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वैश्विक व्यापार संघर्ष और भारत का औद्योगिक भविष्य: नवाचार और प्रौद्योगिकी में गहराई लाने की जरूरत

डब्ल्यूटीओ द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 1995 से 2023 के बीच विश्व व्यापार (वस्तु एवं वाणिज्यिक सेवाएं) में मजबूत वृद्धि देखी गई जो सालाना करीब 5.8 फीसदी रही।

Last Updated- May 02, 2025 | 10:49 PM IST
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प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

विश्व अर्थव्यवस्था असाधारण स्तर की कारोबारी उथल-पुथल की शिकार है। इस मामले में जोखिम की जो भी आशंकाएं रही हैं, उनको हमेशा से ही वैश्वीकरण और आर्थिक निर्णयों को संचालित करने वाली रूढ़िवादिता के पक्ष में भारी रूप से नजरअंदाज किया गया है। विविधता के अवसरों ने अपेक्षाकृत लंबी अवधि के लिए आशावाद उत्पन्न किया है। वह इस तथ्य में भी नजर आता है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य देशों द्वारा सर्वाधिक तरजीही देश (एमएफएन) के आधार पर लागू किया जाने वाला औसत टैरिफ 10 फीसदी से नीचे आ गया है। 

हालांकि डब्ल्यूटीओ के अस्तित्व में आने के बाद कई विकासशील देशों ने एकतरफा टैरिफ उदारीकरण को अपनाया है जिसके चलते विकसित देशों में विसंगतिपूर्ण सब्सिडी, गैर टैरिफ अवरोध और कठिन मानक सामने आए हैं। इससे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी दूरी बढ़ रही है। डब्ल्यूटीओ इसे हल नहीं कर पाया और इसकी वैधता को लेकर एक संकट उत्पन्न हुआ।

व्यापक उथल-पुथल का प्रभावी तौर पर यह मतलब हुआ कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार विवादों का क्षेत्र बना रहा और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था द्वारा हाल ही में एकतरफा कदम उठाते हुए टैरिफ लगाए जाने से पिछली तमाम सहमतियां बेकार हो गईं। इसके साथ ही डब्ल्यूटीओ में भरोसा तथा वार्ता की उसकी क्षमता प्रभावित हुई। इस घटना ने आर्थिक वैश्वीकरण की बुनियाद को हिला दिया। ऐसे में भारत को दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है।

डब्ल्यूटीओ द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 1995 से 2023 के बीच विश्व व्यापार (वस्तु एवं वाणिज्यिक सेवाएं) में मजबूत वृद्धि देखी गई जो सालाना करीब 5.8 फीसदी रही। परिणामस्वरूप इसमें पांच गुना का इजाफा देखने को मिला। जैसा कि सबको पता है विश्व व्यापार में वृद्धि ने वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि को पीछे छोड़ दिया जिसमें इसी समान अवधि में सालाना 4.4 फीसदी की दर से ही वृद्धि हुई। वैश्विक व्यापार-जीडीपी अनुपात में मजबूती आई। यह 1995 के 20 फीसदी से बढ़कर 2022 में 31 फीसदी पर पहुंच गया। हालांकि 2023 में इसमें गिरावट आई और यह 29 फीसदी रह गया।

बहरहाल, वैश्वीकरण के अन्य मानकों को ध्यान में रखें तो समान अवधि में विकासशील देशों द्वारा वैश्विक वित्त, निवेश प्रवाह या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का लाभ उठाने के मामले में कम अनुकूल रुझान देखने को मिले। ये व्यापार एकीकरण की सबसे अहम अनुपूरक शक्तियां हैं और विकासशील देश बहुत मुश्किल से क्षमता निर्माण या नवाचार कर पाते हैं। इस संदर्भ में हम यह ध्यान दे सकते हैं कि तकनीकी सबकों से तकनीकी अवसरों में बहुत अधिक इजाफा होता है। शोध एवं विकास तथा सबक कई बार एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं।

ऐसे में पुरानी हिचकिचाहट को छोड़कर देश की जरूरतों से संबद्ध तकनीकी अवसरों में इजाफा करने में सरकार की भूमिका को कई गुना बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही निवेश और मांग तैयार करने पर भी जोर देना होगा तथा प्रोत्साहनों का भी उचित इस्तेमाल करना होगा। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हमेशा यह कहा जाता है कि कारोबार में विभिन्न कंपनियां शामिल होती हैं न कि देश। ऐसे में कंपनियों के स्तर पर शोध एवं विकास या तकनीकी क्षमताएं सुधारने की आवश्यकता है। फिर चाहे ये कंपनियां छोटी हों या बड़ी, विनिर्माण में हों या सेवा क्षेत्र में। भारत उच्च प्रौद्योगिकी वाली वस्तुओं के निर्यात के मामले में दुनिया का सबसे तेजी से बड़ा होता निर्यातक है। लेकिन भारत का उच्च प्रौद्योगिकी वाली वस्तुओं का आयात मोटे तौर पर चीन से होता है और निर्यात बहुत हद तक अमेरिका के साथ संबद्ध है।

उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारी व्यापार घाटे की भरपाई केवल जीवंत औद्योगिक नीति की मदद से किया जा सकता है जिसका लक्ष्य तकनीकी गहराई लाना हो। जैसा कि विश्व बौद्धिक संपदा संस्थान ने भी कहा कि उच्च प्रौद्योगिकी वाली वस्तुओं के विश्व व्यापार के क्षेत्र में अभी हाल तक चिकित्सा प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रिक वाहन, परमाणु ऊर्जा और विमान/अंतरिक्ष यान आदि उभरते हुए क्षेत्र हैं और भारत इन क्षेत्रों में बहुत अच्छी स्थिति में है।

इसके लिए पर्याप्त पूंजी जुटाने की कोशिश काफी अहम है। ऐसा इसलिए क्योंकि नवाचार में पूंजी की अहम भूमिका है जो पूंजी की उत्पादकता बढ़ाएगी और दीर्घवधि की वृद्धि पर सकारात्मक असर डालेगी। जाने माने अर्थशास्त्री  फिलिप आगियॉन और पीटर हॉविट ने भी ऐसा ही सुझाव दिया है। 

प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर सीख हासिल करना भारत के औषधि क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण रहा है। कोविड के दौरान तथा टीका बनाने की प्रक्रिया के दौरान देश के औषधि क्षेत्र ने जो आक्रामकता दिखाई उसमें भी यह नजर आता है। यहां तक कि उन्नत प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म के मामले में सिद्धहस्त होने में भी यह देखा जा सकता है। हालांकि यह क्षेत्र बौद्धिक संपदा अधिकार को लेकर काफी संवेदनशील रहा है। यह दबाव अन्य भौगोलिक क्षेत्रों से सामने आता है।

भारत ने बहुत कम समय में सक्रिय हस्तक्षेप और सरकारी प्रोत्साहन की मदद से दुनिया के प्रमुख स्मार्टफोन निर्यातक देश का दर्जा हासिल किया है, जिसमें 70 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी अकेले आईफोन की है। हम अपनी मूल्य शृंखला का भी तेजी से स्वदेशीकरण कर रहे हैं। इस क्षेत्र में नवाचार को गति भविष्य की जरूरतों के अनुसार कलपुर्जों आदि पर रणनीतिक नीतियों से मिल सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि स्मार्टफोन जैसे उत्पाद, कीमतों के संकेतों को लेकर प्राय: हमेशा लचीले नहीं रह सकते हैं। ऐसे में विकासशील देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कई तरह के उत्पाद उपलब्ध कराए जा सकते हैं।

तकनीकी गहराई और नवाचार संबंधी क्षमताएं घरेलू मूल्य निर्माण को टिकाऊ बनाने में मदद करेंगी। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के कलपुर्जे बनाने में इससे मदद मिलेगी। देश का वाहन क्षेत्र तकनीकी हस्तांतरण और सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों को उससे होने वाले लाभ का सीधा उदाहरण है। अन्य तकनीक आधारित क्षेत्र भी हैं मसलन विनिर्माण आदि जहां कौशल की उपयोगिता है। देश में बढ़ते वैश्विक क्षमता केंद्रों में इसे महसूस किया जा सकता है। बहरहाल हाल के दिनों की तमाम कामयाबी के बावजूद सीखने की यह प्रक्रिया पूरी तरह निजी क्षेत्र के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती है। सार्वजनिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर ज्ञान तैयार करना होगा ताकि विदेशी प्रौद्योगिकी पर हद से अधिक निर्भरता को त्यागा जा सके। इससे हमें अन्यत्र अपनाए गए प्रौद्योगिकी विकास और व्यापार मॉडलों के कुछ गलत परिणामों को रोकने में भी मदद मिलेगी। 

First Published - May 2, 2025 | 10:37 PM IST

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