमापन ही निपटान का अधिक उचित मार्ग हो सकता है। इसके बावजूद आईबीसी के जरिये परिसमापन की प्रक्रिया उन्नत न्यायालयों से भिन्न नहीं है।

आईबीसी के आकलन की विधि उसके लक्ष्यों के साथ सुसंगत होनी चाहिए जो है दबाव को हल करना। आकलन का प्राथमिक मानक होना चाहिए कि निस्तारण के तरीके से इतर क्या आईबीसी तनाव को हल कर पा रही है। इस अहम मानक पर भी उत्तर स्पष्ट ‘हां’ है। आईबीसी प्रक्रिया में शामिल होने वाली 7,000 तनावग्रस्त कंपनियों में से 5,000 सफलतापूर्वक निपट गईं जबकि शेष 2,000 विभिन्न चरणों से गुजर रही हैं।

द्वितीयक मानक ही ऐसे निस्तारण की दक्षता और प्रभाव हैं। आईबीसी में दो दक्षता मानकों की परिकल्पना की गई है। पहला यह कि निस्तारण समयबद्ध होना चाहिए और दूसरा यह कि संकटग्रस्त परिसंपत्ति का अधिकतम मूल्य हासिल हो सके। इन मानकों का प्रदर्शन भी बहुत उत्साहित करने वाला नहीं है। अप्रैल-सितंबर 2023 तिमाही के दौरान 127 निस्तारण प्रक्रियाओं का निपटान हुआ जिन्हें पूरा होने मे औसतन 867 दिनों का समय लगा जबकि यह 180 दिनों में पूरा हो जाना चाहिए।

इसी प्रकार निस्तारण प्रक्रियाओं से कंपनियों के उचित मूल्य का केवल 86 फीसदी हासिल हो पा रहा है। इससे संकेत मिलता है कि वांछित अधिकतम मूल्य हासिल करने में दिक्कत हो रही है। दक्षता का एक मानक निस्तारण की गुणवत्ता भी है। भारतीय प्रबंध संस्थान (अहमदाबाद) का अध्ययन इसे अच्छा मानता है। निस्तारण के बाद कंपनियों की हालत में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है: उनके टर्नओवर में 76 फीसदी का इजाफा हुआ, मुनाफे का अनुपात भी मानकों के अनुरूप हुआ और बाजार पूंजीकरण तीन गुना हो गया।

आईबीसी का लक्ष्य व्यापक अर्थव्यवस्था की सेवा करने का है। इसे 2016 में दोहरी बैलेंस शीट के संकट की प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया। कंपनियों और बैंक दोनों की बैलेंस शीट दबाव में थी और आधी कंपनियां एक से कम के ब्याज कवरेज अनुपात की बात कह रही थीं जबकि बैंकों का फंसा कर्ज 9 फीसदी से अधिक था।

आईबीसी के सुचारु काम शुरू करने के पहले तक इनमें गिरावट आती रही। जल्दी ही दोहरी बैलेंस शीट के संकट बीते कल की बात हो गई क्योंकि आईबीसी की प्रक्रिया के जरिये कई शक्तिशाली कंपनियों का मालिकाना बदला। दोहरी बैलेंस शीट जैसे मामले तृतीयक पैमाने बना सकते हैं।

सितंबर 2018 में 14.8 फीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद फंसा हुआ कर्ज सितंबर 2023 में घटकर 3.2 फीसदी रह गया। 2022-23 में बैंकों का सकल मुनाफा 2.63 लाख करोड़ रुपये रहा जबकि 2017-18 में उन्हें 32,438 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। कंपनियों का प्रदर्शन सुधरने से बैलेंस शीट मजबूत हुई और ब्याज कवरेज अनुपात 3.5 से अधिक हो गया। कॉर्पोरेट संचालन में भी सुधार हुआ। ऋण शोधन निस्तारण मानकों के संदर्भ में भारत की वैश्विक रैंकिंग आईबीसी के क्रियान्वयन के पहले तीन सालों में 136वें से सुधरकर 52वीं हो गई।

क्या दोहरी बैलेंस शीट की दिक्कत दोबारा सामने आ सकती है? कंपनी को गंवा देने की आशंका कर्जदारों को सक्रियता से कदम उठाने के लिए प्रेरित करती है और वे आईबीसी की प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहते हैं। करीब 9.33 लाख करोड़ रुपये मूल्य वाली 26,518 कंपनियों ने ऐसा किया जिससे लगता है कि आईबीसी का सबसे बेहतरीन इस्तेमाल इसका इस्तेमाल न करना है।

ऐसे में आईबीसी प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक पैमानों पर सफल प्रतीत होती है। समयबद्ध निस्तारण और परिसंपत्ति का अधिकतम मूल्य हासिल करने के दक्षता के द्वितीयक पैमाने पर उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन मानकों पर सुधार के लिए सरकार, निर्णय प्राधिकार, लेनदारों और देनदारों तथा पेशेवरों समेत सभी अंशधारकों को अपनी-अपनी तय भूमिका निभानी होगी। महत्त्वपूर्ण बात है कि इसके लिए किसी विधायी सुधार की जरूरत नहीं है।

(लेखक भारतीय ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड के पूर्व चेयरपर्सन हैं)

First Published - January 19, 2024 | 9:20 PM IST

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