बकरे के मांस और बकरी के दूध की मांग तेजी से बढऩे से इनकी कीमतों में भी खासी उछाल देखी गई है। इसकी वजह से इस छोटे मगर मजबूत और देखरेख में आसान जानवर का व्यावसायिक पालन बेहद आकर्षक हो गया है। इसके लिए तुलनात्मक रूप से कम शुरुआती निवेश की जरूरत होती है और कम समय में ही प्रतिफल मिलना शुरू हो जाता है।
उद्यमियों के अलावा सीमांत किसानों और भूमिहीन ग्रामीणों की आमदनी बढ़ाने में बकरी पालन की संभावनाओं को देखते हुए केंद्र और कई राज्यों ने इसके लिए सब्सिडी एवं दूसरी रियायतें देनी शुरू कर दी हैं। कुछ राज्यों में इन रियायतों का दायरा बकरी पालन पर आने वाली शुरुआती लागत का करीब 90 फीसदी तक पहुंच गया है। हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, राजस्थान और गोवा जैसे राज्यों में इसके लिए विशेष अभियान भी चलाए गए हैं। कई राज्यों ने बकरियों की नस्ल सुधारने के लिए कृत्रिम गर्भाधान की सेवा देनी भी शुरू कर दी है।
बकरियों में यह अनूठी खासियत होती है कि वे अन्य जानवरों को पसंद न आने वाले खराब किस्म के चारे का भी सेवन कर कीमती मांस (शेवॉन), दूध, खाल एवं ऊन देने में सक्षम होती हैं। उनका मुंह, खासकर जीभ बहुत छोटी घास एवं पत्तियों को भी चरने के माकूल होती हैं। उनके गोबर से बढिय़ा खाद बनती है और किसानों के लिए यह खेत की उपज बढ़ाने का जरिया है।
दुनिया में सबसे ज्यादा बकरियां भारत में पाई जाती हैं जिनमें से बड़ी संख्या उन बकरियों की है जो तेजी से कम एवं लुप्त होते जा रहे चरागाहों में मिलने वाली छोटी घासों, कृषि अवशिष्टों एवं घरों से निकलने वाले कचरे पर पलती हैं। देश में बकरियों की कई नस्लें पाई जाती हैं। जहां कुछ नस्लों की बकरियां उम्दा किस्म के दूध, मांस या ऊन बनाने में इस्तेमाल होने वाले बाल के लिए जानी जाती हैं, वहीं कई नस्लें बहु-उपयोगी किस्म की हैं।
आम तौर पर पाई जाने वाली नस्लों में जमनापरी, सुरती, बरबरी, मालाबरी, सिरोही, बीतल, उस्मानाबादी और जखराना नस्ल की बकरियों से बढिय़ा दूध मिलने के साथ पर्याप्त मांस भी मिलता है। अच्छी नस्ल वाली एक सुपोषित बकरी औसतन 2-3 लीटर दूध रोज दे सकती है जो गरीब आदमी की भैंस के तौर पर उसकी साख को सही भी ठहराती है। बकरियों का दूध कहीं भी और दिन में कभी भी निकाला जा सकता है जिससे उन्हें अक्सर दूध देने वाली मोबाइल मशीन भी कहा जाता है।
बकरे के मांस को लाल मांस में से सबसे हल्का माना जाता है जिससे घरेलू एवं निर्यात बाजारों में उसकी खासी मांग भी है। भारत बकरे के अलावा भैंस के मांस का निर्यात करने वाले प्रमुख देशों में से एक है। हालांकि वैश्विक मांस कारोबार में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 2 फीसदी है जबकि सही विपणन और प्रोत्साहन कदमों से इसे कई गुना बढ़ाया जा सकता है। भारतीय बकरे के मांस का आयात करने वाले देशों में संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, सऊदी अरब एवं ओमान शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में चीन, बांग्लादेश और मालदीव जैसे देशों में भी इस मांस की मांग बढ़ी है।
बकरी के दूध को पौष्टिकता एवं सुपाच्यता के आधार पर मां के दूध के सबसे करीब माना जाता है लेकिन इसमें एक तरह की महक होने से कई लोग इसे पसंद नहीं करते हैं। इस दूध में तमाम उपचारात्मक गुण भी होते हैं जिनका उल्लेेख आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में खूब मिलता है। कई तरह की बीमारियों एवं एलर्जी के इलाज में बकरी का दूध काफी कारगर माना जाता है। फिर भी इसके सारे पौष्टिक गुणों का पता लगाने के लिए समुचित वैज्ञानिक शोध नहीं हुए हैं ताकि इसे एक सेहतमंद एवं प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले प्राकृतिक पेय के तौर पर बढ़ावा दिया जा सके।
मथुरा के मखदूम स्थित केंद्रीय बकरी शोध संस्थान (सीआईआरजी) ने करनाल स्थित राष्टï्रीय दुग्ध अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के साथ मिलकर इस दिशा में प्रयास शुरू किए हैं। सीआईआरजी के प्रमुख वैज्ञानिक प्रमोद के राउत की अगुआई वाली एक टीम ने अलग-अलग इलाकों में पाई जाने वाली 15 नस्लों से लिए गए दूध के नमूनों में 1,307 प्रोटीन की मौजूदगी का पता लगाया है। इन प्रोटीन एवं पेप्टाइड की भोजन को ऊर्जा में तब्दील करने वाली उपापचय क्रिया, प्रतिरोधकता निर्माण एवं बीमारी नियंत्रण में अहम भूमिका मानी जा रही है।
राउत कहते हैं, ‘ये प्रोटीन ऐंटी-ऑक्सीडेंट के तौर पर काम करते हैं और जैविक क्रियाओं के नियमन एवं शरीर का प्रतिरक्षात्मक गतिविधियों में मदद करते हैं। इसके अलावा बकरी के दूध में सूक्ष्मजीव-रोधी गुण भी पाए जाते हैं।’ शोधकर्ताओं की इस टीम को यह भी पता चला है कि ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और अन्य हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली गंजम, गद्दी एवं जखराना नस्लों वाली बकरियों के दूध में अन्य इलाकों में पाई जाने वाली नस्लों की तुलना में ज्यादा प्रोटीन एवं वसा होता है।
इन अध्ययनों में कुछ खास प्रोटीन एवं पेप्टाइड की मौजूदगी का पता चला है जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, कोशिका वृद्धि, उपापचय एवं बीमारी नियंत्रण में अहम भूमिका निभाते हैं। इन शोध निष्कर्षों ने बकरी के दूध में मौजूद प्रोटीन के बारे में जानकारी बढ़ाई है। इससे खास कार्यों के लिए निर्दिष्ट प्रोटीन की शिनाख्त भी हो पाई है। निर्दिष्ट प्रोटीन एवं पेप्टाइड के इंसान की सेहत पर कई असर हो सकते हैं और फार्मा उद्योग इसका फायदा उठा सकता है। बकरी के दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन टीबी, टाइप-2 डायबिटीज एवं अन्य बीमारियों के इलाज में भी मददगार हो सकते हैं।
बहरहाल इन अध्ययनों ने बकरी के दूध में मौजूद प्रोटीन और पौष्टिकता एवं स्वास्थ्य प्रबंधन में उनकी गतिविधियों के बारे में आंकड़े जुटाने में मदद की है लेकिन इस दिशा में अधिक शोध की जरूरत है। बकरी के दूध के बारे में जागरूकता बढ़ाने से इसकी मांग बढ़ सकती है और बकरी पालन को अधिक लाभप्रद भी बनाया जा सकता है।