दवाओं के बारे में सीमित जानकारी रखने वाले गैर-चिकित्सीय समुदाय के लोगों को कोविड-19 महामारी से बचाव के बारे में जानकारी पर आधारित सलाह दिए जाने की जरूरत है। हमें यह तो मालूम है कि हमेशा मास्क पहनना है, शारीरिक दूरी का पालन करना है और थोड़े-थोड़े समय पर अपने हाथों को धोते रहना है। इससे इतर जो भी सलाह एवं जानकारियां मीडिया एवं प्रेस में संचारित हो रही हैं, उनके बारे में असल स्थिति क्या है? टीकाकरण अभियान और रोजमर्रा की इन आदतों के अलावा हमें महामारी से संभावित बचाव और शुरुआती दौर के इलाज के बारे में सुझावों की जरूरत है। यह एक मुश्किल काम है लेकिन किसी भी ज्ञात रोकथाम उपायों पर विचार करने से सुरक्षा प्रोटोकॉल मजबूत हो सकता है। इसी तरह संक्रमण के बाद के शुरुआती दौर में इलाज को लेकर भी सही सलाह लोगों की मदद करेगी।
लोग भी कह रहे हैं कि हमें संभावित रोकथाम उपायों के बारे में लगातार जानकारियां मिल रही हैं। ऐसे में अगर हमें रोग-निरोधी उपायों के बारे में एक अकेले जानकार स्रोत से यह संकलित जानकारी मिलती और उसके हिसाब से संभावनाओं का मूल्यांकन किया जाता तो काफी उपयोगी होता। अगर सुरक्षित यौगिकों के बारे में पता है तो सकारात्मक सबूतों का इंतजार करने के बजाय उनका विस्तार किया जा सकता है। अगर परीक्षणों का डिजाइन एवं समन्वय करना है तो इन जानकारियों को संभव सीमा तक प्रोत्साहित किया जा सकता है।
यह समय हमारी खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से बहुत अधिक उम्मीद पालने का नहीं है। फिर भी, सलाह देने और परीक्षणों में मददगार बनने की क्षमता का कोई विकल्प नहीं है। अगर निजी क्षेत्र के मददगार बनकर आगे आने की उम्मीद है तो लाभ की संभावना की तुलना में समय, प्रयास, लागत एवं जोखिम के निवेश पर गौर करने से पता चलता है कि इसमें अधिक वक्त लग सकता है।
संभावित रोकथाम
ऐसा लगता है कि इस घातक वायरस के खिलाफ हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में निरोधक उपाय रडार पर रहे हैं। इन उपायों के असर को लेकर अचरज हो सकता है या फिर परीक्षणों के जरिये पुष्टि में आने वाली मुश्किल क्या निरोधक उपायों या शुरुआती इलाज के प्रोत्साहन की कमी को बयां करती है? निरोधक दवाओं के दो संभावित उम्मीदवार पोविडोन-आयोडिन (जिन्हें बीटाडिन के ब्रांड नाम से जाना जाता है) और आइवरमेक्टिन हैं। पोविडोन-आयोडिन के रासायनिक युग्मक का एक लोकप्रिय ब्रांड बिटाडिन है। इसके निर्माण में आयोडिन के साथ जल में घुलनशील बहुलक पोविडोन का इस्तेमाल होता है। धीमी गति से आयोडिन निकलने से यह दवा जीवाणु-नाशक एवं विषाणु-रोधी के रूप में काफी असरदार साबित होती है और न तो पीड़ा पहुंचाता है और न ही धुंधला पड़ता है। हालांकि थाइरॉयड की समस्या से जूझ रहे लोग, गर्भवती महिलाएं और रेडियो-आयोडिन थेरेपी करा रहे लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। अमेरिका में बिटाडिन की वेबसाइट इस दवा को कोविड-19 के खिलाफ भी असरदार बताती है। हाल में हुए कई अध्ययन बताते हैं कि पोविडोन-आयोडिन सार्स-कोरोनावायरस-2 और अन्य वायरस के खिलाफ नाक एवं मुंह में एक असरदार वायरस-रोधी युग्मक है। कोरोनावायरस के खिलाफ इसकी वायरस-रोधी गतिविधि की पुष्टि कई रिपोर्ट करती हैं और वायरल लोड को सीमित कर शुरुआती दौर के संक्रमण की गंभीरता भी कम करता है। स्थापित परंपरा के साथ ही कई अध्ययन भी इसकी पुष्टि करते हैं कि पोविडोन-आयोडिन कुछ खास समूहों को छोड़कर प्रभावी एवं सुरक्षित है। क्या इसे एक संभावित रोग-निरोधी के तौर पर बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है? साक्ष्य उपलब्ध होने पर अधिकारी कोविड निरोधक उपायों में इस दवा को भी शामिल करने का निर्णय कर सकते हैं।
दूसरा विकल्प आइवरमेक्टिन है जो उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के इलाज प्रोटोकॉल में पहले से ही शामिल है। एक संक्रमण से बचाव करने वाली दवा के तौर पर आइवरमेक्टिन देने की अनुशंसा स्वास्थ्य विभाग ने की हुई है। वहीं संक्रमण हो जाने के बाद डॉक्सीसाइक्लिन का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के बयान इन दवाओं के इस्तेमाल का बहुत समर्थन नहीं करते हैं। आइवरमेक्टिन का इस्तेमाल दुनिया भर में सालों से गोल-कृमि एवं आंत के परजीवियों के इलाज के अलावा खुजली जैसे त्वचा रोगों में किया जाता रहा है। अगर एक या दोनों ही दवाएं असरदार हैं और खास लोगों को छोड़कर अन्य के लिए सुरक्षित मानी जाती हैं तो क्या महामारी विशेषज्ञ उन्हें निरोधक प्रोटोकॉल में शामिल करने के बारे में गौर करेंगे? यह टीकाकरण, मास्क पहनने, दूर-दूर रहने एवं हाथों को धोते रहने जैसे निरोधक उपायों से अलग होगा। अगर प्रमाणन की जरूरत है तो अधिकारी इसके लिए परीक्षण करा सकते हैं।
शुरुआती इलाज
आइवरमेक्टिन के अलावा मुंह में नारियल तेल डालने की आयुर्वेदिक पद्धति के बारे में कुछ परीक्षण फिलीपींस एवं इंडोनेशिया में किए गए हैं। दूसरा विकल्प, सांस खींचने वाले पुनर्संयोगी इंटरफेरॉन (संक्रमित कोशिकाओं में बनने वाला वायरस-रोधी प्रोटीन) से जुड़ा परीक्षण है। शुद्ध नारियल तेल (वर्जिन) के औषधीय गुणों के बारे में फिलीपींस में दशकों से अध्ययन होता रहा है। कोविड-19 के इलाज में इसके इस्तेमाल के बारे में एक रिपोर्ट 2020 के अंत में प्रकाशित हुई थी। उनसे इसका संकेत मिलता है कि शुरुआती दौर के इलाज में वर्जिन नारियल तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रतिरोधकता संवद्र्धन- इंटरफेरॉन बीटा-1ए (एसएनजी001) -वर्ष 2003 में साउथैम्प्टन यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने सांस की बीमारियों में जैव-प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल एवं दवाओं की खोज के लिए सिन्एयरजेन नाम की एक कंपनी शुरू की थी। उन्होंने 2009 में पुनर्संयोगी इंटरफेरॉन बीटा-1ए एसएनजी001 को विकसित किया था जिसे सांस के साथ खींचकर लिया जा सकता है। अमेरिका में इस बीटा का पेटेंट आईएफएन-बीटा के नाम से है। अस्थमा और सांस की गंभीर बीमारी सीओपीडी से पीडि़त लोगों के लिए यह उपयोगी है। ऐसे लोग मौसमी सर्दी-खांसी एवं फ्लू की चपेट में आसानी से आ जाते हैं जिनके लिए सार्स-कोव एवं मर्स जैसे वायरस जिम्मेदार होते हैं। एसएनजी001 दिए जाने पर बीमार की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले प्रोटीन का स्थानीय संकेंद्रण बढ़ता है।
इंजेक्शन के तौर पर इंटरफेरॉन बीटा-1ए का इस्तेमाल नब्बे के दशक से ही नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारी मल्टीपल स्किलरोसिस के इलाज में होता रहा है। इसे सार्स, मर्स के अलावा हाल में कोरोनावायरस के खिलाफ भी असरदार पाया गया है। वैसे कोविड-19 के इलाज में इसके इस्तेमाल को स्वीकृत करने के पहले इसके चिकित्सकीय परीक्षण करने होंगे। यह महंगा होने के साथ मुश्किल है और वक्त भी अधिक लेता है। अधिक लागत के अलावा उपयुक्त उम्मीदवार मिलने, प्रशिक्षित पेशेवर एवं समय की कमी जैसी समस्याएं भी आड़े आती हैं। इसके परीक्षणों में अक्सर देरी होती है क्योंकि प्रशिक्षित स्टाफ की कमी, सामग्री एवं फंडिंग की दिक्कत और रोगी ही अनिच्छुक या अनुपलब्ध होते हैं। कभी-कभी अपर्याप्त उम्मीदवार होने से परीक्षणों को निरस्त करना पड़ता है। इन कारकों ने कोविड के इलाज में अभी तक एसएनजी001 के इस्तेमाल को रोके रखा है।
वर्ष 2020 के मध्य में दूसरे चरण के परीक्षण के उत्साहजनक नतीजे आए थे लेकिन तीसरे चरण के परीक्षण साल भर बाद भी पूरे नहींं हो पाए हैं। करीब 20 देशों में 600 से अधिक मरीजों पर इसका परीक्षण चल रहा है। भारत में भी विशेषज्ञ समिति इसके क्लिनिकल परीक्षण के एक प्रस्ताव पर गौर कर रही है। क्या चिकित्सकीय निगरानी में इसके फौरी इस्तेमाल पर सोचा जा सकता है?
सरकार-प्रायोजित परीक्षण
फिलीपींस की सरकार ने वर्जिन नारियल तेल, आइवरमेक्टिन एवं मेलेटोनिन जैसी दवाओं के परीक्षण में महारत हासिल कर ली है। परीक्षणों का आकार छोटा होने के बावजूद उसका उदाहरण प्रेरणादायक है। हमारे जानकार भी शायद इस पर सोच सकते हैं कि निरोधक दवा के साथ शुरुआती इलाज में असरदार दवा के तौर पर आइवरमेक्टिन को क्या परीक्षणों के जरिये वैधता हासिल करने की जरूरत है या फिर उसे कोविड प्रोटोकॉल में शामिल किया जा सकता है?
बिटाडिन के गरारे करने एवं नाक से स्प्रे को असरदार पाए जाने और आइवरमेक्टिन के बारे में सार्वजनिक सलाह जारी करने से मदद मिलेगी। संभव हो तो सांस के जरिये ली जाने वाली दवा (सिक्लेसोनाइड या बुडेसोनाइड) को भी शुरुआती इलाज में देने पर सलाह जारी की जा सकती है। इससे फेफड़ों एवं श्वसन अंगों को संक्रमण से बचाने में काफी मदद मिलेगी।